राजीव लोचन साह
इस अंक के साथ नैनीताल समाचार अपने 47 साल पूरे कर 48वें साल में प्रवेश कर रहा है। सिर्फ तीन साल और बचे पचास साल पूरा करने में।
फिलहाल तो इससे बड़ा लक्ष्य हमें सूझ नहीं रहा है। ऐसा नहीं है कि हिन्दी पत्रकारिता में या क्षेत्रीय पत्रकारिता में करने के लिये अब कुछ नहीं बचा। दरअसल पत्रकारिता करने का सही वक्त तो अभी ही है। मुख्यधारा की पत्रकारिता धड़ाम हो गयी है और अपने आप को बचाने के लिये सत्ता की गोद में जा बैठी है। इसीलिये अब उसे गोदी मीडिया के नाम जाना जाने लगा है। क्षेत्रीय दैनिकों या राष्ट्रीय अखबारों के क्षेत्रीय संस्करणों द्वारा पत्रकारिता पर कब्जा कर लिये जाने से पूर्व जिन छोटे साप्ताहिकों पर जनता को सूचना सम्पन्न करने का दारोमदार था, वे विवश होकर न्यूज पोर्टलों में तब्दील हो रहे हैं और उसी मजबूरी में शासन-प्रशासन के चारण बन बैठे हैं। दैनिक अखबारों से बाहर आये या बाहर कर दिये गये पत्रकारों ने भी वैब पत्रकारिता में अपना शरण्य ढूँढा है, मगर मौजूदा पत्रकारिता की दरिद्रता को कम करने में वे असहाय हैं।
अपवाद कम नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर यू ट्यूबर्स की अच्छी-खासी फौज खड़ी हो गई है, जिसने झूठ का कोहरा फैलाने वाले गोदी मीडिया के छक्के छुड़ा दिये हैं। परेशान केन्द्र सरकार उनका मुँह बन्द करने के लिये ब्रॉडकास्टिंग कानून बनाने की कोशिश करके भी हार चुकी है। मगर क्षेत्रीय स्तर ऐसी कोशिश कम दिखाई दे रही है। कोई भी ऐसा यू ट्यूबर नहीं दिखाई दे रहा है, जो खुल कर, ईमानदार पत्रकारिता भी कर रहा हो और व्यूअरशिप की दृष्टि से भी जम गया हो। राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे यू टयूबर को एक-दो लाख व्यूज मिल जाना सामान्य बात है। कुछ लोकप्रिय यू ट्यूबर्स को तो पन्द्रह-बीस लाख लोग देख लेते हैं। मगर उत्तराखंड के स्तर पर एकाध बार ही किसी यू ट्यूब चैनल में एक लाख से ज्यादा व्यूज दिखाई दिये हैं। जबकि वैब पत्रकारिता में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय की कोई सीमा भी नहीं हो सकती। संक्षेप में कहें, तो उत्तराखंड के स्तर पर झूठे प्रचार से इतर सच्ची और जनता के लिये जरूरी सूचनायें देने वाली पत्रकारिता करने की बहुत गुंजाइश बनी हुई है।
मगर आधी शताब्दी पहले एक छोटे अखबार के रूप अपनी पहचान बनाने वाले हम लोगों के लिये लीक तोड़ने के लिये अपनी बेड़ियाँ तोड़ना सम्भव नहीं हो रहा है। कोशिश जारी है, मगर हर विधा का अपना एक व्याकरण होता है, जिस पर अधिकार जमाना सफलता की पहली शर्त होती है। फिलहाल हम उसमें पिछड़े हुए हैं और छपे हुए पन्नों के रूप ही कुछ-कुछ कर पा रहे हैं। तेज संचार और धुआँधार तकनीकी के इस जमाने में यह बहुत अर्थवान् नहीं रह गया है।
हर युग की तरह यह कालखंड भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अन्ततः इसे भी इतिहास में दर्ज होना है। मगर सत्ता और पत्रकारिता की जुगलबन्दी के कारण सत्य जब आज ही आँखों ओझल है तो भविष्य में भी वह कैसे दिखाई देगा ? लगभग तीन माह पहले भारतीय राजनीति का एक नया दौर शुरू हुआ है। एक जो भय बना हुआ था कि देश तानाशाही ओर जा रहा है, तात्कालिक रूप से कुछ कम हुआ है। मगर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ हैं। जो ज़हर देश की नसों चढ़ाया जा चुका है, जिसकी चपेट में अच्छे-भले, समझदार लगते लोग भी आये दिखाई देते हैं, इतनी जल्दी साफ तो हो नहीं पायेगा। उसके लिये अनेक दशक लगेंगे। यह बात कि संविधान सर्वोच्च है और देश का सारा काम-काज उसी के अनुसार चलना चाहिये, उम्र, लिंग और जाति से परे हर व्यक्ति के दिमाग में दुबारा स्थापित कर देना इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है और पत्रकारिता की सबसे बड़ी चुनौती भी।
देश के 78वें स्वाधीनता दिवस और नैनीताल समाचार के 48वें जनमबार पर हम अपने सभी पाठकों, सहयोगियों, विज्ञापनदाताओं और शुभचिन्तकों को हार्दिक शुभकामनायें। हमारा यह रिश्ता इसी तरह बना रहे।