सलीम मलिक
हल्द्वानी के बहुचर्चित बनभूलपुरा इलाके की कथित रेलवे भूमि पर अतिक्रमण के मामले का भविष्य सोमवार 6 फरवरी को करीब तीन महीने आगे बढ़ गया। उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा इस इलाके की बस्तियों को एक सप्ताह में हटाए जाने के अभूतपूर्व फैसले के खिलाफ देश के सर्वोच्च न्यायालय में हो रही सुनवाई में सोमवार को उत्तराखंड सरकार और मुकदमे की मुख्य पार्टी रेलवे विभाग ने कोर्ट से अपने पक्ष के दस्तावेज जमा करने के लिए आठ हफ्ते का समय मांगा है, जिसके बाद कोर्ट ने इन्हें यह समय देते हुए अगली सुनवाई 2 मई निर्धारित की है। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच में चल रहे इस मामले में रेलवे विभाग द्वारा जवाब देने के लिए फिर एक बार आठ सप्ताह का समय मांगने से इससे पहले रेलवे के उत्तराखंड हाई कोर्ट में उन दस्तावेजों पर संशय खड़ा हो गया है, जिनकी बुनियाद पर उसने यह मनचाहा फैसला प्राप्त किया था।
मामले की तफसील के लिए फ्लैश बैक में जाते हुए बता दें कि 2013 में एक जनहित याचिका में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास गौला नदी में अवैध खनन होने के आरोप लगाते हुए कहा गया कि अवैध खनन की वजह से ही 2004 में नदी पर बना पुल गिर गया। याचिका पर कोर्ट ने रेलवे से जवाब मांगा। रेलवे ने 1959 का नोटिफिकेशन, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड और 2017 का लैंड सर्वे दिखाकर कहा कि यह जमीन रेलवे की है, इस पर अतिक्रमण किया गया है। हाईकोर्ट में यह साबित हो गया कि जमीन रेलवे की है। इसके बाद ही लोगों को जमीन खाली करने का नोटिस दिया गया। लोगों ने जमीन खाली करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से इन लोगों का भी पक्ष सुनने को कहा। लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने इस इलाके में अतिक्रमण की बात मानी। बीते 20 दिसंबर को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी में रेलवे भूमि से अतिक्रमण की बात मानते हुए इसे हटाने का आदेश दे दिया। लेकिन इस बीच दो जनवरी को प्रभावितों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इतनी बड़ी आबादी को एक सप्ताह में हटाने के कोई ब्लूप्रिंट न होने के कारण हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए 7 फरवरी तक संबंधित पक्ष से जवाब तलब किया था।
लेकिन आज सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान उस रेलवे विभाग ने जो पूर्व में हाई कोर्ट में दस्तावेजों के दम पर इन लोगों को अपनी भूमि का अतिक्रमणकारी साबित कर चुका था, सुप्रीम कोर्ट से अपना पक्ष रखने के लिए दो माह का समय मांगकर मामले को रहस्यमय कर दिया। स्वाभाविक सा सवाल उठ रहा है कि यदि रेलवे के पास इस भूमि के तमाम दस्तावेज पहले से ही चौकस नहीं थे तो उत्तराखंड हाई कोर्ट ने किस वजह से इस जमीन को रेलवे की मानकर इन बस्तियों को हटाने का आदेश दिया था। और यदि रेलवे के पास इस भूमि के दस्तावेज ठीक हैं तो रेलवे को यह दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में रखने के लिए दो माह का वक्त ही क्यों चाहिए।
इस मामले में हल्द्वानी के विधायक और मामले में पैरवी कर रहे सुमित हृदयेश का कहना है कि रेलवे विभाग के दस्तावेज पूरे नहीं थे जो कि हम पूर्व से ही कहते आ रहे हैं। रेलवे ने अपनी मनमानी से सीमांकन करके 78 एकड़ ज़मीन अपनी दर्शा दी। अगर असल में रेलवे की भूमि 78 एकड़ होती तो आज दस्तावेज़ो के साथ रेलवे सुप्रीम कोर्ट में आकर प्रमाणित करती। रेलवे का दस्तावेज देने के लिए दो माह का समय मांगना बताता है कि रेलवे ने हाई कोर्ट में झूठ बोलकर उसे गुमराह किया है। अब इसी झूठ को बचाने के लिए रेलवे तारीख माँग रही हैं। राज्य सरकार ने भी रेलवे से दस्तावेज माँगे है। लेकिन रेलवे उन दस्तावेज़ो को देने में अक्षम रही हैं। रेलवे के पास ऐसा कोई भी सबूत नहीं है जिससे यह साबित होता हो कि 78 एकड़ ज़मीन रेलवे की हैं। कई बार गौला नदी में बाढ़ आने से हुए भूकटाव के चलते रेलवे की पटरी भी स्थांतरित हुई हैं। जिसकी वजह से पूर्व में जो सीमांकन किया गया हैं वह ग़लत होने की पूरी आशंका हैं।
हल्द्वानी के जिस बनफूलपुरा इलाके की बसी इन बस्तियों के अस्तित्व का सवाल सुप्रीम कोर्ट में हल होना है, उन्हें गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर के नाम से जाना जाता है। रेलवे लाइन के किनारे बसा यह पूरा क्षेत्र हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के आसपास के करीब दो किलोमीटर से भी ज्यादा के क्षेत्र में फैला हुआ है। दिलचस्प तथ्य यह है कि जिस जगह को रेलवे विभाग उत्तराखंड हाई कोर्ट में अपनी साबित करके मुकदमा जीत चुका है, उसी भूमि पर बसे दर्जनों परिवार अपने पास भूमि के पट्टे का दावा कर रहे हैं। कुछ संपत्तियां शत्रु संपत्तियां भी हैं, जिन्हें खुद सरकार ने नीलामी के माध्यम से इन लोगों को बेचा है। कई जगह पर भूमि नजूल प्रवृति की है, जिस पर नगर निगम का मालिकाना हक है। और तो और इस क्षेत्र में 4 सरकारी स्कूल भी बने हुए हैं जो दूर से ही रेलवे के भूमि के मालिकाना हक को मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। इसके अलावा यहां 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं। जिन घरों को रेलवे नेस्तनाबूद करना चाहता है, उनकी संख्या ही करीब साढ़े चार हजार है। जिनमें करीब पचास हजार की आबादी निवास करती है।
‘जनज्वार’ से साभार