जगमोहन रौतेला
” पानी का संकट लोगों की असंवेदनशीलता और सरकारी नीतियों की विफलता से उत्पन्न हुआ है। सत्ता और समाज का व्यवहार प्राकृतिक संसाधनों के साथ बदल गया है। जल , जंगल जमीन जो कभी जीवन का आधार थे, आज उपभोग की वस्तु बन कर रख दिए गए हैं। भूजल का अति दोहन, भूजल के पुनर्भरण पर ध्यान नहीं देना, कृषि क्षेत्र का घटना, अति अनियंत्रित सीमेंट-कंक्रीट का निर्माण आदि बढ़ते जल संकट के लिए उत्तरदायी हैं। इसी वजह से जलवायु परिवर्तन जैसे बड़े कारण सामने आ रहे हैं, लेकिन यही एकमात्र कारण नहीं है। यह बात पानी बोओ और पानी उगाओ अभियान के संयोजक व अध्यापक मोहन कांडपाल ने आरटीओ रोड स्थित एक वैंकट हाल में आयोजित “बढ़ता जल संकट और आम आदमी की जिम्मेदारी” विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी के दौरान कही।
उत्तराखण्ड सर्वोदय मण्डल के अध्यक्ष इस्लाम हुसैन ने कहा कि शहरी अनुत्पादक समाज सिर्फ उपभोक्ता है। प्रकृति के संरक्षण में उसकी भूमिका अभी तक नकारात्मक रही है। नोले-धारे सूख रहे हैं और बारामासी नदियां बरसाती नाले में तब्दील हो रही हैं। लोगों का पूरा जोर भूजल के अनियंत्रित विदोहन पर है। उसकी भरपाई के लिए कोई प्रयास शहरी आबादी, उसके जिम्मेदार निकाय एवम संबंधित विभाग नहीं कर रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला ने कहा कि हमारा पूरा शहरी आवासीय ढांचा पानी को धरती के अंदर जाने से रोकने वाला है। हम अपने मकान के आवासीय क्षेत्र में एक इंच जमीन कच्ची नहीं छोड़ रहे हैं, जिसके कारण बरसात और दूसरी तरह का पानी स्थानीय स्तर पर जमीन के अन्दर न जाकर बहुत दूर नदियों में बहकर बाढ़ का कारण बन रहा है। उन्होंने गोला नदी के हर साल घटते जल स्तर पर चिंता जताते हुए कहा कि गोला में अवैज्ञानिक और अनियंत्रित तौर पर जो खनन किया जा रहा है, उसका बहुत बड़ा कारण गोला का घटता है जलस्तर है। उन्होंने अनियंत्रित खनन पर रोक लगाने की मांग की। अध्यापक विनोद जीना ने कोसी के हर वर्ष घटते जल स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर हम अभी भी नहीं चेते तो आने वाले कुछ ही वर्षों में कोसी इतिहास का हिस्सा बन जाएगी। जो उस नदी के किनारे बसी एक बड़ी आबादी के जीवन पर संकट खड़ा कर देगा।
जनमैत्री संगठन के बच्ची सिंह बिष्ट ने संगठन द्वारा “जल संचय, जीवन संचय” अभियान और रामगाड़ नदी पुनर्जीवन अभियान का प्रस्तुतिकरण किया। उन्होंने कहा कि खेती और घर की जरूरत लायक पानी हरेक घर को खुद बचाने की व्यवस्था करनी होगी, ताकि स्रोतों पर दबाव कम किया जा सके। आबाद खेत से आबाद जल स्रोत पैदा होते हैं।यदि खेत नहीं जोत रहे हैं तो एक पोखर अवश्य खोदने की जरूरत है, ताकि पानी को एकत्र किया जा सके।
सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष पंगरिया ने प्राकृतिक संसाधनों, खास कर पानी को लेकर पैरवी और अध्ययन समूह गठन को बैठक की उपलब्धि बताया। वरिष्ठ नागरिक मदन मेर ने कहा कि समस्या बड़ी है, हरेक जिम्मेदार संगठन और व्यक्ति को साथ खड़ा होना जरूरी है। संगोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र जोशी, अध्यापक पूरन बिष्ट, प्रदीप कोठारी, पत्रकार गुरविंदर गिल, मोहन सिंह बिष्ट बुरांशी, रोशनी सोसायटी के मोहन मेहरा, भूपेश सोनी ने अपने विचार रखे।
संगोष्ठी में ऐथैनांल प्लांट के खिलाफ चकलुआ के गांव वालों द्वारा चलाए जा रहे आन्दोलन को समर्थन देने का निर्णय किया गया। जिसके लिए एक प्रतिनिधिमंडल शीघ्र ही चकलुआ जाएगा। अन्त में पिछले दिनों दिवंगत हुई लेखिका रीता खनका रौतेला के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। साथ उनके द्वारा मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी को किए गए देहदान को समाज के लिए एक राह दिखाने वाला बताया गया।