हेम पंत
1, 2 और 3 सितंबर 2023 को बिपिन त्रिपाठी कुमाऊं इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, द्वाराहाट में ‘द्वाराहाट किताब कौतिक’ का आयोजन किया गया। जिसमें लगभग 50 प्रकाशकों की 40 हजार किताबें बिक्री के लिए उपलब्ध कराई गई थीं। जिनमें बाल साहित्य, पर्यटन, विज्ञान, इतिहास, विश्व साहित्य, धार्मिक – आध्यात्मिक सहित पाठकों की रुचि के अनुसार हर तरह का साहित्य था। आरंभ (पिथौरागढ़) और बुक्स ट्री (रुद्रपुर) के स्टॉल पर भारी भीड़ रही।
कार्यक्रम का उदघाटन मुख्य अतिथि डॉ. यशीधर मठपाल, बीटीकेआईटी के निदेशक डॉ. के.के.एस मेर और कुलपति डॉ. बी. एस. बिष्ट जी के हाथों से हुआ। इस अवसर पर बाहर से आए अन्य कई अतिथि व स्थानीय जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। 1 सितंबर को बग्वालीपोखर, कफड़ा – नौगांव, द्वाराहाट, बसभीड़ा और चौखुटिया आदि स्थानों पर स्थानीय पर्यटन, लोककला, रंगमंच, रक्षा विज्ञान, औषधीय पौधों, स्वरोजगार, पत्रकारिता, बाल साहित्य आदि के विशेषज्ञों ने 12 जगहों पर लगभग 15 स्कूलों के बच्चों को जानकारी दी। इसी दिन ठज्ज्ञप्ज् के पूर्व छात्र डॉ. शैलेश खर्कवाल और अमेरिका से डॉ. शैलेश उप्रेती ने टपतजनंस माध्यम से जुड़कर संस्थान के छात्र – छात्राओं से वार्ता की। साथ ही श्री संजीव भगत (पहाड़ पर स्वरोजगार), श्री भूपेश जोशी (रंगमंच से व्यक्तित्व विकास) और श्री राजेश भट्ट (प्रकृति से जुड़ाव) ने कॉलेज के विद्यार्थियों के सत्र लिए। ठज्ज्ञप्ज् के छात्रों से लेखन, इतिहास, रक्षा विज्ञान, कृषि और पत्रकारिता के विशेषज्ञों ने अलग अलग सत्र में बात की।
इस कौतिक में 3 हजार से ज्यादा लोगों ने मेले में शिरकत की और लगभग 4 हजार किताबों की बिक्री हुई। आमंत्रित लेखक और साहित्यकारों से स्थानीय लोगों की सीधी बातचीत हुई। हजारों बच्चों, युवाओं और स्थानीय नागरिकों ने किताबें देखीं और क्रय की। बीटीकेआईटी पॉलिटेक्निक और डिग्री कॉलेज की छात्र – छात्राएं से बड़ी संख्या में शामिल हुए। लगभग 15 स्कूलों के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम, पेंटिंग प्रतियोगिता, ऐपण प्रतियोगिता, कविता वाचन, फोटोग्राफी व अन्य गतिविधियों में उत्साहपूर्वक भागीदारी की। रचनात्मक योगदान के लिए वरिष्ठ साहित्यकारों श्री त्रिभुवन गिरी महाराज और श्री विश्वंभर दत्त जोशी “शैलज” को सम्मानित किया गया।
कौतिक में स्थानीय स्कूली बच्चों द्वारा परंपरागत वाद्ययंत्रों के साथ “सलंकार“ लोकनृत्य की प्रस्तुति दी। श्री कौस्तुभ चंदोला और श्री विश्वंभर दत्त जोशी “शैलज” की 4 नई किताबों का विशेष अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। प्रो. अनिल जोशी ने “अल्मोड़ा जिले का वैभवशाली इतिहा” विषय पर अपनी बात रखी। प्रसिद्ध लेखिका डॉ. हेमा उनियाल ने “मानसखण्ड – नए संदर्भ” विषय पर दीप्ति भट्ट से बातचीत की। प्रो. दिवा भट्ट और डॉ. दीपा तिवारी ने “यात्रा लेखन“ पर वार्ता की। श्री पंकज बिष्ट और प्रो. भूपेन सिंह ने “सोशल मीडिया और पत्रकारिता“ विषय पर अपने विचार रखे। प्रसिद्ध रंगकर्मी डॉ. सुवर्ण रावत ने “उत्तराखण्ड में रंगमंच” विषय पर वक्तव्य दिया।
यहाँ स्थानीय और बाहर से आमंत्रित लगभग 35 कवियों ने “कवि सम्मेलन” में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। सांस्कृतिक संध्या में घुघुति जागर टीम, लोकगायक नंद लाल आर्य, फाग रंगमंच टीम ने सुंदर गीत गाए। आमंत्रित अतिथियों को स्थानीय भोज खिलाए गए – भट्ट, पहाड़ी रायता, आम की चटनी, झंगोरे की खीर आदि नक्षत्र, अल्मोड़ा द्वारा आधुनिक दूरबीनों के साथ लगभग 800 लोगों को खगोल विज्ञान से जुड़ी जानकारी दी गई। वरचुअल रिएलिटी के माध्यम से सौर परिवार और चंद्रमा की सैर कराई गई। चंद्रयान 3 से जुड़ी जानकारियों को लेकर लोगों में विशेष उत्साह था।
“पहरू” द्वारा स्थानीय भाषाओं की किताबों का स्टॉल लगाया गया। श्रीमती यामिनी पांडे (गुड़गांव) ने ऐपण कलाकारी का स्टॉल लगाया। पिरुल हस्तशिल्प विशेषज्ञ श्रीमती मंजू आर साह ने अपनी विशेष कला को स्टॉल पर प्रदर्शित किया योगदा आश्रम द्वारा आध्यात्म पर जानकारी देने के लिए स्टॉल लगाया गया। श्रीमती पुष्पा फर्त्याल (शहरफाटक) द्वारा कठपुतलियों के माध्यम से परंपरागत वेशभूषा और महिलाओं के दैनिक कार्यों का सुंदर चित्रण किया गया। स्वास्थ्य विभाग अल्मोड़ा द्वारा रक्तदान शिविर लगाया गया जिसमें लगभग 35 यूनिट रक्त प्राप्त हुआ। लखनऊ और प्रयागराज से आए विशेषज्ञों ने मिशन इंटर कॉलेज में छात्र – छात्राओं को कैरियर से जुड़े टिप्स दिए। “नेचर वॉक“ के दौरान सीटीआर से आए श्री राजेश भट्ट ने बर्ड वॉचिंग और वनस्पति विज्ञानी डॉ. बी. एस. कालाकोटी ने रास्ते पर मिल रही जड़ी – बूटियों के बारे में सभी लोगों को जानकारी दी।
भूतपूर्व स्वास्थ्यनिदेशक डॉ. ललित उप्रेती ने रक्तदान, नेत्रदान और अंगदान की जरूरत पर श्री जगमोहन रौतेला के साथ बात रखी। “स्थानीय भाषा का शिक्षा में महत्व” विषय पर श्री उदय किरौला ने वक्तव्य दिया। आमंत्रित अतिथियों को आसपास के पर्यटन स्थल, मंदिरों का भ्रमण करवाया गया। स्मृति चिह्न के रूप में 10 युवा चित्रकारों द्वारा उत्तराखंड की संस्कृति पर बनाए गए चयनित चित्र भेट किए गए।