सुवर्ण रावत
मार्च-2024 में दूनघाटी में नाटकों की ख़ूब हलचल रही …भारत के सबसे बड़े रैसक्यू औप्रेशन को लेकर मदन मोहन सती के नाटक ‘नायक से जननायक’ पर आधारित नाटक ‘मिशन सिलक्यारा’ के समापन के बाद, उत्तराखंड नाट्य संस्थान एवं दून यूनिवर्सिटी के रंगमंच एवं लोक कला प्रदर्शनकारी विभाग के संयुक्त सौजन्य से विश्व रंगमंच दिवस के मौके पर विविध नाट्य संस्थाओं का भव्य नाट्य समारोह रहा।
27 मार्च:
नाट्य प्रस्तुति से पहले- उदघाटन रंगकर्मियों की रैली, उत्तर नाट्य संस्थान के महा सचिव- रोशन धस्माना, सचिव-उदय शंकर एवं अन्य पदाधिकारियों/कार्य कारिणी सदस्यों के हाथों श्री सुरेन्द्र प्रसाद मंमगांई के रंगकर्म की विधा में (अभिनय, निर्देशन, एवं लेखन के अमूल्य योगदान हेतु) ‘नाटय श्री सम्मान’, प्रदान करने से हुई। उसके बाद ‘संभव मंच परिवार’ की दो सफल प्रस्तुतियां (‘रहोगी तो तुम वही…’ एवं ‘फट जा पंचधार’) दर्शकों को देखने को मिली।’ जो क्रमशः सुधा अरोड़ा एवं विद्यासागर नौटियाल की कृतियों पर आधारित थी और जिसका सफल निर्देशन अभिषेक मैंदोला ने किया। नाटक ‘रहोगी तो तुम वही’ में अलग-अलग 4 बैकड्रॉप में 4 पुरुषों व 4 महिलाओं की आपसी संवाद अदायगी एवं अभिनय के तालमेल से समाज की पैतृक व्यवस्था को उधेड़ना सराहनीय रहा। दूसरे नाटक में कुसुम पंत ने अपने एकल अभिनय से ‘रक्खी’ के किरदार के अनेक पहलुओं को इस क़दर छूआ कि दर्शकों की आंखें भर आईं। नाटक के अंत में मुख्य अतिथि -के.एस. चौहान -सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग के संयुक्त निदेशक एवं विशिष्ट अतिथि- डॉ. मंगल सिंह मंद्रवाल- दून यूनिवर्सिटी के कुलसचिव के साथ गीता गैरोला- प्रख्यात लेखिका व सामाजिक कार्यकर्ता की सारगर्भित टिप्पणियां रहीं।
28 मार्च:
‘धाद नाट्य मंडल’ की नाट्य प्रस्तुति- ‘ताजमल का टेंडर’, तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को एक कटाक्ष भरे अंदाज में दर्शकों को गुदगुदाने में कामयाब रही। अजय शुक्ला के द्वारा लिखित इस नाटक का सफल निर्देशन कैलाश कंडवाल ने किया था। शाहजहां एवं गुप्ता के किरदार में कैलाश कंडवाल और सुदीप जुगरान के अभिनय से उपजी रोचकता दर्शकों को बांधे रही। जिज्ञासा यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो.बी.एस. नागेन्द्र पराशर बतौर मुख्य अतिथि रंगमंच की महत्ता पर ज़ोर दिया। जाग्रति नवानी, विशिष्ट अतिथि, अपने कलाकार भाई-पंकज उनियाल की असमय मृत्यु की भावुकतावश अपने रंगकर्म के अनुभवों को साझा करते हुए आर्थिक सहयोग किया।
29 मार्च:
‘मेघदूत नाट्य संस्था’ की नाट्य प्रस्तुति ‘भय बिनु होइ न प्रीति’ का निर्देशन पौराणिक कथाओं मंचित करने में सिद्धहस्त- एस.पी.ममगाईं ने किया। दून घाटी के वरिष्ठ रंगकर्मियों में उत्तम बंदूनी, विजय डबराल, नन्द किशोर त्रिपाठी, दिनेश बौड़ाई, गोकुल पंवार, गिरिविजय ढौंडियाल, सुनील तंवर के साथ उभरते कलाकारों में सिद्धार्थ डंगवाल, दीपक शर्मा, अनुपमा ममगाईं आदि का अभिनय प्रशंसनीय रहा। मंच संचालन अनिल दत्त शर्मा के जिम्मे था।अयोध्या भव्य राममंदिर से लौटे दून घाटी के वरिष्ठ रंगकर्मी अविनंदा जी ने उसका प्रतिबिंब नाटक में देखा और अपने चिरपरिचित अंदाज में प्रसाद के रुप में धनराशि देकर कलाकारों का मनोबल बढ़ाया। आज के मुख्य अतिथि उत्तरांचल यूनिवर्सिटी के पूर्व वी.सी. राजेश बहुगुणा थे।
30 मार्च:
टी.के. अग्रवाल के निर्देश में कलामंच देहरादून ने सुशील कुमार सिंह के नाटक ‘सिंहासन खाली है’ का मंचन किया था। मंच के बीचों बीच प्लेटफॉर्म के ऊपर रखी कुर्सी सिंहासन का प्रतीक बनी रही। जाग्रति डोभाल की वेशभूषा व रुप सज्जा सटीक थी। सूत्रधार के रूप में अतुल विश्नोई की सधी आवाज़ के साथ, सोनिया वालिया, यश शर्मा, संजय गुप्ता एवं अन्य अभिनेताओं द्वारा सत्ता हथियाने की जोड़-तोड़ का यह राजनीतिक कटाक्ष सटीक था। मुख्य अतिथि सी.ए. नवीन गुप्ता थे। विशिष्ट अतिथि कुलपति सुरेखा डंगवाल मौजूद थी। इसके अलावा समाज सेवी जगदीश बाबला भी।
31मार्च:
आज दून घाटी की मेहमान संस्थाओं की श्रृंखला में यह शाम, वातायन के नाम थी। प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ पर आधारित इस नाटक के निर्देशन में मंजुल मंयक मिश्र ने महाजनी युग में संघर्षरत किसानों की बदहाली के मार्मिक चित्रों को संवेदनाओं के साथ उकेरा था। ‘होरी’ की भूमिका को बखूबी निभाने वाले धीरज सिंह रावत के साथ चट्टान की तरह खड़ी दून घाटी की जानी-मानी वरिष्ठ अभिनेत्री सुषमा बड़थ्वाल के ‘धनिया’ के बेबाक, सशक्त क़िरदार में, दर्शकों को उनके अभी हाल में किए गए ‘आछरी’ की झलक भी नजर आई। अन्य कलाकारों में प्रदीप घिल्डियाल, हरीश भट्ट, रमेंद्र प्रसाद कोटनाला, नवनीत गैरोला, संतोष गैरोला, पदम सिंह राजपूत आदि वरिष्ठ रंगककर्मियों के साथ केतन प्रकाश, वर्धन शुक्ल, वीरेंद्र गुप्ता, सोनिया वालिया आदि का अभिनय उम्दा रहा। ध्वनि- प्रभाव, मंच की साजो-सज्जा में झोपड़ी, छत्त पर पड़े उपले, टोकरी, लोटा, गिलास, मटकी, सूपा, चारपाई, पेड़, कुआं आदि ग्रामीण परिवेश को उभारने में सहायक रहे। आज के मुख्य अतिथि प्रो. हर्ष डोभाल थे।
1 अप्रैल:
विलियम शेक्सपियर के नाटक ‘औथेलो’ का नाट्य रूपांतरण दिनेश बिजल्वाण ने व सफल निर्देशन डा.अजीत पंवार ने किया। औथेलो (बिच्छा), डेसडिमोना (रुक्मा), ईयागो (बिघनी) के किरदारों को क्रमशः आयुश चौहान, साक्षी देवरानी, एवं सर्जन जोशी ने बखूबी निभाया। सैट, लाईट, संगीत व नृत्य के साथ ओम बधानी की आवाज में ‘हे रुक्मा’ गीत का एक अलग अहसास रहा। आख़िर में रुमानियत का प्रतीक- डोलता झूला एवं लाशों के अंबार के ऊपर पंदेरे का बहता पानी जिंदगी में अविश्वास से उपजी कहानी को बयां कर रहा था। मंच के अनुसार सैट का अनुपात सटीक था। आज मुख्य अतिथि गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी थे और विशिष्ट अतिथि दून यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल थी।
2 अप्रैल:
प्रतिष्ठित रंगकर्मी गजेन्द्र वर्मा के संचालन एवं नाट्य श्री सम्मान-2024 से सम्मानित एस.पी. ममगाईं की अध्यक्षता में मुख्य वक्ता-एन.एस.डी. के पूर्व कार्यकारी निदेशक दिनेश खन्ना और अनेक विशिष्ट वक्ताओं को लेकर रंगमंच-गोष्ठी व नाट्य- समारोह की स्मारिका के विमोचन के बाद, आज शाम, प्रताप सहगल लिखित ‘नाट्य- प्रस्तुति, ‘अन्वेषक’ थी। जिसका सफल निर्देशन डॉ. राकेश भट्ट ने किया था। जिसमें खगोलीय गणना व रुढ़िवादी सोच की टकराहट- मंच के बैकड्रॉप, नृत्य, संगीत व गायन के अनूठे ढंग से यह नाट्य प्रस्तुति उभर कर आई। आर्य भट्ट के बाद सूर्य के चारों ओर घूमती धरती के इस सच्चे तथ्य को उजागर करने में ‘ब्रूनो’ को भी यातनाएं सहने पड़ी थी। कलाकारों में अरुण ठाकुर, नितिन कुमार, भरत दुबे,कपिल पाल, लक्षिका पांडे, सिद्धांत शर्मा, राजित राम वर्मा ने क्रमशः बुद्ध गुप्त, महामात्य, अमात्य, आर्य भट्ट, केतकी, चूड़ामणि, चिंतामणी की भुमिकाएं बखूबी निभाई। गणेश गौरव व सोनिया नौटियाल ने नट-नटी के किरदारों के ज़रिए दृश्य बंधों को हास-परिहास के साथ भली-भांति गूंथा। आज के मुख्य अतिथि एन.एस.डी. के पूर्व कार्यकारी निदेशक दिनेश खन्ना और विशिष्ट अतिथि कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल थी।
3 अप्रैल:
आज पूरे दिन एन.एस.डी. के पूर्व कार्यकारी निदेशक -दिनेश खन्ना द्वारा थिएटर वर्कशाप संचालित की गई। शाम को ‘ए ड्रिम टीम’ द्वारा, दून यूनिवर्सिटी के ओपन एयर थियेटर में रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी ‘जीवित या मृत्य’ पर आधारित नाटक ‘द्वंद्व’ का सफल मंचन किया गया। जिसका नाट्य रूपांतरण एवं निर्देशन उज्जवल जैन ने किया। शादर्शी, तृष्णा, ज्ञान दा, पंचवीर, राधा, के किरदारों को क्रमशः मिताली पुनेठा, गीतांजलि, लव सती, अक्षत सेमवाल, अनन्या डोभाल ने बखूबी निभाया। रसोईया की भूमिका में शशांक तिवारी ने अपने किरदार के साथ न्याय किया। नन्हे बच्चे ‘प्राण’ के किरदार में नन्ही बच्ची -‘आरात्रिका राणा’, टैगोर के ‘डाकघर’ के ‘अमल’ बच्चे की मनोदशा को बरबस याद दिलाती रही। दादी और मालती का दोहरे भूमिकाओं से ‘नयोनिका’ ने अपने बंगाली संवाद से एक नया रंग भरा।
सफेद लिवास में पूरी टीम का अंग संचालन बेहतरीन था। शादर्शी अपस्टेज के प्लेटफॉर्म पर संवाद अदायगी करते वक्त अनायास पीछे की ओर लुढ़क जाना, दर्शकों के मन- मस्तिष्क में भय भरा कौतूहल पैदा करता है। खुले आसमान के नीचे इस नाट्य प्रस्तुति को एन.एस.डी. के पूर्व कार्यकारी निदेशक दिनेश खन्ना, एन.एस. डी.परास्नातक श्रीश डोभाल एवं नाट्य श्री सम्मान-2024 प्राप्त एस.पी. ममगांई ने खूब सराहा।
फ़ोटो : जयदेव भट्टाचार्य के सौजन्य से।