एक वायरस ‘कोरोना’ ने पूरी दुनिया को आतंकित कर दिया है। दूसरा एक वायरस जम्बूद्वीप भरतखंड आर्यावर्त में फैला है हिन्दुत्व और अंधराष्ट्रवाद का, जिसने देश की सामाजिक समरसता को तार-तार कर दिया है। कोरोना के वायरस का शायद जल्दी कोई इलाज मिल जाये, मगर इस दूसरे वायरस का असर दशकों तक रहेगा। देश की आजादी के साथ आये विभाजन की कटुता एक स्थान पर आ कर विस्मृति के गर्त में चली गईं। मगर सत्तर सालों के बाद उसका भूत फिर बाहर आ गया है। इस बार उसकी ताकत भी बढ़ गई है, क्योंकि मौजूदा सरकार उसे नियंत्रण में करने के बदले प्रच्छन्न रूप से उसे बढ़ाने की कोशिश कर रही है। इसका असर अबोध किशोरों और नवयुवकों पर हो रहा है। राष्ट्रपिता बापू की शहादत के दिन 30 जनवरी को एक गुमराह नौजवान ने जामिया मिल्लिया के प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों पर पिस्तौल से गोली चला कर नाथूराम गोडसे की याद ताजा कर दी। खैर इसका दोष तो दिल्ली के चुनाव प्रचार को विषैला करने की फूहड़ कोशिश में शाहीन बाग में डेढ़ महीने से नागरिकता कानून के विरोध में चल रहे धरने के सन्दर्भ में एक केन्द्रीय मंत्री के ‘गोली मारो सालों को’ वाले बयान को दिया जा सकता है। मगर आश्चर्यजनक बात तो यह है कि उम्रदराज लोग भी इस वायरस के प्रभाव में हैं। ये गैर जिम्मेदार नहीं, बल्कि अपने निजी और सामाजिक जीवन में बहुत भले और ईमानदार लोग हैं। इन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले किसी व्यक्ति का दिल भी कभी नहीं दुखाया होगा। मगर इस वक्त मीडिया और सोशल मीडिया के प्रभाव से वे इस वायरस की जकड़ में आ गये हैं। उन्हें इस बात का कोई एहसास ही नहीं है उन्हें कितनी खतरनाक बीमारी लग गई है। इस वक्त देश के समझदार लोगों की यह पहली जिम्मेदारी है कि बाकी काम सब होते रहेंगे, पहले ऐसे भले लोगों की इस वायरस से रक्षा करने में जुटें।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।