देवेश जोशी
भँवर एक प्रेम कहानी, हाल ही में प्रकाशित उपन्यास है। उत्तराखण्ड के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक, अनिल रतूड़ी, इस कृति के लेखक हैं। साहित्य, संगीत और संस्कृति के प्रति लेखक का अनुराग उनके सेवाकाल में ही जगज़ाहिर था। 18वीं शताब्दी के, लोकप्रिय व्यक्तिगत इतिहास के कथ्य वाली आत्मकथात्मक शैली में समीक्ष्य उपन्यास लिखा गया है। रचना घोषित रूप से आत्मकथा नहीं है, पर उससे बहुत दूर भी नहीं।
पर्वत, धारा और मेघ कुल तीन खण्डों के 340 पृष्ठों में, कथानायक के इकतीस सालों की कथा को समेटा गया है। इस अवधि में दूसरी सहस्राब्दी और बीसवीं सदी के अंतिम तीस साल सहित 2001 का साल भी शामिल है, जो नवगठित उत्तराखण्ड राज्य के इतिहास का पहला साल है। पर्वत खण्ड में हिमालय की लघु और शिवालिक श्रेणियों के बीच के क्षेत्र में व्यतीत लेखक के बचपन और स्कूलिंग का वर्णन है। धारा में लखनऊ-दिल्ली में व्यतीत युवावस्था और उच्च शिक्षा सहित सरकारी सेवाकाल का। मेघ में, कथानायक अपने व्यक्तित्व के द बेस्ट (संवेदनशील लेखक) को अनुकूल ऊँचाई में उद्घाटित कर आत्मसंतुष्टि प्राप्त करता है।
ग्यारहवें जन्मदिन पर कथानायक को पिता से चार्ल्स डिकन्स का प्रसिद्ध उपन्यास डेविड कॉपरफील्ड तोहफ़े में प्राप्त होता है। ये कथा का महत्वपूर्ण मोड़ है, इसलिए कि पितृविहीन डेविड की कहानी तोहफे़ में देकर पिता कथानायक को आत्मनिर्भर और मानसिक-भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाना चाहते हैं।
अंग्रेजी साहित्य की उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए कथानायक वर्ड्सवर्थ से गहरा तादात्म्य स्थापित कर लेता है। उसे लगता है टिंटर्न ऐबी कविता में, जीवन और नैतिकता को दिग्दर्शित करने की प्रकृति की सामर्थ्य, कवि उसी को समझा रहा है – नेचर नेवर डिड बिट्रै द हार्ट दैट लव्ड हर। इसी तरह 1922 में लिखी गयी नोबेल लॉरेट टी.एस. एलियट की कविता द वेस्टलैंड में बृहदारण्यक उपनिषद की पंक्तियों के उल्लेख से प्रभावित कथानायक प्राच्य पौराणिक साहित्य में भी रुचि लेने लगता है।
प्रेमकहानी के कथ्य वाले समीक्ष्य उपन्यास में प्रेम के कई रंग दिखते हैं। इसमें वात्सल्य है, किशोरावस्था का प्रेम है, युवावस्था का प्रेम है, वैवाहिक प्रेम है, प्रकृति से प्रेम है, नैतिकता से प्रेम है और सर्वोपरि साहित्य से प्रेम है। मीरा नायक अभय के लिए मात्र प्रेमिका नहीं है, उसकी प्रेरणा भी है। अभय कहता भी है कि तुम मेरे लिए वैसी ही हो जैसे दान्ते के लिए बियैट्रिस थी। कथ्य के केंद्र में भँवर भी है, व्यवस्था का भँवर, जिसकी परिणति को समझते हुए भी सहकर्मियों की उसके केन्द्राभिमुख गति की होड़ नायक को अचम्भित करती है, ओर जिससे बचने की एक ही राह, नदी को ही अलविदा कहना, सूझती है। सरकारी अधिकारियों को जिन तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है, वो कटु यथार्थ है। इस भँवर में अच्छों पर अपकेंद्रीय बल लगता है और लचीलों पर अभिकेंद्रीय। व्यवहारिक जो होते हैं वो भँवर के बीचोंबीच भी सकुशल रहना सीख जाते हैं।
उपन्यास में सीन-शिफि्ंटग के लिए, टाइम-स्टैम्प के रूप में, देश-दुनिया की लैंडमार्क घटनाओं (खास कर राजनीति और खेल जगत की) को विश्लेषित करते हुए, अत्यंत खूबसूरती से प्रयोग किया गया है। निश्छल-हृदय लेखक की सीधी-सरल भाषा में प्रवाह है। स्थान विशेष का स्थलाकृतिक वर्णन हो या पात्रों का नख-शिख वर्णन, दोनों में ही सिद्धहस्तता स्पष्ट दिखती है। शिल्पगत चमत्कार के बगैर भी व्यक्तिगत इतिहास को कितने रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है, ये पढ़ने के बाद ही पता चल सकता है। नाटकीय उतार-चढ़ाव और भावनात्मक-वैचारिक द्वंद्व से खूबसूरती के साथ बुनी गयी ये प्रेमकथा, एक पहाड़ी युवक की उपलब्धियों और उसके विद्रोह की कथा भी है। विद्रोह रूढ़ परम्पराओं का हो या नौकरी की रूढ़ परिपाटियों का, कथानायक अभय नौटियाल आत्मा की आवाज़ पर निर्णय लेने में क्षण भर का भी विलम्ब नहीं करता है।
समीक्ष्य उपन्यास में नरेटर केशव के माध्यम से किया गया म्यूज़ इनवोकिंग का प्रयोग भी सहज ही ध्यानाकर्षित करता है। नायक के द्वारा अपनी पुत्री राधा से कही गयी ये बात तो सूक्ति की तरह सुंदर और सर्वकालिक सत्य है – बेटा, उन शिवालिक पहाड़ों के पार तुम्हारी नियति है, जो तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।
अभय ने पिता का सपना पूरा किया, माँ का आंचल खुशियों से भरा, उच्चाधिकारियों का चहेता और अधीनस्थों में लोकप्रिय बना रहा, जनहित के लिए जान की परवाह किये बिना जूझता रहा और स्वार्थ व लालच से कोसों दूर रह कर न्याय के कल्याणकारी शासन के समर्पित सिपाही के रूप में कार्य करता रहा। सर्वाच्च प्रतियोगी परीक्षा पास करके भी वो ज़मीन से जुड़ा रहा और उच्च अधिकारी बनने के बावजूद अपने अंदर उसने एक संवेदनशील इंसान को ज़िंदा रखा। ये सब होते हुए भी उसे हमेशा, अपने आसपास एक भँवर का अहसास होता रहा। क्यों, कैसे का उत्तर जानने के लिए तो स्वयं ही इस भँवर : एक प्रेम कहानी से गुजरना होगा।
समीक्ष्य कथा-संग्रह, सुंदर कलेवर में, विनसर पब्लिसिंग कम्पनी, देहरादून द्वारा प्रकाशित किया गया है। मूल्य तीन सौ पैंतालीस रुपए मात्र है।
कृति – भँवर : एक प्रेम कहानी
लेखक – अनिल रतूड़ी
प्रकाशक – विनसर पब्लिसिंग कम्पनी, देहरादून
मूल्य – रु0 345/-