विवेकानंद माथने
भारत में बढ़ती आत्महत्याऐं एक चिंता का विषय है। वैसे आत्महत्याओं के कई कारण दिये जा सकते है। लेकिन आत्महत्या मुक्त भारत की दिशा में आगे बढ़ने के लिये आत्महत्याओं के सही कारणों को जानकर उपाय करना जरुरी है। एनसीआरबी के रिपोर्ट के अनुसार भारत में हुई आत्महत्याओं का आर्थिक, व्यवसायिक, शैक्षणिक और आयु के आधार पर विश्लेषण करने पर जो तस्वीर उभरती है, उससे स्पष्ट होता है कि बढ़ती आत्महत्याओं के लिये सरकारी नीतियां अधिक जिम्मेदार है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2022 में कुल 1 लाख 70 हजार 924 आत्महत्याऐं हुई है और 1 लाख लोगों में 12.4 लोगों की आत्महत्या याने आत्महत्याओं का दर 12.4 रहा है। भारत में प्रतिदिन 468 आत्महत्याऐं हुई है। 2014 में कुल 1 लाख 31 हजार 666 आत्महत्याऐं हुई थी और आत्महत्याओं का दर 10.6 रहा था। पिछलें 9 साल में आत्महत्याऐं और उसका दर निरंतर बढ़ता जा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार 2019 में दुनिया में 7 लाख 3 हजार आत्महत्याऐं हुई है। इसमें से 77 प्रतिशत आत्महत्याऐं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुई है। वैश्विक स्तर पर 15 से 29 साल के बच्चों में आत्महत्या मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण रहा है। आत्महत्या की दर भेदभाव के शिकार हुये कमजोर समूह में अधिक है। संख्या की दृष्टिसे आत्महत्याओं में भारत दुनिया में नंबर एक पर है।
आत्महत्याओं के लिये मानसिक स्वास्थ्य, व्यक्तिगत समस्याऐं, सामाजिक और आर्थिक कारक प्रमुख कारण माने जाते है। मानसिक कारकों में अवसाद, चिंता, तनाव और सामाजिक-आर्थिक कारकों में गरीबी, बेरोजगारी, कर्ज, सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव आत्महत्या की जोखिम को बढ़ाते है। संघर्ष, आपदा, हिंसा, दुर्व्यवहार, नुकसान का अनुभव और अकेलेपन की भावना आत्मघाती व्यवहार से दृढता से जुडी हुई है। संकट के क्षणों में आवेग में अधिक आत्महत्याऐं होती है।
शैक्षणिक स्थिति के आधार पर दसवीं कक्षा से कम पढ़े67.9 प्रतिशत और दसवी से बारवीं कक्षा तक पढ़े15.9 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्याऐं की है। कुल आत्महत्याओं में 12 वीं कक्षा तक पढ़े83.8 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की है। और 9 प्रतिशत लोगों के शिक्षा की जानकारी नही है। इसमें से बारवीं से कम की संख्या जोड़ने पर बारवी तक पढ़े लोगों में आत्महत्याऐं करनेवाले लोगों की संख्या में और बढ़ोतरी होगी। आत्महत्याओं में बारवी से अधिक पढ़े7.2 प्रतिशत लोगों का समावेश है।
आर्थिक स्थिति के आधार पर वार्षिक 1 लाख रुपये से कम आय वर्ग में याने मासिक 8 हजार रुपये से कम मासिक आय वर्ग में 64.3 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्याऐं की है। और वार्षिक 1 से 5 लाख रुपये आय वर्ग याने मासिक 8 हजार से 42 हजार रुपये आय वर्ग में 30.7 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्याऐं की है। कुल आत्महत्याओं में 5 लाख से कम आय वर्ग में 95 प्रतिशत लोगों ने और 5 लाख से अधिक आय वर्ग में 5 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की है।
व्यवसायिक स्थिति के आधार पर गृहिणी 14.8 प्रतिशत, विद्यार्थी 7.6 प्रतिशत, बेरोजगार 9.2 प्रतिशत, स्वयं रोजगार करने वाले 11.4 प्रतिशत, खेती कार्य करने वाले 6.6 प्रतिशत, दैनिक मजदूरी करनेवाले 26.4 प्रतिशत लोग है। वेतन पानेवाले 9.6 प्रतिशत और सेवानिवृत्त 0.8 प्रतिशत है। अन्य 13.5 प्रतिशत है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि लगभग 76 प्रतिशत आत्महत्याऐं असुरक्षित रोजगार के क्षेत्र में हुई है। अज्ञात आंकडों में से संख्या जोड़ने से यह आंकडा और बढेगा।
आयु के आधार पर कुल आत्महत्या पीडितों में सबसे अधिक 59 हजार 108 याने 34.58 प्रतिशत आत्महत्या 18 से 30 साल आयु के लोगों की हुई है और 54 हजार 351 याने 31.8 प्रतिशत आत्महत्या 30 से 45 साल आयु के लोगों की हुई है। व्यक्ति के आर्थिक और सामाजिक स्थिरता पाने के लिये यह उम्र सबसे महत्वपूर्ण होती है।
कुल आत्महत्याओं में 5 लाख से कम आय वर्ग में 95 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की है। 12 वीं कक्षा तक पढ़े 83.8 प्रतिशत लोगों ने आत्महत्या की है। 76 प्रतिशत से अधिक आत्महत्या असुरक्षित रोजगार के क्षेत्र में हुई है। रोजगार और आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने की उम्र में 66.38 प्रतिशत आत्महत्या हुई है।
भारत में कुल आत्महत्याओं का आर्थिक, व्यवसायिक, शैक्षणिक और आयु के आधार पर विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि आत्महत्याओं के लिये गरीबी, शिक्षा की कमी और असुरक्षित रोजगार अधिक जिम्मेदार है। यह आंकडे भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा दर्शाते है। खेती किसानी की दुर्दशा और बढ़ती बेरोजगारी से युवाओं में बढ़ते तनाव की स्थिति को दर्शाते है।
देश में 95 प्रतिशत किसानों की औसत आय 1 लाख रुपये से कम है। उनकी आय की कोई गारंटी नही है। किसानों के बेटी बेटों की शादी होने में दिक्कत आ रही है। सरकार कहती है कि किसानों के सुशिक्षित बच्चे खेती नही करना चाहते है। उपरोक्त आकडों से यह भी स्पष्ट होता है कि जिन कारकों के कारण आत्महत्याऐं हो रही है, उन सभी में किसान परिवार के सदस्य किसी ना किसी कारकों से जुडे है। लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या कम दर्ज करके उसे छुपाने का प्रयास किया गया है।
खेती कार्य में किसान का पूरा परिवार जुड़ा होता है। केवल खेती कार्य में खेती नाम पर नही होने या कर्ज ना होने के कारण किसी आत्महत्या को किसान की आत्महत्या दर्ज न करना किसानों के प्रति साजिश है। किसान परिवार में हुई आत्महत्या को खेती कार्य में दर्ज करना चाहिये।
उद्योग और सार्वजनिक क्षेत्र को निजी कंपनियों के हाथों सौपा जा रहा है। अब व्यापार को भी कारपोरेट्स के हवाले किया जा रह है। पारिवारिक खेती को कारपोरेट खेती में बदला जा रहा है। देश के चंद कारपोरेट घरानों के पास संपत्ति इकठा हो रही है। दुसरी तरफ 80 करोड लोगों को 5 किलो अनाज पर आश्रित बनाया गया है।
भारत सरकार आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या और दर को रोकने में पूर्णता असफल हुई है। सभी को स्वास्थ्य सुविधा और हाथों को काम देनेवाली शिक्षा देने में असफल हुई है। किसान और असंगठित कामगारों को सुनिश्चित आय प्रदान करने में असफल हुई है। बेरोजगारी दूर करने के उपाय करने और एमएसएमई की नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने में असफल हुई है। भारत सरकार की गलत नीतियों के कारण आत्महत्याओं के कारकों में बढ़ोतरी होने से आत्महत्याऐं लगातार बढ़ रही है।
फोटो इंटरनेट से साभार