प्रदीप पांडे
आज नैनीताल में लगातार हो रही बारिश के बीच कुमाऊं यूनिवर्सिटी के एचआरडीसी में बीडी उनियाल ट्रस्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम बीडी उनियाल “पर्वतीय” स्मृति समारोह आज आयोजित था इसमें विशेष आमंत्रित वक्ता के रूप में श्री नवीन जोशी का व्याख्यान एक हासिल की तरह था। नवीन दा दैनिक हिंदुस्तान के संपादक रहे और साहित्य कर्मी हैं और “दावानल”,”टिकटशुदा रुक्का”,”देवभूमि डेवलपर्स”जैसी सशक्त कृतियों के रचनाकार है, उनका व्याख्यान “पत्रकारिता के वर्तमान संकट” विषय पर था.
नवीन दा पहले हमें सत्तर के दशक में ले गए जब समाचार पत्र प्रबुद्ध संपादकों के द्वारा चलाए जाते थे और प्रबंधन ये हिमाकत नहीं करता था कि उनकी कार्यशैली में दखल दे और तो और प्रबंधन के लोग संपादकीय कक्ष में सामान्यतः जाते तक नहीं थे। फिर हालात बदलने शुरू हुए और यहां तक पहुंच गए कि आज समाचार मीडिया बुद्धिजीवी संपादकों द्वारा नहीं आईआईटी और आईआईएम के पेशेवर लोगों द्वारा चलाए जाने लगे जिनका मकसद मुनाफा और मुनाफे में उत्तरोत्तर वृद्धि है। स्थिति ऐसी हो गई कि आज प्रेस के लिए “फैक्ट्री” और अखबार के लिए “प्रोडक्ट “शब्द चलन में आ गए,इस सब का नतीजा ये रहा कि अखबार व अन्य मीडिया एक FMCG वस्तु यानि साबुन, टूथपेस्ट की मानिंद कोई चीज हो गए जो जनता के असल सरोकारों , मुद्दों के प्रति संवेदनशील नहीं रह गए कि वे किसानों की आत्महत्या,नदियों के सूखने, पहाड़ों के टूटने के लिए अपने संवाददाताओं से अध्ययन करवाएं ,वे इतनी मेहनत करने में क्यों अपने resources जाया करें इससे बेहतर है कि शहर में किसी सेलिब्रिटी के आने,किसी हीरोइन के कपड़ों,या किसी अन्य सतही मुद्दे को बड़ा बना कर पेश कर दें ।
नवीन दा ने बताया कि किस तरह अखबारों ने सांप्रदायिकता को एक हॉट केक की तरह इस्तेमाल कर अपना सर्कुलेशन बेइंतहा बढ़ाया।,उन्होंने बताया कि आज टीवी डिजिटल मीडिया और प्रिंट मीडिया की आमदनी अरबों नहीं बल्कि खरबों रूपयों में हो रही है किस तरह आज मीडिया सत्ता का स्टेनोग्राफर बन गया है।
नवीन जोशी जी ने कई विषयपरक वाकिए सुनाए मसलन स्वतंत्र भारत अखबार को एक स्क्रैप डीलर (बोले तो )कबाड़ी ने खरीद लिया अब अखबार उनका था वे खूब दखल देने लगे उन जनाब की हरकतें बड़ी बेज़ा भी होती थी एक बार जब उनसे पूछा कि आपने आखिर इस अखबार को क्यों खरीदा तो उन्होंने बताया कि इसे खरीदने के बाद उनका रुतबा बढ़ गया है पहले उनके ट्रक पकड़े जाते थे तो रिश्वत देनी पड़ती थी अब उनके रिपोर्टर ही उनके ट्रकों को छुड़वा लेने के लिए काफी हैं।
इस खौफनाक मंजर के बीच उन्होंने सोशल मीडिया और कुछ डिजिटल प्लेटफार्मस को उम्मीद की किरण बताया और बताया कि आज किस तरह आप अपनी बात सोशल मीडिया के द्वारा व्यापक स्तर तक पहुंचा सकते हैं उत्तराखंड में हाल में घटित अंकिता भंडारी मर्डर केस इसी समानांतर मीडिया की सक्रियता के कारण सामने आ सका।
नवीन दा के इस लेक्चर को आयोजन समिति अगर ऑनलाइन डाल दे तो बड़ा नेक काम होगा