देवेन मेवाड़ी
हे कथा के रसिको, चलो आज आपको आधी सदी से भी पहले की क्रैंक्स कथा सुनाता हूं ।…
वर्ष था सन् 1965। तब हम नैनीताल में आगरा यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध कालेज डीएसबी में पढ़ते थे। ग्रेजुएशन कर चुके थे। तब अनुशासन का पाठ पढ़ने के लिए एनसीसी ले ली थी। उन दिनों एनसीसी में बहुत कड़े अनुशासन का पालन करना पड़ता था। विज्ञान का विद्यार्थी था, इसलिए साथियों ने समझाया, एनसीसी के लिए समय नहीं मिल पाएगा। फिर भी मैंने एनसीसी ले ली थी। शुरूआती दिनों की एक परेड में मेरा परिचय नैनीताल के ही एक कैडेट से हो गया था जिसने अपना नाम बताया था -लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही। वह कहानियां लिखता था और तब मैं भी कहानियां लिख रहा था। हमारी कहानियां ‘कहानी’, ‘माध्यम’ और ‘उत्कर्ष’ जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं में छप रही थीं। बटरोही तो ‘ज्ञानोदय’ और ‘धर्मयुग’ में भी छपने लगा था। कॉलेज के हिंदी विभाग की कहानी प्रतियोगिता में मेरी कहानी को प्रथम पुरस्कार मिला था । बटरोही उसी हिंदी विभाग से एम.ए. कर रहा था। हम दोनों की रुचि कहानी लेखन में होने के कारण हम दोनों लंगोटिया दोस्त बन चुके थे। अधिकांश समय साथ रहते थे और कहानियों पर चर्चा करते रहते।
उन्हीं दिनों की बात है। एक दिन हमारे मन में आया कि क्यों न क्रिएटिव रुचि वाले विद्यार्थियों को एक मंच पर लाया जाए। विद्यार्थियों में किसी की रुचि कहानी-कविता लिखने में होगी तो कोई चित्र बनाता होगा। किसी की रुचि डिबेट में होगी तो कोई अच्छा खिलाड़ी हो सकता है । यह सोच कर हम दोनों ने एक मंच या एसोसिएशन बनाने की बात सोची । लेकिन, हम एसोसिएशन का नाम परंपरागत नाम की तरह नहीं रखना चाहते थे। जानते थे, यह मंच या एसोसिएशन ऐसे विद्यार्थियों की होगी जो कुछ अलग तरह से सोचते हैं। पढाई के अलावा किसी और चीज में गहरी रुचि होने के कारण ऐसे लोग ‘क्रैक’ या सनकी माने जाते थे। तो, हमने तय किया कि हमारी यह एसोसिएशन क्रैक्स की एसोसिएशन होगी। इसलिए एसोसिएशन का नाम रखा- ‘द क्रैक्स’। यानी, सनकी लोग।
फिर करीबी दोस्तों से चर्चा की यानी मुहम्मद सईद, वीरेन डंगवाल, श्याम टंडन, सुबोध दुबे और वेदश्रवा, डी.एस.लायल आदि से। सबको विचार पसंद आया। तब हम लोगों ने सोचा कि एसोसिएशन का एक संरक्षक भी तो होना चाहिए जिसे हम संरक्षक नहीं बल्कि ‘सुपर क्रैक’ कहेंगे। तो कौन हो ‘सुपर क्रैक’? वह भला अभिभावक के समान और विद्वान व्यक्ति हमारे प्रिंसिपल डॉ. देवीदत्त पंत के अलावा कौन हो सकता था!
यह प्रस्ताव लेकर हमारा मुखिया साथी बटरोही डॉ. पंत से मिला। वे पूरी बात सुन कर बहुत खुश हुए कि इस एसोसिएशन से रचनात्मक रुचियों वाले विद्यार्थी एक-दूसरे के करीब आएंगे। उन्होंने संस्था का नाम देखा तो बोले- ‘‘इस नाम में अगर केवल एक अक्षर जोड़ दिया जाए तो वह पढ़ने-सुनने में अच्छा लगेगा जबकि अर्थ वही रहेगा जो तुम लोग चाहते हो। यह कह कर उन्होंने ‘द क्रैक्स’ में ‘एन’ जोड़ कर उसे ‘क्रैंक्स’ बना दिया। अर्थ वही- क्रिएटिव सनकी या सिरफिरे!
‘सुपर क्रैंक’ बनने के लिए अनुरोध करने पर डॉ. पंत ने सहर्ष हामी भर दी। इस तरह डॉ. देवीदत्त पंत ‘द क्रैंक्स’ के सुपर क्रैंक्स बन गए।
‘द क्रैंक्स’ के फाउंडर क्रैंक्स यानी फाउंडर मेंबर बने- बटरोही, देवेन मेवाड़ी, मुहम्मद सईद, वीरेन डंगवाल, पुष्पेश पंत, श्याम टंडन, सुबोध दुबे, ओम प्रकाश गंगोला, वेदश्रवा, डी.एस लायल, मिताली गांगुली और बसंती बोरा। इसके बाद हमने इंटरव्यू लेकर नए क्रैंक्स की तलाश शुरू की। नए साथी जुड़ते गए।
वीरेन डंगवाल के क्रैंक बनने का किस्सा भी मज़ेदार है। वह मिलने आया और बोला-” मुझे भी द क्रैंक्स का मेंबर बनना है।”
बटरोही ने पूछा- “तुम क्या क्रिएटिव काम करते हो?”
उत्तर में उसने कहा-” क्यों तुम लोग क्या करते हो?”
“हम कहानियां लिखते हैं”, बटरोही ने कहा।
“इसमें कौनसी बड़ी बात है। कहानी मैं भी लिख सकता हूं,” उसने जवाब दिया।
तब हम लोगों ने कहा-“ठीक है, कहानी लिख कर ले आना।”
आश्चर्य की बात यह कि वह अगले ही दिन कहानी लिख कर ले आया। कहानी का नाम था- ‘खरगोश’। वह अनोखी कहानी थी। और, बड़ी बात यह कि कवि वीरेन डंगवाल ने अपने जीवनकाल में वही एक कहानी लिखी। (पता लगा है कि वीरेन की उसी ‘खरगोश’ कहानी पर फिल्मकार लवराज ने हाल ही में अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म ‘खरगोश’ बनाई है।)
एक और रहस्य। जैसे मैं देवेन्द्र मेवाड़ी था, वैसे ही हमारा वह नया क्रैंक साथी वीरेन्द्र डंगवाल था। देवेन्द्र टंगट्विस्टर शब्द होने के कारण इसका उच्चारण थोड़ा कठिन था।इसलिए मैंने कहानियां लिखने के लिए अपना नाम ‘देवेन एकाकी’ रख लिया। एकांत मुझे पसंद था। एक दिन देवेन सुन कर वीरेन्द्र बोला- यार यह नाम तो अच्छा लग रहा है। मैं भी वीरेन हो जाता हूं। इस तरह हमारा वह दोस्त वीरेन्द्र डंगवाल ‘वीरेन डंगवाल’ हो गया।
खैर, ‘द क्रैंक्स’ बन जाने के बाद हमने उत्साहित होकर ‘द क्रैंक्स वीक’ मनाने का निश्चय किया। इसके लिए एक पुस्तिका तैयार की जिसके आवरण पर एम.एससी. बॉटनी के मेरे सहपाठी चित्रकार रमेश थपलियाल ने हम कुछ क्रैंक्स का एक कार्टून चित्र बनाया। रमेश के कार्टून उन दिनों धर्मयुग तथा कुछ अन्य पत्रिकाओं में छपने लगे थे। वह कार्टून चित्र हमने पुस्तिका के आवरण पर छापा जो यहां दिया जा रहा है। चित्र में दाहिनी ओर रमेश थपलियाल है जिसने मेरी बांह के भीतर अपनी बांह डाली हुई है। नीचे ज़मीन पर हमारा नटखट साथी वीरेन डंगवाल है। मेरी बगल में बटरोही, उसके बाद सईद, ओमप्रकाश और श्याम टंडन। श्याम के पीछे सुबोध दुबे।
‘द क्रैंक्स वीक’ के उद्घाटन के लिए हमने एक अलग-अनोखे व्यक्तित्व के धनी आचार्य कृपलानी को आमंत्रित किया। हमारे साथी क्रैंक सुबोध दुबे उन्हें कार में कालेज के एएन सिंह हॉल तक लाए। अपने उद्घाटन भाषण की शुरूआत ही आचार्य कृपलानी ने इस वाक्य से की कि ‘‘भारत में केवल एक ही क्रैंक हुआ है और वह क्रैंक था महात्मा गांधी। उसने अहिंसा से देश को आजाद करने का स्वप्न देखा और उसे पूरा किया।’’
हम सभी लोगों ने तब ए एन सिंह हॉल के सामने आचार्य कृपलानी के साथ एक ग्रुप फोटो खिंचवाया था।
‘द क्रैंक्स वीक’ के दौरान हमने एक चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया, ज्यां पॉल सार्त्र और अन्य अस्तित्ववादी दार्शनिकों के अस्तित्ववाद पर एक व्याख्यान आयोजित किया, ‘क्या प्रेम विवाह असफल होते हैं’ जैसे उन दिनों के लिए विवादास्पद विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित की, कहानियां और कविताएं लिखी गईं तथा खिलाड़ी, विद्यार्थियों ने खेल-कूद की गतिविधियों में भाग लिया।
यह डीएसबी कालेज में आयोजित पहली चित्र प्रदर्शनी थी जो बहुत सफल रही। ए एन सिंह हॉल की दीवारों पर चित्रकार सईद, राजनीति विज्ञान के छात्र आर एस टोलिया और अन्य कई विद्यार्थियों की पेन्टिंग्स तथा अन्य विद्यार्थियों के बनाए चित्र प्रदर्शित किए गए। दर्शकों की सम्मति के लिए एक रूलदार कॉपी भी ‘विजिटर्स बुक’ के रूप में रखी गई जिसमें दर्शकों ने अपनी सम्मतियां लिखीं। मुहम्मद सईद तथा आर एस टोलिया के चित्रों पर कई दर्शकों ने विस्तार से प्रशंसात्मक टिप्पणियां लिखीं। भौतिक विज्ञान के छात्र उमेश पांडे ने लिखा- “इस प्रदर्शनी के विविध बिंब मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। मैं श्री आर एस टोलिया और सईद के चित्रों से बहुत प्रभावित हुआ। श्री टोलिया के चित्रों में जीवन शक्ति का प्रवाह यानी जीवन में आस्था दिखाई देती है, जबकि श्री सईद के कैनवस बहुत सफलतापूर्वक जीवन चरम आनंद और दुखों की अनुभूति को अभिव्यक्त करते हैं। कुल मिला कर यह एक अविस्मरणीय प्रयास है और द क्रैंक्स एसोसिएशन ने यह सराहनीय कार्य किया है।”
अस्तित्ववाद पर बनाए गए देवेन मेवाड़ी के कैक्टस के प्रतीकात्मक चित्र को देखकर अंग्रेजी की एक छात्रा ने दो पेज लंबी टिप्पणी लिखी। उमेश पांडे भौतिक विज्ञान में एमएससी करने के बाद राजस्थान के मेयो कालेज में भौतिकी पढ़ाने के बाद अमेरिका चले गए। उन्होंने वहां कुछ वर्ष न्यू मैक्सिको तथा अन्य कॉलेजों में भौतिकी पढ़ा कर रिटायर हुए।
बातों-बातों में ‘द क्रैंक्स’ की नींव रखी गई थी, लेकिन कौन जानता था कि एक दिन विद्यार्थियों की यह एसोसिएशन डीएसबी कॉलेज के इतिहास की एक घटना बन जाएगी। इससे जुड़े रचनात्मक रुचियों वाले विद्यार्थी अपनी रुचि के क्षेत्र में आगे बढ़ते और उन्होंने अपनी मंजिलें खोजीं। लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ हिंदी के जाने-माने लेखक -उपन्यासकार हैं। वे कुमाऊं विश्वविद्यालय में हिंदी के विभागाध्यक्ष तथा कला संकाय के डीन रहे। वे सांस्कृतिक आदान प्रदान योजना के तहत कुछ वर्ष हंगरी में रहे और कुछ यूरोपीय देशों की यात्रा की। डॉ.पुष्पेश पंत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे और जाने-माने लेखक तथा मीडिया विशेषज्ञ हैं। देवेंद्र मेवाड़ी प्रांतीय वन सेवा में दो बार चुने गए लेकिन प्रशिक्षण के लिए पत्र उन्हें आज तक नहीं मिला है। वे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,दिल्ली में जेनेटिक्स तथा प्लांट ब्रीडिंग के क्षेत्र में मक्का की फसल पर अनुसंधान कार्य करके पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय पहुंचे और लंबे समय तक ‘किसान भारती’ पत्रिका के संपादक रहे, स्नातक स्तर पर पत्रकारिता पढ़ाई और फिर बैंकिंग उद्योग में जनसंपर्क का दीर्घ अनुभव लेकर चीफ-जनसंपर्क के पद से रिटायर हुए। बाल साहित्य के लिए वे केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के ‘बाल साहित्य पुरस्कार’ और विज्ञान लेखन के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं। मुहम्मद सईद भारत से पैदल रवाना होकर खाड़ी देशों को पार करके अनेक देशों की पैदल यात्रा करते हुए फ़िनलैंड के सागर तटीय तुर्कू शहर में जा बसे और वहीं के नागरिक बन गए। वहां चित्रकारी के साथ-साथ कविताएं लिखते रहे और हंगेरियन भाषा के उपन्यासों का हिंदी अनुवाद किया। वीरेन डंगवाल रूहेलखंड विश्वविद्यालय के बरेली कालेज में हिंदी के प्रोफेसर रहे, अमर उजाला के संपादक भी रहे और उन्होंने अपने अनोखे शिल्प में आमजन से जुड़ी अद्भुत कविताएं लिखीं जिसके लिए उन्हें केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आर. एस. टोलिया भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) में चुने गए, अनेक उच्च प्रशासनिक पदों पर रहे और उत्तराखंड के मुख्य सचिव के साथ ही उत्तराखंड के विशेषज्ञ लेखक भी रहे। डॉ. सुबोध दुबे ने हिंद लैंम्प्स, शारदा ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन, आगरा तथा संस्कृति यूनिवर्सिटी, मथुरा में उच्च पदों पर काम किया। डॉ. श्याम टंडन शिक्षा के क्षेत्र में रहे और प्रोफेसर रिटायर हुए। ओम प्रकाश गंगोला भी शिक्षा के क्षेत्र में उच्च पदों पर रहे, कहानियां लिखीं और फिर योगोदा सत्संग सोसाइटी की ओर आकर्षित होकर अध्यात्म की दिशा में आगे बढ़ गए। मिताली गांगुली आगे चल कर मिताली मुखर्जी हो गईं, सफल शिक्षिका रहीं, कहानियां लिखीं और इन दिनों कोलकाता में रह कर अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदी में बहुत मार्मिक और अविस्मरणीय स्मृति लेख लिख रही हैं। अन्य साथियों के बारे में पता कर रहे हैं। और हां, बॉटनी के मेरे कार्टूनिस्ट साथी रमेश थपलियाल भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) से वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद से रिटायर होकर दून घाटी में ही रह रहे हैं।