गोविन्द पंत ‘राजू’
बीजापुर, छत्तीसगढ़ के 36 वर्षीय पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने एक बार फिर जमीनी पत्रकारिता कर रहे निष्पक्ष पत्रकारों के सामने आने वाले खतरों की भयावहता को उजागर किया है। मुकेश न केवल एक समर्पित पत्रकार थे बल्कि वे अपनी जान पर खतरे उठाकर भी पत्रकारिता का कर्तव्य निभा रहे थे। किसी भी तरह अधिक से अधिक धन कमाने के लालच में अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को खामोश करा देना धन पशुओं का पुराना खेल है। सत्ता और प्रशासन भी इस काम में उनके मददगार बना रहता है। मुकेश की हत्या ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ में ही हुई कामरेड शंकर गुहा नियोगी की नृशंस हत्या की याद ताजा कर दी है. आदिवासियों के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे योगी को उनके घर में ही दुर्ग के एक बड़े शराब कारोबारी ने मरवा दिया था।
मुकेश की हत्या और उत्तराखंड के ऐसे ही बहादुर पत्रकार उमेश डोभाल की हत्या में भी काफी समानताएं हैं। मुकेश चंद्राकर 120 करोड़ की सड़क के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अपने ही एक रिश्तेदार ठेकेदार की साजिश का शिकार हुए। उनकी हत्या करके उनके शव को ठेकेदार के परिसर में सेप्टिक टैंक में चिनवा दिया गया। स्थानीय स्तर पर पत्रकारों ने आवाज न उठायी होती तो शायद मुकेश की हत्या का कभी खुलासा भी नहीं हुआ होता। ठीक ऐसा ही उमेश डोभाल के मामले में भी हुआ था। शराब माफिया ने 25 मार्च 1988 को पौड़ी के एक होटल में उमेश की हत्या करने के बाद उसके शव को ठिकाने लगाने के लिए नदी के किनारे गहराई में दफना दिया था।
तब स्थानीय स्तर पर राजेंद्र रावत राजू, ओंकार बहुगुणा ‘मामू’ और पौड़ी के अनेक महत्वपूर्ण लोगों ने उमेश की गुमशुदगी के खिलाफ आवाज उठाई। शराब माफिया के गुंडो ने उस आवाज को भी चुप कराने में स्थानीय पुलिस की मदद से अपने कारनामे शुरू किये। लेकिन मामला पौड़ी, नैनीताल, दिल्ली, लखनऊ, चंडीगढ़, भोपाल, मुंबई आदि तक जा पहुंचा । देश भर के पत्रकारों ने उस मामले पर जबरदस्त आक्रोश व्यक्त किया, आवाज उठाई, आंदोलन किया और अंततः 9 अगस्त 88 को जांच सीबीआई को सौंप दी गई। इस जांच में स्पष्ट हुआ कि शराब माफिया मनमोहन सिंह नेगी ने उमेश डोभाल की हत्या करवाई थी। नेगी और उसके अनेक गुंडो को सीबीआई ने गिरफ्तार किया।
उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट देशभर के जागरूक नागरिकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और समर्पित पत्रकारों का आह्वान करता है कि मुकेश चंद्राकर की हत्या को एक सामान्य हत्या के तौर पर न लेकर इस मुद्दे को देश भर में पत्रकारिता के सामने आ रही चुनौतियों, दबावों, संकटों और हिंसा के खिलाफ एक बड़ी आवाज बनाने के लिए अपने-अपने स्तर पर मशाल उठाएं।
मुकेश चंद्राकर को उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि और नमन।