समाचार डैस्क
30 मई 1930 को टिहरी के रवाईं के तिलाड़ी स्थित मैदान में सैकड़ों संघर्षशील लोगों की शहादत हुई थी। जंगलों पर अपने अधिकारों के लिए तिलाड़ी मैदान में जमा हुए लोगों को तत्कालीन टिहरी राजा की फ़ौज ने तीन तरफ से घेर लिया। बिना किसी चेतावनी के राजा की फ़ौज ने निहत्थे लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई। कुछ गोलियों के शिकार हुए, कुछ ने बचने के लिए यमुना में छलांग लगा दी, वे नदी की तेज धारा में बह गए।
तिलाड़ी में लोग किसलिए लड़ रहे थे? क्योंकि वनों पर उनके हक़ हकूकों को छीना जा रहा था। लेकिन 92 साल बाद अभी भी उत्तराखंड की जनता सिर्फ वनों से ही नहीं, बल्कि सारे संसाधनों और अपने बुनियादी हक़ों से वंचित है।
मज़दूरों और युवाओं की स्थिति बद से बदतर हो रही है। कोविड 19 महामारी में हज़ारों उत्तराखंडियों की जान चली गयी। लॉकडाउन के प्रतिकूल प्रभाव से अभी बहुत गरीब परिवारों को कुपोषण और बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार दो तिहाई से ज्यादा आम महिलाओं का कहना है कि वे अपने बच्चों को ठीक से खाना नहीं खिला पा रही हैं। इस गंभीर स्थिति में सरकार बहुत से और परिवारों को राशन से वंचित कर रही है।
साथ साथ में विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी कंपनियों को राज्य की नदियों, वनों एवं ज़मीन को बेचा जा रहा है । भू कानून को खत्म कर राज्य की सारी ज़मीनों की लूट के लिए सारे दरवाजे खोल दिए गए हैं। वन अधिकार कानून 2006 पर अमल कहीं नहीं दिख रहा है। लोहारी के गांववासियों को अपना शताब्दियों पुराना गांव 48 घंटों के अंदर खाली करना पड़ा। गरीबों और मज़दूरों की बस्तियों को हटाने की धमकी दी जा रही है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर, विकसित राज्य बनने के बहाने, लोगों को बेघर किया जा रहा है। लेकिन बड़े बिल्डर और कंपनी के अतिक्रमण के लिये वन अधिकार कानून और पर्यावरण के नियमों की धज्जियाँ उडाई जा रही हैं।
इन सब पर सरकार मूकदर्शक बन कर बैठी हुई है। उल्टा परियोजनाओं के नाम पर बड़े कंपनियों को 29 अलग अलग प्रकार की कर छूट और सब्सिडी दी जाती हैं। साथ साथ में करोड़ों रुपये खर्च कर झूठी ख़बरों को फैलाया जा रहा है, जिससे लगातार नफरत, जातिवाद और भीड़ की हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है।
इन सालों में हम लोगों ने देख लिया कि विकास और रोज़गार के नाम पर सारी नीतियों को बड़े कॉर्पोरेट के हितों में बनाया गया है। सच्चाई यह है कि चंद कंपनियों को ऐसे फायदा पहुंचवाने से रोज़गार कहीं नहीं बनता है। उत्तराखंड राज्य इस सिद्धांत का बड़ा उदाहरण बन गया है।
हमने यह भी देख लिया कि असली लोकतंत्र के बिना असली विकास नहीं हो पाता है। इसके अतिरिक्त बुनियादी अधिकार स्थापित करने और सामाजिक शोषण के खिलाफ कदम उठाने के बिना न विकास होता है और न ही लोकतंत्र।
इसलिए तिलाड़ी विद्रोह की याद में 30 मई को प्रदेश भर मे लोग धरना, प्रदर्शन, संगोष्ठी और अन्य कार्यक्रमों द्वारा आवाज़ उठाने वाले हैं। ख़ास तौर पर इन बिंदुओं पर मांगे उठाई जाएंगी:
– अतिक्रमण हटाने के नाम पर या विकास परियोजनाओं के नाम पर किसी भी परिवार को बेघर न किया जाये। वन अधिकार कानून के तहत, वन में किसी भी संसाधन को इस्तेमाल करने से पहले वहां की स्थानीय ग्राम सभा से अनुमति ली जाये।
– उत्तराखंड में चकबंदी करना और भू कानून बहुत ज़रूरी है। राज्य में भू कानून हो। राज्य में भू कानून ऐसे बने जिससे स्थानीय जनता का विकास हो न कि बड़ी पूंजीपतियों का।
– राज्य में वन अधिकार कानून का अमल पूरी तरह से हो। हर गांव को अपने वनों पर अधिकार पत्र मिले। अधिकारों की मान्यता होने के बाद उनके आधार पर पर्यटन, छोटी परियोजनाओं, और अन्य ऐसे प्रयासों द्वारा स्थानीय रोज़गार के लिए योजना बनाये।
– कॉर्पोरेट और बड़ी परियोजनाओं को दिये जा रहे सारे कर छूट, इंसेंटिव और सब्सिडी को खत्म कर, उससे जो निधि बचती है, उसके आधार पर जनता का हिस्सा कोष बनाया जाये।उससे प्रतिमाह महिला किसानों, महिला मज़दूरों, एकल महिलाओं और अन्य शोषित महिलाओं को आर्थिक सहायता दी जाये। इससे आम परिवारों को राहत भी मिलेगी, जिससे वे खर्च करेंगे और रोज़गार भी बढ़ेगा।
– जिस तरह की व्यवस्था तमिल नाडु और केरल में है, उत्तराखंड में भी बिना कोई शर्त सबके लिए राशन उपलब्ध किया जाये। BPL / APL व्यवस्था में भ्रष्टाचार और भेदभाव की वजह से बहुत से परिवार राशन से वंचित हो जाते हैं।
92 साल पहले वनों पर अपने अधिकारों का दावा करने वालों को सबक सिखाने के लिए टिहरी के राजा नरेंद्र शाह ने गोलियां चलाई। लेकिन जिन हक़ों के लिए उन्होंने अपनी जान दी, वे आज भी जनता से छीने जा रहे हैं। इन सब के खिलाफ उत्तराखंड के प्रगतिशील जनसंगठनों एवं महत्वपूर्ण व्यक्तियों (राजीव लोचन साह, उत्तराखंड लोक वाहिनी, शंकर गोपाल, विनोद बडोनी एवं अन्य साथी, चेतना आंदोलन,
कमला पंत, निर्मला बिष्ट, गीता गैरोला एवं चन्द्रकला, उत्तराखंड महिला मंच, समर भंडारी, राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,
डा SN सचान, राज्य अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी, इंद्रेश मैखुरी, गढ़वाल सचिव, सीपीआई(ML), डॉ रवि चोपड़ा, पर्यावरणविद, सतीश धौलखंडी, जन संवाद समिति उत्तराखंड, विजय भट्ट, भारत ज्ञान विज्ञानं समिति, बिजू नेगी, सर्वोदय मंडल, गंगाधर नौटियाल, आल इंडिया किसान सभा, तरुण जोशी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा, नरेश नौडियाल, नागरिक कल्याण मंच, पौड़ी और प्रदेश भर के अन्य संगठन एवं साथी) ने आज 30 मई को तिलाड़ी काण्ड को याद करते हुए प्रदेश भर में धरने, संगोष्ठी एवं प्रदर्शन आयोजित करने और उसमें शामिल होने की जनता से अपील की है।