केशव भटृ
पुलिस कर्मचारियों के परिवार समेत उनकी खुद की परेशानियों की एक मार्मिक पोस्ट पढ़ने को मिली. कई सारे सवाल इस आजाद हिंदुस्तान में इस पोस्ट के माध्यम से उठाए गए हैं. आजाद हिंदुस्तान के बाद भी आज तक अंग्रेजों के जो कानून बने थे उन्हें आज भी हर कोई ढो रहा है. सरकारें आती—जाती रहीं लेकिन किसी को भी पुलिस के जवानों की समस्याओं से कोई लेना—देना नही रहा. मतलब रहेगा भी क्यों.. हर विभाग में यूनियन बनी हुवी हैं जो कि हर हमेशा अपने अधिकारों के लिए लड़ते—भिड़ते रहती हैं. यहां तक की आईएएस, आईपीएस समेत सभी विभागों के अधिकारियों की अपनी यूनियने बनी हुवी हैं. लेकिन पुलिस में कोतवाल समेत नीचे के कामगारों की कोई यूनियन नहीं है, और न ही उन्हें इसका हक है कि वो अपनी बातें कहने के लिए कोई यूनियन बना सकें.
हद है…..
अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी गुलामियत अभी भी बरकारार है. हम कैसे कह सकते हैं कि एक सिपाही इंसान नहीं है. पुलिस पे इलेजामात लगते ही रहे हैं. और ये दुर्भाग्य भी है कि हिंदुस्तान में कई पुलिसवालों ने अपने कारनामों से विभाग की ईज्जत खराब ही की है, और करते आ रहे हैं. लेकिन ये अहम सवाल है कि अपने महकमे के प्रति चुपचाप काम करने वालों को भी एक ही तराजू में क्यों तोला जाता होगा..
ये है वो पोस्ट…..
‘पुलिसवाला ही पुलिसवाले को खा रहा है,
मीडिया, समाज के विभिन्न वर्गों के तथाकथित संघठन पदाधिकारी, तथाकथित एक्टिविस्ट्स और समाजसेवक, जनता और ज्यूडिशयरी और संगठित और हार्डकोर अपराधी, सामाजिक मान्यताएं और क़ानूनी बाध्यताओं के विरोधाभास और उसमें राजनीतिक अस्तित्व का तड़का, जो पुलिसकर्मियों, अधिकारियों का भक्षण करता ही जा रहा है, करता ही जा रहा है, कब मेरी बारी आए का अज्ञात भय और आसन्न संकट पुलिसकर्मी के अवचेतन मनःस्थिति पर 24 घण्टे प्रहार करता रहता है. जिसके परिणामस्वरूप बहुत सारे पुलिसकर्मी लोडेड वेपन्स पास में होते हुए दुम दबाकर भागते हुए देखे जा रहे है. कब पीछा करते हुए सड़क दुर्घटना आपके विरूद्ध हत्या का प्रकरण बन जाए. कब कोई आपका अधीनस्थ सहकर्मी का दुराचार और कदाचार आपको पुश्तैनी संपति को भेंट चढ़ाकर सौदेबाज़ी को मज़बूर कर दे. कब कोई थाने आकर गया हुआ अपनी परेशानियों से परेशान मानसिक अवसादग्रस्त व्यक्ति जाकर आत्महत्या कर आपका नाम सुसाइड नोट में लिख दे और आपको फरार होने पर मजबूर कर दे. कब कोई नाकेबंदी के दौरान हेलमेट-सीट बेल्ट के डर से भागकर आगे जाकर चालक दुर्घटनाग्रस्त होकर मर जाए और आपका नाम 302 आईपीसी में जुड़वा दे. कब कोई सिरफिरा थाने में आकर जहर पी ले और आपको सलाखों के पीछे करवा दे. कब कोई सरेआम झूठे प्रकरण दर्ज कर ब्लैकमेल करवाने वालों से अपना टक्कर लेने व अपना स्टैंड कायम रखने के चक्कर में आपको 166 ए बी के चक्करों में झूला झुलवा दे. कब कोई जनता का पिटा हुआ और अपनी लाईलाज बीमारी से झुझता हुआ हार्डकोर अपराधी और समाज की नज़र में दमित, लाचार-बेचारा आपकी हवालात में शहीद हो जाए और आपको जेल की हवा खिलवा दे. कब कोई तथाकथित सेना और संगठन व सो कॉल्ड मोब आपको व आपके थाने को आकर आगजनी, पत्थरबाजी का शिकार बना दे, और बाद में दबाव व वोट की राजनीति से व कुर्सी बचाने की रस्साकस्सी में उस मामले में एफआर लगवा दे अथवा सरकार से अभियोग ही वापस लिवा ले और आप आपने प्लास्टर व टाँकों को तेल पिलाते रहें और किसी को बताने योग्य भी न रहें.
तथाकथित 50-100 लोग इकट्ठे होकर धरना-प्रदर्शन कर कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा कर कब आपको बिना गलती के ही केवल law & order बनाए रखने के तकाज़े पर आपकी पुलिस लाईन रवानगी करवा दें और यहीं नहीं बनी तो आप पर मुकदमें दर्ज़ करवा दें.
सही होते हुए भी स्थिति-परिस्थितियों तथा निर्मित वातावरण की बलि न चढ़ जाएं अथवा सत्यता और सही के साथ लड़ते—लड़ते जलील पर जलील होकर अपने घर के बर्तन तक न बेचने पड़ जाए, इसके लिए या तो उन तथाकथित पत्रकारों, ब्लैकमेलर्स एक्टिविस्ट्स और संघठनों-सेनाओं के पदाधिकारियों के पैर पकड़कर मिन्नतें करते हुए दिखाई दे रहे हों.
आपने पहले समाज और विभाग के लिए अपनी जान पर खेलकर कितना किया है यह कोई नहीं देखता, भले आप सुबह बहुत बड़े तस्करों को पकड़कर अथवा कोई बहुत बड़ी लूट, डकैती अथवा ब्लाइंड मर्डर मिस्ट्री का पर्दाफाश कर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हों और अखबारों के पहले पन्नों पर छाए हुए हो, यह कोई नहीं देखता…
अगर उसी दिन आपकी थोड़ी बहुत मानवीय नेगलिजेंसी या लापरवाही उजागर हो गई तो आपके हाथ में सस्पेंशन ऑर्डर होगा और लोग आपकी पूरी जन्म कुंडली खोज लेंगे और आपकी बात सुनने के लिए आपका कोई अपना भी फोन नहीं उठाएगा. दिनोंदिन ये विभाग अपनी रिएक्टिव और डिफेंसिव प्रतिक्रिया के अभाव में और संगठन के अभाव में नरभक्षी बनता जा रहा है।
इसके लिए पुलिसकर्मियों के लिए ये संदेश है कि वो, सर्वप्रथम तो अपने Do’s and Don’ts के प्रति एकदम स्पष्ट और क्लियर हो जाएं तथा यह कसम खा लें कि आपको करना वही है जो सही और वास्तविक है भले चाहे बाहर धरना-प्रदर्शन, अनशन हो रहे हो, डेड बॉडी लिए तथाकथित संगठन बैठे हो या सरकार गिरती हो, अथवा आपको स्वर्णाआसन पर बैठाने वाले किसी बहुत बड़े नेताजी का ही फोन हो. कभी भी पोस्टिंग्स-ट्रांसफर के प्रति लालायित न रहें, और जहाँ भी भेजें वहाँ विधिसम्मत, क्षमतानुरूप काम करने को तत्तपर रहें और उतना ही करें जिसमें आपकी सुरक्षा और भलाई निहित हो. कभी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस और लाईमलाइट में आने के लिए अथवा अच्छा बनने की नज़र में वो काम कतई न करें जो विधिसम्मत न हो और जिसकी आपको कानून और विभाग के नियम इज़ाज़त न दें अथवा जो काम कर आपको बाद में किन्हीं उच्चाधिकारियों के समक्ष जलील होना पड़े और समाज के तथाकथित दलालों के समक्ष नाक रगड़ने पर मजबूर होना पड़े. कभी भी सामाजिक मान्यताओं और कानूनी-संवैधानिक प्रावधानों के आपसी विरोधाभासों व द्वंद्वों के मध्य न फंसें और न ही किंकर्तव्यविमूढ़ होएं, केवल वही कीजिए जितनी शक्ति और दिशा आपको कानून और विभाग ने दी है. केवल अच्छे बनने के लिए और कुछ तात्कालिक लाभ, प्रलोभनों के चक्कर और प्रलोभन में आकर ऐसा कुछ भी मत कीजिए, जिसकी चिंता आपको अगले 20 वर्षों तक बनी रहे कि कब और किस स्तर पर कौनसा मामला उजागर हो जाए और वो पुराना मामला आपकी गले की फांस बन जाए.
अन्ततः अगर आपको बचे रहना है और सर्वाइव करना है तो आप एक वो रोबोट बन जाईए, जो बिना किसी दबाव, प्रलोभन के केवल वही देखता और करता है जो कमांड उसमें फीड है अथवा जो उसे करने के लिए सशक्त किया गया है. आप कहीं भी अपनी शक्तियों, दायित्वों के इतर कुछ भी करने के लिए विचलित और मज़बूर कदापि न हों. और आपको प्रदत शक्ति के प्रयोग में चाहे आपके समक्ष गलत एक व्यक्ति हो अथवा भीड़ हो कभी भी न हिचकिचाएं, चाहे आपको प्रदत शक्तियों के तहत आपको वेपन्स का ही विधिसम्मत, युक्तियुक्त, विवेकानुसार प्रयोग करने की ही बात क्यों नहीं हो….’