अनसूया प्रसाद मलासी
16—17 जून 2013 को आई प्रलयंकारी केदार आपदा के 11 वर्ष पूरे हो चुके हैं। श्री केदारपुरी से लेकर पूरी मंदाकिनी नदी घाटी और इससे आगे श्रीनगर (गढ़वाल) तक इसके घाव अभी तक देखे जा सकते हैं। सरकारी आंकड़ों को छोड़ दें तो एक अनुमान के अनुसार करीब 10 हजार से भी अधिक लोगों ने इसमें अपनी जान गँवाई थी। हजारों लोग बेघर हो गए। लोगों का रोजगार छिन गया। सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों के वाबजूद आपदा का यह जख्म अभी तक धरातल व लोगों के दिलों में है। समय के साथ-साथ आपदा त्रासदी के घाव तो भर जायेंगे, मगर आपदा का जो मंजर लोगों ने देखा, उसको कभी भुला नहीं सकते।
आपदा के एक दिन पहले का वृतांत…
लगातार तीन दिनों से बारिश हो रही थी। उस दिन अगस्त्यमुनि में हमारे उत्तराखंड राज्य आंदोलन के साथियों के साथ बातचीत करने का संयोग बना। उसमें सर्वश्री अवतार सिंह राणा, बालेश्वर डंगवाल, गंगाधर सेमवाल, मुकेश डोभाल, दर्शन सिंह बिष्ट (दुर्भाग्यवश, अब सभी दिवंगत) और मैं शामिल थे। क्योंकि बारिश लगातार हो रही थी और वाहन भी सड़क पर कम ही चल रहे थे। इसलिए रात्रिवास अगस्त्यमुनि में ही करना पड़ा। स्कूलों की छुट्टियां थी और मुकेश जी के बाल-बच्चे घर जा रखे थे। इसलिए तय हुआ कि उनके ही कमरे में रहा जाए।
सुबह नींद खुली तो बाहर बारिश लगातार जारी थी। मंदाकिनी नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा था। चाय-नाश्ते के बाद बाहर छत पर आये तो देखा कि विजयनगर बाजार के पीछे नदी का पानी पहुँच चुका था। (तब नदी बाजार के पीछे सटकर बहती थी किंतु आपदा के बाद पुराना देवल के कटाव से नदी ने अपना रास्ता बदला और बाजार के नीचे मलबा भर गया। नदी दूसरी तरफ चाका गांव जाने वाले रास्ते की तरफ अपना रास्ता बना चुकी थी।) पुलिस की गाड़ी सायरन बजाकर और नदी से दूर रहने की चेतावनी देकर चल रही थी, इससे मन आशंकाओं से भरने लगा।
मैंने दोस्तों से बिदा ली और छाता लेकर पैदल ही घर की ओर चल दिया। बाजार में लोग चर्चाओं में लगे थे। विजयनगर से आगे पुराना देवल में मां राजेश्वरी और शिव मंदिर के नीचे नदी किनारे बनाया गया मकान खतरे में आ गया था और पुलिस उस घर को खाली करवा रही थी। सामान सड़क पर आ गया। इस क्षेत्र में रह रहे अन्य परिवारों के लोग भी अपना आवश्यक सामान निकालने में लग गए। नदी अपना विकराल रूप ले चुकी थी। इसी बीच सिल्ली के पैदल पुल के भी खतरे में आने की सूचना मिली। राहत चलते लोगों और पुलिस से सूचनाएं लेता रहा और सौडी़ बाजार पहुँचा।
सौडी़ बाजार में लोग सड़क के किनारे खड़े थे। गिंवाला गांव के रोपाई वाले सेरों तिनसोली का बगड़ के नीचे नदी किनारे प्राचीन शिवालय, राजकीय जूनियर हाई स्कूल, धर्मशालाएं व सौडी़ के नीचे नदी किनारे घराट व सिंचित जमीन थी औट नदी के प्रचंड वेग से इन सभी को खतरा प्रतीत हो रहा था। किसी ने कहा कि नदी की सारी मछलियां गधेरे में आ गई हैं और लोग मछली पकड़ कर थोक के भाव नीलामी कर रहे हैं। बाजार में मुझे छोटा भाई गीताराम मिल गया और हम भी मछली लेने कुछ अन्य लोगों के साथ नदी तट की ओर चले गए।
मंदाकिनी नदी अपने प्रचंड वेग में बह रही थी। जंगल टूटकर वहाँ से बड़ी-बड़ी लकडि़यां बहकर आ रही थी। नदी का पानी भी अन्य वर्षो की तुलना में बहुत अधिक बढ़ गया था। मंदिर की सीढ़ियों तक पानी आ गया था और घराट की नहरें पानी से भर गई थी कुछ लोग मछली पकड़ रहे थे उसे लकडि़यां इकट्ठा कर रहे थे। हमने उनसे 2 किलो मछली खरीदी और घर की ओर लौटने लगे। बच्चों को सावधान किया, नदी से दूर रहें, ऊपर हिमालय में बारिश हो रही है। उनकी जान को खतरा हो सकता है उसके बाद हम मंदिर की तरफ आगे बढे़।
शाम को घर पहुंचे तो लगातार हो रही बारिश से किसी अनिष्ट की आशंका पर चर्चाएं होने लगी। मच्छी रोटी भरपेट खाई। ज्यों-ज्यों रात गहराने लगी, नदी में पत्थरों के बहने, आपस में टकराने से भयंकर गर्जना हो रही थी। हमने लोगों को कहा कि अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज अपने पास थैले में रखें, ना जाने कब भागना पड़ जाए। आज की तरह उस समय न अधिक फोन की सुविधा थी, ना कहीं सोलर या एमरजैंसी लाइट थी। पूरे गाँव में मात्र हमारे पास ही एक बड़ी चार्ज वाली टाॅर्च थी। लगातार हो रही बारिश और गांव के नीचे बह रही मंदाकिनी नदी की गड़गडा़हट से नींद नहीं आई। दिल धक-धक करता रहा। सारे लोग अलग-अलग ग्रुपों में बैठकर रात की 12:00 बजे के बाद तक भोलेनाथ बाबा श्री केदारनाथ जी का स्मरण करते रहे।
रात को देर में सोऊँ तो भी सुबह जल्दी उठने की आदत है मेरी। 17 जून को तड़के 5 बजे के आसपास नींद खुली। कमरे से बाहर आया, मूसलाधार बारिश जारी थी और नदी के प्रचंड वेग की आवाज मध्यरात्रि से कुछ महसूस हो रही थी। मैंने सोचा, शायद ऊपर पहाड़ में बारिश थम गई और नदी का वेग कम हो गया है… अपने मकान की छत में जाकर नदी की तरफ देखा, तो कलेजा जैसे मुँह में आ गया हो। राष्ट्रीय राजमार्ग से नीचे वाला पूरा इलाका बह चुका था और नदी करीब 400 मी का फैलाव लेकर बह रही थी। मंदाकिनी नदी के बीच में विशाल भीमसेन का पत्थर ‘सत्तूढुंगा’ भी जैसे डूबने ही वाला था। नदी का यह रौद्र रूप देखकर मेरी चीख निकल गई। मैं तुरंत नीचे उतरा और परिवारजनों व पड़ोसियों के दरवाजों पर जाकर चिल्लाया…”बाहर भागो, पृथ्वी प्रलय हो गई है”। लोग उठ बाहर दौड़े और नदी की तरफ देखा। नदी वहां सारा कुछ बहाकर ले जा रही थी। नदी का कटाव राष्ट्रीय राजमार्ग तक हो गया था। गाँव में जिसने भी आवाज सुनी, वह बाहर दौड़े और नदी को देखकर हे राम! हे प्रभु… कातर स्वरों में स्मरण करने लगे। केदार घाटी में कहीं बहुत बड़ी त्रासदी हुई होगी, ऐसा अंदेशा सबको हो रहा था।
दो दिन से बिजली नहीं थी और मेरे घर में लगी बीएस एन एल की टेलीफोन लाइन भी ठप्प हो गई थी। किसकी भूख, किसका जलपान … ऐसी भीषण त्रासदी देखकर कपडे़ बदले और बदहवास-सा बाजार की तरफ दौड़ पड़ा। नीचे सड़क में पहुँचा तो गांव के तमाम लोग सड़क किनारे खड़े थे। कोई रो रहा था तो कोई माथा पकड़कर बैठा था। किसी के खेत बहे, किसी का मकान और किसी की रोजी-रोटी चलाने वाले घराट। हाँ! एक अच्छी बात यह रही कि नीचे शिव मंदिर की धर्मशाला में रहने वाली माईयां रात को पानी बढ़ने के साथ ही वहां से सुरक्षित निकाल ली गई थी, मगर उनके पालतू जानवर सब बह गये। तभी पता चला कि हमारे गांव से 2 किलोमीटर आगे गबनीगांव, चंद्रापुरी और पुराना देवल अगस्त्यमुनि में भी बड़ा भारी नुकसान हुआ है। पूरी बस्तियां, बाजार बह गए हैं। मैं अपने कुछ साथियों के साथ उस तरफ चले गया।
बेडूबगड़ के सामने 99 केवी की निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजना (एल एंडटी) का पाॅवर हाउस ध्वस्त हो गया था। उसके आगे फलई गांव के खेल मैदान में बड़े-बड़े पीपल के पेड़ भी जड़ से उखड़ गए थे। लोगों ने बताया कि रात को जब बाढ़ आई तो कंपनी के कर्मचारी, जो बाढ़ में फंस गए थे, वह विशाल पीपल के पेड़ों पर चढ़ गये। वे सहायता के लिए आवाज लगा रहे थे, मगर वह सैलाब पीपल के पेडो़ं को जड़ से ही उखाड़ ले गया। आगे गंगानगर जाने वाला पुल भी टूटने की कगार पर खड़ा था और गंगानगर बस्ती पूरी तरह से मटियामेट हो गई थी।
उससे आगे बनियाडी़ गाँव की तरफ गया तो बताया गया कि कई मकान बह गये थे। पुराने देवल का अस्तित्व ही खत्म हो गया और अगस्त्यमुनि का शेष मंदाकिनी घाटी से संपर्क कट गया था। विजयनगर बाजार बाढ़ की भेंट चढ़ चुका था। यहां कई मकान, शिवालय, राज राजेश्वरी का मंदिर और गोधाम बह गए थे। ऐसे ही गबनीगाँव में सड़क के नीचे जीएमवीएन का शानदार बंगला, राजकीय स्कूल और एक पूरी बस्ती बह गई थी। चंद्रापुरी बाजार और नदी पार चंद्रापुरी गांव में भी बहुत नुकसान हुआ। आधी आबादी के मकान व गोशालाएं बह गए थे।
लोगों के साथ बातचीत कर आपदा में हुए नुकसान की जानकारी डायरी में नोट करता रहा। तब तक गुप्तकाशी और ऊखीमठ से ऊपर नुकसान की जानकारी किसी को भी नहीं मिली थी। हाँ! सबको अंदेशा जरूर हो रहा था कि वहां बहुत ज्यादा नुकसान हुआ होगा, क्योंकि पूरी मंदाकिनी घाटी में कहीं भी पैदल या गाड़ी में आने-जाने के रास्ते सही नहीं बचे थे। अगस्त्यमुनि पुलिस थाने से यह हल्की सी सूचना मिली कि केदारनाथ क्षेत्र में बहुत नुकसान हुआ है। जनपद मुख्यालय रुद्रप्रयाग में कुछ पत्रकार साथियों को यहां केदारघाटी में आई प्रलयंकारी बाढ़ में हुए जान-माल के नुकसान की जानकारी भेजकर शाम को मैं थका-माँदा वापस घर लौट आया।
गांव में सब लोग उदास, भयाक्रांत और अपने नाते- रिश्तेदारों की कुशलता सूचना के लिए व्यथित थे। पूरी मंदाकिनी घाटी में हिमालय की तरफ बारिश हो रही थी और घना कोहरा छाया हुआ था। घर में पता चला, इतनी बड़ी त्रासदी देखकर दोपहर का खाना ही नहीं बना और कल रात की बची हुई मछलियां भी फेंक दी थी। हल्की बारिश लगातार जारी थी और देर रात तक लोग आपस में इस बात पर बातचीत करते रहे कि निकटवर्ती क्षेत्र में आपदा प्रभावित बेघर लोगों के लिए क्या कुछ मदद की जा सकती है? मन में अनेक आशंका लिए, गाँव के ऊपर या नीचे से कहीं टूट-फूट न हो जाए, सब प्रभु और भाग्य के अधीन छोड़कर मध्यरात्रि को ही सो पाये।