प्रमोद साह
यूवाल नोआ हरारी की पुस्तक सेपियन्स जो सिर्फ एक विज्ञान कथा नहीं है । बल्कि जो पूर्ण समग्रता में 70 हजार सालों से मानव विकास की दिशा में हुए क्रमागत परिवर्तनों को टापू में खड़े होकर देखने की तटस्थ दृष्टि भी प्रदान करती है। पुस्तक की विषय वस्तु जितनी शानदार है, उसका उतना ही शानदार और जीवंत अनुवाद श्री मदन सोनी जी ने प्रस्तुत किया है।
यह पुस्तक विश्व में मानव सभ्यता के विकास, इसमें साम्राज्य के विस्तार के लिए , धर्म, विज्ञान और अर्थ के संलयन तथा इतिहास की समझ विकसित करने वाली एक असाधारण पुस्तक है। मनुष्य के विकास के इतिहास को संक्षेप में कुछ एसे समझा जा सकता है। 25 लाख साल पहले पूर्वी अफ्रीका में वानरों में मनुष्य के आरंभिक जीन प्रारंभ हुए जिसे आस्ट्रलोपीथिक्स कहा गया, इन्हीं बानरो का क्षेत्रवार अलग-अलग रूपान्तरण देखा गया, यूरेशिया में मजबूत नियंडर थलेसिस, एशिया में होमो इरेक्टस, इंडोनेशिया में होमो सोलोएंसिस, साइबेरिया में डेनिसोवा, अफ्रीका में होमोरूडलफेंसेस, नाम के प्राणी हमारे पूर्वज होमो सेपियंस के समकालीन थे। लेकिन इनमें सबसे अधिक संघर्षशील और बुद्धिमान हमारे ही पूर्वज अर्थात होमो सेपियंस साबित हुए, जिन्होंने भोजन की तलाश में एक छोर से दूसरे छोर की यात्रा की और सब अपने समकालीन जो अधिक ताकतवर भी थे का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया।
पुस्तक 70 हजार साल में मनुष्य के विकास क्रम को ही प्रस्तुत नही करती है । बल्कि मनुष्य के विकास में दार्शनिक पहलुओं को भी स्पष्ट करती है कि 70 हजार साल तक मनुष्य का वास्ता , जब तक किसी अन्य लोक और तकनीक से नहीं था। वह परम संतोषी था, संचय नही करता था, तब तक वह भविष्य के सपने भी नहीं संजोता था । उसका लक्ष्य दैनिक दिनचर्या और भ्रमण शील होकर भोजन इकट्ठा करने तक ही सीमित था।
जैसे ही एक सामान्य घास की पहचान गेहूं के रूप में हुई तो लगभग 12000 वर्ष पूर्व इसने मनुष्य जीवन की गति और मन:स्थिति दोनों को बड़ी तेजी से बदला, शांत समझा जाने वाला होमो सेपियन्स , संग्रह कर्ता होने के साथ ही आक्रांता और विस्तार वादी हो गया । संग्रह की प्रवृत्ति और विस्तार वाद की प्रवृत्ति ने ही राज्यों को जन्म दिया, राज्यो ने साम्राज्य के विचार का प्रसार किया। होमो सेपियंस के इस विस्तार का सर्वाधिक प्रभाव प्राणी व वनस्पति जगत में पड़ा, आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका में होमो सेपियंस की मौजूदगी ने वहां के अधिकांश समृद्ध प्राणियों का संसार समाप्त कर दिया।
अमेरिका में 44 प्रजातियों से 34 नष्ट हो गई, जबकि आस्ट्रेलिया में बड़े प्राणियों की 100 नस्लें समाप्त हो गई।
होमो सेपियंस अर्थात मनुष्य की पहुंच के साथ प्राणी और वनस्पति जगत बहुत तेजी से नष्ट हुआ, होमो सेपियंस की शुरुआती गतिविधियों से ही परिस्थितिकी संतुलन गड़बड़ाने लगा । कृषि की शुरुआत 10000 वर्ष ईसा पूर्व मानी जाती है जो कि मध्य पूर्व से गेहूं की उपज के साथ प्रारंभ हुई,कृषि ने विनाश की दूसरी पारी प्रारंभ की , अधिक उपज के लिए मानव श्रम और उसकी शोषण की व्यवस्था प्रारंभ हुई मनुष्य की स्वतंत्रता जाती रही। कृषि के विस्तार और अधिक श्रम की आवश्यकता ने जनसंख्या वृद्धि की आवश्यकता और संग्रह प्रवृत्ति को बढ़ाया, गांवो का और थोडे शहरों का विकास हुआ.. सेपियंस की ताकत की आकांक्षा ने लगभग सभी महाद्वीपों में मनुष्य और शेर के संयुक्त संलयन की कल्पना की जिसे भारत के नरसिंह की तरह पूजे जाने वाली आकृति मिश्र, जर्मनी तथा अन्य महाद्वीपों में भी पाई गई, यह नर सिंह जर्मनी की स्टाडेल गुफा में 32 हजार साल पहले पाया गया।
छोटी बस्तियों से शहर बनने का सिलसिला ईसा पूर्व 7000 वर्ष अर्थात कुल 9000 वर्ष पहले आनातोलिया के कैटलहोयुक्त नगर में देखा गया, जिस शहर की आबादी 5 से 10 हजार के बीच थी । राज्य के रूप में नील घाटी 3100 बी.सी के आसपास संगठित हुई, 2250 बी.सी में सरगान द ग्रेट ने पहला अकादिआन साम्राज्य खडा किया , जिसकी 54 00 सैन्य शक्ति थी। 1000 से 500 बी.सी के मध्य,असीरिया, बेबीलोनी, फारसी साम्राज्य का उदय हुआ, इसी वक्त भारत में भी प्रारंभिक राज्य, 16 महाजनपदों के रूप में संगठित हो रहे थे।
221 बी.सी में चीन का सशक्त चिन राजवंश उत्पन्न हुआ ।
3000 से 25 00 बी.सी के मध्य , अलग अलग लीपियो का विकास हुआ, इनमें चित्रात्मक लिपि ने ज्यादा ख्याति पाई । 1776 बी सी में बेबीलोन दुनिया का सबसे बड़ा शहर था, यहां के राजा हम्बूराबी ने हीं दुनिया को पहली बार कानून के दायरे में लाने का प्रयास किया, यहां विधि संहिता को शिलालेख में उकेरा गया, मनुष्यता के विकास में यह एक और बड़ा महत्वपूर्ण बदलाव था । राज्य और साम्राज्य की सत्ता अधिक आसानी,और बिना प्रति रोध से चले और सुरक्षित रहे, इसके लिए लोक विश्वास को संचालित करने वाले धर्मों का अभ्युदय हुआ । यह घटना ईशा की पहली सदी पूर्व के आसपास देखी जाती है सबसे पहले बहु देव वादि रोमन साम्राज्य अस्तित्व में आया, उसी वक्त भारत में भी बहु-देव पूजन की पद्धति प्रचलित थी।
लोक विश्वास के रूप में एक ईश्वर की अवधारणा ज्यादा तेजी से फैली जिसने दुनिया में ईसाई धर्म और कालांतर में इस्लाम धर्म का अधिक प्रसार किया, आज भी विश्व में सर्वाधिक संख्या इन्हीं दो धर्मावलंबियों की है।
एक ईश्वर वादी ईसाई धर्म में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक शाखाओं के मध्य जबरदस्त खूनी संघर्ष रहा है ।जिसने ईसाई धर्म की अवधारणा जो कि प्रेम और करुणा पर आधारित है,की सच्चाई दुनिया के आगे उजागर की ,जब हजारों की संख्या में लोग इस धर्म संघर्ष में मारे गए और चर्च की सत्ता स्थापित करने में इस खूनी संघर्ष जब 23 अगस्त 1572 ई०को ब्रोथोलोम्यूज में 24 घंटे में 5 से 10 हजार प्रोटेस्टेंट मारे गए,यहां कैथोलिक विजई हुए, पोप ने भी इस हिंसा में कैथोलिक जो ईश्वर प्राप्ति के लिए चर्च की सत्ता को महत्व देते थे, का समर्थन किया ।
एकेश्वर वादियों के साथ- साथ ही दुनिया में प्रकृति की सत्ता मानने वाले धर्म भी अस्तित्व में रहे, जिनमें जैन, बौद्ध ,ताओ तथा कन्फ्यूशियस के साथ ही साथ भूमध्य सागर क्षेत्र में संशयवादियों का भी बड़ा बोलबाला रहा है ।
कृषि क्रांति के सहारे साम्राज्य का विस्तार ईसा के 1500 वर्ष तक रहा, उसके बाद विज्ञान और उसके सहारे उद्योग ने दुनिया में एक साथ कदम रखा तब पूरे विश्व की तस्वीर बहुत तेजी से बदलने लगी, विज्ञान और उद्योग ने बाजार के लिए तेजी से जनसंख्या की भी बृद्धि की तांकि उत्पादन को बाजार भी मिले।
15 वी सदी तक दुनिया की आबादी मात्र 50 करोड़ के आसपास थी जो आज लगभग 800 करोड़ हो रही है। दुनिया का उत्पादन 250 अरब डॉलर था जो अब $6हजार अरब डालर हो गया है । तब की 13 हजार अरब कैलोरी अब 15 लाख अरब कैलोरी में बदल गई है।
इस प्रकार विज्ञान और औद्योगीकरण ने जो खलबली पैदा की , उसने आबादी 16 गुना, उत्पादन 240 गुना और उपभोग 115 गुना बढ़ा दिया, आंकडो की दृष्टि से यह एक सकारात्मक प्रगति है. लेकिन वास्तव में यह प्रवृति बढ़ते हुए पूंजी के प्रयोग और उसके विस्तार के लिए उपभोक्तावाद का ही परिणाम है।
बीते 500 वर्षों में मनुष्यता के इतिहास में अचरज भरे प्रयोग हुए कृषि क्रांति को विज्ञान ने औद्योगिक क्रांति में बदला ,अनुसंधान ने उपभोक्तावाद को बढ़ावा देकर दुनिया में बाजार के विस्तार के लिए बडे व्यापारिक अभियान प्रारंभ हुए, इंडोनेशिया में डच ईस्ट इंडिया कंपनी तो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ही प्रारंभ में व्यापार के लिए साम्राज्य का भु विस्तार किया। यहां तक कि यह व्यापारिक कंपनियां राज्य से बड़ी हो गई ,एक समय ईस्ट इंडिया कंपनी की सैनिक शक्ति 3 लाख 50 हजार सैनिकों से अधिक थी ।
व्यापार के विस्तार के लिए और अधिक पूंजी की आवश्यकता थी, जो वास्तविक पूंजी नहीं हो सकती थी ।इसके लिए “साख” का चलन प्रारंभ हुआ, इस प्रकार बैंक और शेयर बाजार का अभ्युदय हुआ, सेमुअल ग्रीडी और डोटोडो ने कैलिफोर्निया में बैंक की स्थापना की , जिसने प्रारंभ से ही वास्तविक से 10 गुना अधिक पूंजी ऋण से उपलब्ध कर व्यापार प्रारंभ किया, 18 वीं सदी में शेयर ने बेइंतहा तरक्की की और बाजार के लिए पूंजी इकट्ठा करने में योगदान दिया, मिसीसिपी का लीब्र पर केंद्रित शेयर बाजार बहुत ख्याति लब्ध हुआ ।
नए बाजारों की तलाश में खोज के बड़े-बड़े अभियान प्रारंभ हुए जिसमें मनुष्य तथा राज्य दोनों ही अपनी पहचान खोते जा रहे हैं नया युग कृषि क्रांति के कुलीनो के बनिस्बत कॉर्पोरेट का युग है, इनका बहुराष्ट्रीय व्यापार और पहचान है इस प्रकार 1945 के बाद का समय साम्राज्य के रिटायरमेंट का समय कहा जाता है ।
1945 में ब्रिटेन की दुनिया की एक चौथाई हिस्से में हुकूमत थी, जो 1948 आते-आते चंद गिने-चुने द्वीपो तक सीमित हो गया।
भूमंडलीकरण और उपभोक्तावाद के संयुक्त प्रयासों से व्यक्ति की परंपरागत सामूहिक पहचान समाप्त हो रही है ।उत्पादन के लिए व्यक्ति की निजता को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मोबाइल तकनीक तथा सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार से मनुष्य ने एक नई दुनिया में प्रवेश कर लिया है। इस प्रवेश के मनुष्यता पर किस प्रकार के प्रभाव होंगे इसके आंकलन का अभी वक्त प्रारंभ नहीं हुआ है लेकिन अति उत्पादकता और उपभोक्तावाद ने प्रकृति की सीमाओं को बार -बार लांघना प्रारंभ किया है। तकनीकी के सूक्ष्म से सूक्ष्म (नैनो) हो जाने की प्रवृत्ति ने, जहां मनुष्य के समकक्ष रोबोट को खडा किया है , वहीं उसकी जासूसी के लिए ड्रोन तथा अन्य अदृश्य उपकरण चारों तरफ फैले हुए हैं, ह्यूमन ब्रेन प्रोजेक्ट पर अमेरिका की रिसर्च से एक अज्ञात भय समाज में फैल रहा है।
तेजी से घटित इन प्रयोगों से मनुष्य के जैव रसायन (बायो कैमस्ट्री ) में तेजी से परिवर्तन हो रहा है । एक अज्ञात भय भीतर प्रवेश कर रहा है । तनाव नई पीढ़ी की पहचान बन रही है। साथ ही परिस्थितिकी संतुलन जिसे क्लाइमेट चेंज के रूप में जाना जा रहा है एक बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है….
जैसा कि पृथ्वी की प्रवृत्ति रही है, 50 हजार से 1 लाख वर्ष के मध्य हिम युग का प्रारंभ होता ही है। पर्यावरण को सीमा के पार जाकर छेड़छाड़ करना कहीं हिम युग को आमंत्रण तो नहीं ??