अतुल सती
बग्वाल गाई
इगास आई
छट्ट भी तौन
तखी मनाई
जमीन का निस
दौंरा मा
सुरंग का पेट
अंध्योरा मा
घौर मौ
आस मा रै
रोज आस
टुटदि गै
आज भोल
श्याम सुबेर
घाम पाणी
देर अबेर
आस निरास
होंदी गै
हफ्ता दिन
बितदी गै
निर्भगी कम्पनी तै
सुरंग कि रै
मनखि जान
कि क्या सुणै
तन्नि नेता
तन्नि तान
तन्नि सूत
तन्नि वितान
ईं बिवस्था न
इन्नी रौण
ये बिकास न
यई बितौण….
…….
हिन्दी में …
इस विकास से यही बीतनी है ..यही परिणाम होने हैं ।
दिवाली बीती
इगास आई
छठ भी उनने
वहीं मनाई
जमीन के नीचे
बिल में
सुरंग के अन्दर
अंधेरे में
घर परिवार
आस में रहा
रोज आशा
टूटती रही
आज या कल
शाम कि सुबह
धूप में कि बारिश में
देर से सही, पर
आशा निराशा
बनती गई
हफ्ते और दिन
बीतते रहे
निष्ठुर कम्पनी को
सुरंग की फिक्र रही
आदमी की जान
की कौन सुने
वैसे ही नेता
वैसी ही उनकी तान
जैसा सूत
वैसा वितान
यह व्यवस्था
ऐसे ही रहनी है
इस विकास से TV
यही बीतनी है ..