राजीव लोचन साह
भारत में इस समय हिन्दुत्व कहें या कि अंध राष्ट्रवाद की बयार चल रही है। समानता, समरसता, सहिष्णुता जैसी बातें कहीं नहीं सुनाई देतीं। इसके बदले बहुसंख्यकों के खतरे में होने और हर समस्या के पीछे अल्पसंख्यकों का हाथ होने की बातें ज्यादा सुनाई देती हैं। कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ा जाता, जिसके बहाने अल्पसंख्यकों को अपमानित किया जा सके या उनके खिलाफ नफरत फैलायी जा सके। ऐसे मौके तलाश या गढ़ भी लिये जाते हैं। किसी मुसलमान युवा का किसी हिन्दू लड़की से सामान्य बातचीत करना ‘लव जिहाद’ हो जाता है। किसी मुसलमान द्वारा किया गया छोटा सा अतिक्रमण ‘लैंड जिहाद’ हो जाता है। हाँ, इसका उल्टा हो तो उससे कोई परेशानी नहीं होगी। कोई हिन्दू किसी मुसलमान युवती से शादी कर लेगा तो वह धर्म का काम हो जायेगा। वन भूमि में या नजूल की अथवा पी.डब्ल्यू.डी. की जमीनों में अतिक्रमण कर जो हजारों मन्दिर बने होंगे, उन पर आपत्ति नहीं होगी। किन्तु मस्जिद सैकड़ों-हजारों साल पुरानी भी होगी तो उसके नीचे मन्दिरों के अवशेष खोज लिये जायेगे या उसकी मिल्कियत पर सवाल उठा कर बावेला खड़ा किया जाने लगेगा। इस मामले में तो देश की सर्वोच्च अदालत का रवैया भी निहायत गैर जिम्मेदार और आपत्तिजनक रहा है। धर्म को लेकर घृणा पैदा करने वाले बयान देने पर उसने समस्त प्रशासनिक अधिकारियों को स्वतः ही कार्रवाही के निर्देश दिये थे। मगर जब ऐसी कोई कार्यवाही नहीं हो रही है तो उसने किसी अधिकारी को लताड़ तक नहीं लगाई। इधर पड़ौसी देश बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार होने की बात उठा कर देश भर में लोगों को लामबन्द करने की कोशिश हो रही है। कितना हास्यास्पद है कि जो देश ह्यूमन राइट्स वाॅच के अनुसार स्वयं ही अपने यहाँ अल्पसंख्यकों के साथ दुव्र्यवहार का आरोपी हो, वह दूसरे देश पर ऐसे आरोप लगाये। ऐसा भी नहीं कि लोग ऐसी कुटिलताओं को समझते नहीं। मगर जो समझते हैं, वे संख्या में ज्यादा होने के बावजूद असंगठित और बेपरदवाह हैं।