अतुल सती
जोशीमठ के उर्गम घाटी में बहुत हृदयविदारक दुर्घटना हो गयी। किमाणा डुमक सड़क पर वाहन नीचे खाई में गिर गया जिसमें सवार 12 लोग नहीं रहे। ज्यादातर लोग जवान ही हैं। वर्षों की मांग के बाद सुदूरवर्ती क्षेत्र में सड़क अभी कट ही रही है। कच्ची सड़क है। लोग जो वर्षों दसियों किलोमीटर चल कर अपने दुर्गम गांव पहुंचते रहे हैं उनके यहां सड़क अभी कटना शुरू हुई तो आनन फानन गाड़ी भी आ गई और उस पर सवारी भी शुरू हो गयी।
जहां पर दुर्घटना हुई है वहां हल्की चढ़ाई थी लेकिन अधबनी अधकच्ची सड़क पर इस तरह गाड़ी चलना खतरनाक है। कच्ची सड़क में गाड़ी फंस गयी। गाड़ी में सवारियां भी खूब थी। एक आदमी पत्थर लगाने उतरा। ठीक से लगा नहीं और गाड़ी लुढ़कते हुए सीधे खाई में गिर गयी।। जो पत्थर लगाने उतरे उनकी पत्नी गाड़ी में ही थी। इनके अलावा छत पर जो लोग थे वे कूद कर बच गये। 12 लोगों का जीवन एक झटके में समाप्त हो गया। एक ही गांव के चार लोग। कहा जा रहा है कि जो गाड़ी चला रहे थे वह भी नए और सड़क भी नयी उस पर गाड़ी पुरानी पर ऐसे दूरस्थ क्षेत्रों में कौन देखे ?
सुन रहे हैं इसी अधबनी सड़क से कुछ माह पहले जिलाधिकारी भी डुमक तक गये थे। ऐसी सड़क जो आर टी ओ पास होना तो दूर अभी पूरी बनी ही नहीं उस पर गाड़ी चलाना तो दुर्घटना को ही दावत देना है। ग्रामीण तो मजबूर हैं इतने वर्षों पैदल चलते रहे हैं अब जाकर बड़ी मुश्किल से साध पूरी होने को है तो क्या करें ? दुनिया कहां की कहाँ पहुंच चुकी और हमारे पास एक अदद सड़क भी नहीं, तो चलो बनी नहीं बनी जैसी भी पर है तो इसलिये हम भी आधुनिकता का स्वाद चखें। इससे पहले की मंत्री सन्त्री सड़क का उद्घाटन करें मौत ने दस्तक दे दी।
किसको दोष दें ? किसके लिए पछतावा करें ? पता नहीं। एक पूरी घाटी मातम में है। सड़क के आने की यह कैसी विडंबना भरी खुशी है। यह पहाड़ में बन रही सभी ब्रांच सड़कों का किस्सा है। प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बन रही अधिकांश सड़कें ऐसी ही विडम्बना का शिकार हैं। जे सी बी मशीन ठेकेदार किसी तरह निश्चित गांव तक पहुंचा कर कार्य की इतिश्री कर लेते हैं। सड़क कागज में बन गयी, कट भी गयी। पर जैसे ही सड़क कटती है, उससे जिंदगी की डोर भी कटती है।
गांव के बेरोजगार युवा आनन—फानन में गाड़ी ले आते हैं। लोग भी क्या करें वर्षों से पैदल चलने के बाद, कुछ तो हुआ की तर्ज पर गाड़ी में सवार हो जाते हैं। यह पता होने के बाद भी कि किसी भी रोज दुर्घटना हो सकती है और मौत भी तय है।
वर्षों ऐसी सड़कें पक्की नहीं होती। डामर नहीं होता। परमिशन न होने के बावजूद भी 12, 14, 18 सवारियों के साथ यह सड़कें आबाद रहती हैं। ऐसी किसी दुर्घटना होने तक। फिर कुछ दिन का सन्नाटा या हल्ला फिर यथावत। अफसोस। दुःखद। मृतकों के परिवार जनों के प्रति संवेदना।
उम्मीद है सरकार इससे कोई सबक लेगी और आश्रितों के लिए कोई सहायता होगी।
फोटो : इंटरनेट से साभार