प्रमोद साह
यह पुरानी कहावत है, कि पूरी तीसरी दुनिया को अमेरिका भेड़ बकरियों की तरह हांकता रहा है । भारत सहित पूरी दुनिया में जारी कृषि सुधार कानूनो की पृष्ठभूमि से इसे आसानी से समझा जा सकता है ।इन दिनो किसानों के पक्ष का हंगामा न केवल भारत की संसद में,बल्कि सड़कों में में देखा जा रहा है । ऐसे ही कुछ किस्से ब्राजील, मेक्सिको ,पाकिस्तान तथा कुछ दक्षिण अफ्रीकी देशों सहित दुनिया के #सौ से अधिक देशों में भी किसानों की पटकथा के हिस्से हैं। आज पूरी दुनिया के 27 देशों में 11496 रिटेल स्टोर की चेन, को 55 अलग-अलग कंपनियों के नाम से वॉलमार्ट चला रहा है।
और ग्लोबल वॉलमार्ट इन स्टोर में खाद्यान्न की आपूर्ति के लिए सीधे 100 देशों की खेती पर पहले ही ,अपनी नजर गडा चुका है । यह पट -कथा #14अक्टूबर2010 को वॉलमार्ट के ग्लोबल संकल्प से समझी जा सकती है । जहां वॉलमार्ट दुनिया के अनाज उत्पादन का एक चौथाई हिस्सा स्वयं खरीद कर भंडारण करना चाहता है । इस भंडारण के लिए खरीद की अधिकतम सीमा में छूट आवश्यक है । इसके लिए भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों के #भंडारण सीमा के कानूनों में परिवर्तन किया जा रहा है। जिसे हम #आवश्यकवस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन के रूप में भारत में समझ सकते हैं ।
यहां हम देखेंगे कि संसद भारत की है ,पर पूरा ड्राफ्ट जैसे वालमार्ट ने तैयार किया हो । जबकि पिछले 40 वर्षों से भारत में जमाखोरी का कोई ऐसा बड़ा विरोधाभासी संकट भी नही देखा गया यह सब इसलिए आवश्यक था। कि भारत में 2023 तक 25% कृषि उत्पाद सीधे खेत से खरीदने के लक्ष्य को वालमार्ट प्राप्त कर सके ।
वॉलमार्ट अपने संकल्प पत्र में कहता है।
14Oct 2010
Walmart today launched its new global commitment to sustainable agriculture that will help small and medium sized farmers expand their businesses, get more income for their products, and reduce the environmental impact of farming !
आश्चर्य तब होता है जब तीसरी दुनिया की संसद और सांसद अपने कृषि सुधार बिलों की भाषा का बड़ा हिस्सा वालमार्ट के संकल्प से ही उठा लेते हैं।
Food production must increase roughly 70 percent to feed the estimated 9 billion people who will inhabit the planet by 2050. Walmart believes it can help to address basic food insecurity by directly connecting farmers with markets, .
किसानों को बाजार से सीधे जोड़ने की अवधारणा, जिसने मंडी के समानांतर क्रय ,विक्रय की व्यवस्था को जन्म दिया है ।भी वॉलमार्ट के संकल्प पत्र का हिस्सा है। और हमारा नया मंडी कानून । लेकिन खेत से और किसान से इस सीधी खरीददारी में किसी प्रकार का सरकार का हस्तक्षेप ना हो ,कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य की शर्त न हो , इसीलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के संरक्षण की बाध्यता मंडी से बाहर खरीदने पर लागू नही है । जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर #स्वामीनाथनकमेटी की बहस अभी समाप्त भी नहीं हुई थी कि नए कृषि कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य का अस्तित्व ही खतरे में आ गया । क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसा कोई शब्द वॉलमार्ट की नीति का हिस्सा नहीं है।
इसके लिए वालमार्ट के शब्दों का सौंदर्य भी समझें,
Farmers reap benefits like competitive prices, reduced risk, and increased income. ।
जब कृषि सुधार बिल पर भारत उबल रहा था ।तब वॉलमार्ट के सीईओ डग मैकमिलन 21 सितंबर को वॉलमार्ट का 5 करोड़ एकड़ के वैश्विक फॉर्म, तथा 10 लाख वर्गमील के समुद्र का ख्वाब सार्वजनिक कर रहे थे ।
World’s largest retailer targets zero emissions by 2040 and aims to protect, manage or restore at least 50 million acres of land and one million square miles of ocean by 2030.
वॉलमार्ट /पूंजीपतियों द्वारा कृषि की जो चुनौतियां पेश की हैं भारत में पेश की हैं।वह सिर्फ तीसरी दुनिया के देशों के समक्ष नहीं है ।बल्कि अमेरिका की कृषि और किसान को भी वाल मार्ट ने जबरदस्त झटका दिया है । वहां किसानों की आत्महत्या की दर 40% बड़ी है ।
#वॉलमार्ट और #भारतीयकृषि का सच । स्वतंत्र और खुली प्रतियोगिता कितना लोकलुभावन शब्द है।
क्या यह मुकाबला कभी राजा भोज और गंगू तेली के बीच संभव हुआ है ।
आइए आंकडो की जुबानी समझें कि क्या भारतीय कृषि वालमार्ट का मुकाबला करने के लिए सक्षम है। भारत में कृषि आज भी 45प्रति शत यानी लगभग 60 करोड लोगों की आजीविका का साधन है। यही 45 प्रतिशत भारतीय ,जीडीपी में 17 प्रति शत का योगदान करते हैं।
भारत के 82% किसानों के पास एक एकड़ खेती है, देश का राष्ट्रीय जोत औसत 1.8 एकड़ है। देश का किसान औसतन ₹6000 महीने कमाता है. अपनी इस आय पर वह इसके 150 प्रतिशत मजदूरी आदि अन्य कामों से कमाता है।
किसान खुले में एक सप्ताह से अधिक ,अपनी कृषि जोत को रखने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में यदि एमएसपी के कवच के बिना उसे छोड़ा जाता है। तो कोई साहूकार /बहुराष्ट्रीय कंपनी उसकी फसल खेत में खरीदेगी तो उसका क्या हाल होगा इसकी कल्पना की जा सकती है ।
#अमेरिकी खेती में भी वॉलमार्ट की मार: खेती में वॉलमार्ट की मार सिर्फ तीसरी दुनिया के देशों में नहीं है ।बल्कि अमेरिका की खेती किसानी भी इससे बेहद प्रभावित है । अमेरिका की जीडीपी में कृषि का हिस्सा मात्र 5% है । वहां कृषि तकनीक पर आधारित है । पर वॉलमार्ट की नीतियों के कारण 2011 से 2017 के बीच कृषि का विकास लगभग स्थिर रहा।
2017 तक अमेरिकी कृषि उत्पाद का 28 बिलियन डालर निर्यात चीन को होता था। जिसे चीन ने 2018 में 9. 6 बीलियन डॉलर कर दिया।अब सोयाबीन के निर्यात में 75% की कमी आ गई है, किसानो की आत्महत्या की दर अचानक बड़ गई ,पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका में 915 किसानों ने आत्महत्या की है ।सैकड़ों किसान पागल हो गए, अमेरिकी खेती के समक्ष उत्पन्न इस अभूतपूर्व संकट में किसानो को सहायता देने के लिए 28 बिलियन डॉलर की सब्सिडी लेकर अमेरिका आगे बडा ,लेकिन हालात अभी भी बेकाबू हैं ।
वॉलमार्ट का बेकाबू सफर : 1962 में सेम वॉलमार्ट ने पहला डिपार्टमेंटल स्टोर खोला, फिर अमेरिका में बडते हुए,1969 में यह स्टोर कॉर्पोरेट में तब्दील 1995 में अमेरिका से बाहर कनाडा में स्टोर खोला गया। तब दुनिया के देशों में बडता हुआ ,2005 में विश्व कृषि का सौदागर बनने का सपना देखते हुए ग्लोबल वॉलमार्ट की स्थापना हुई ।
वैश्विक कृषि और पर्यावरण के लिए आदर्श वाक्य के साथ आज दुनिया के 100 देशों की कृषि और विकास की नीति को वालमार्ट प्रभावित कर रहा है । कृषि के लिए वॉल मार्ट का नीति वाक्य है “हम गरीबी, भुखमरी, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं जैसे मुद्दों को दबाने के लिए आपूर्तिकर्ताओं, सरकार, नागरिक समाज और अन्य लोगों के साथ सहयोग करते हैं।'”
जानकार बताते हैं कि ब्राजील में अमेजन के जंगल का पर्यावरण संकट ,बीफ उत्पादन की दृष्टि से वालमार्ट द्वारा ही प्रायोजित है ।
भारत के कृषि सुधार बिल यदि किसानों को एमएसपी से संरक्षित कर सके तो यह आगे बडने वाले कदम होंगे । यदि किसान एमएसपी से संरक्षित नहीं हुए, तो बहुत शीघ्र भारतीय किसान सिर्फ खेतिहर मजदूर ही रह जाएगा ।