प्रमोद साह
7 अप्रेल 2022 की दोपहर को 89 वर्ष की अवस्था में विश्वम्भर नाथ साह “सखा दाज्यू” ने अपनी अंतिम सांस ली और इसी के साथ पिछले 70 साल से नैनीताल के जीवन्त सांस्कृतिक इतिहास का एक अध्याय बंद हो गया।
1933 में नैनीताल में जन्म लेने के बाद से ही विश्वम्वभर नाथ साह ‘सखा’ के बहुआयामी सार्वजनिक जीवन की तैयारी मानो नियती ने स्वयं प्रारम्भ कर दी थी। जब पूरे देश के साथ नैनीताल में भी आजादी का आंदोलन जोर पकड़ रहा था तब गांधीजी के प्रभाव से प्रभावित होकर आप शांतिनिकेतन में शिक्षा लेने पहुंचे, शांति निकेतन में आपका चित्रकार पक्ष खूब निखर कर आया, यहां से पेंटिंग की अगली शिक्षा के लिए आपका चयन जापान के लिए हुआ, लेकिन समय ने फिर करवट बदली और आप वापस नैनीताल आ गए।
आपके व्यक्तित्व में गजब का विरोधाभास था। आपने शिक्षा तो शांतिनिकेतन में प्राप्त की, लेकिन वहां आपके भीतर एक परिपक्व तथा समर्पित वामपंथी युवक तैयार हुआ। वामपंथ के प्रभाव से आप भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के स्थाई कार्ड होल्डर सदस्य रहे और लंबे समय तक जन आंदोलनों में भागीदारी करते रहे। 70 के दशक में गिरीश तिवारी गिर्दा, शमशेर सिंह बिष्ट राजीव लोचन साह जी आदि के साथ वन आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की। आपके मुखर व्यक्तित्व ने आपको जनता के सवालों और सार्वजनिक जीवन से दूर नहीं होने दिया। इसके प्रभाव से ही आप तीन बार कैन्टोलमैंट नैनीताल के चुने हुए सदस्य रहे। यह सब आपका बाहरी पक्ष था।
आपके भीतर स्थाई रूप से अगर कुछ था तो वह था एक प्रयोगधर्मी चित्रकार और संगीतकार जिसने नैनीताल को शास्त्रीय संगीत की ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयोग किए। आपको घंटों ठुमरी गायन का रियाज तानपुरे पर करते हुए देखा जा सकता था। आपके अंदर का जन्मजात पेंटर कभी आपसे दूर नहीं हुआ, आपकी पेंटिंग के विषय हमेशा आंचलिकता और उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं पर केन्द्रित रहते थे। बीच के सालों में आपने नैना देवी महोत्सव पर नैना देवी की मूर्तियों का श्रंगार भी किया। अपने जीवन के आखिरी पड़ाव में भी आप पेंटिंग बनाने में मशगूल थे और अपने अंतिम समय तक भी आप ‘खतड़वा’ पेंटिंग को अंजाम दे रहे थे।
एक प्रयोगधर्मी कलाकार के रूप में आपके दर्जनों किस्से हैं। 1960 के आस—पास जिस दौर में फिल्म बनाना बहुत कठिन काम था उस दौर में भी आपने अपने दम पर तीन-चार फिल्मों का निर्माण किया। उनमें सबसे महत्वपूर्ण फिल्म भारत में चीन के हमले की पृष्ठभूमि में बनाई फिल्म “तवांग से वापसी”।
संगीत और कला के क्षेत्र में ऊंचाइयां प्राप्त करने के बाद भी आप लगातार 60 वर्षों तक नैनीताल के सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश को जीवंत करने के लिए समर्पित रहे। शारदा संघ और राम सेवक सभा के माध्यम से नैनीताल के सांस्कृतिक उत्थान विशेषकर रामलीला और होली महोत्सव को नई ऊंचाइयां प्रदान करने में आपकी भूमिका हमेशा अग्रणी रही है।
एक समर्पित पेंटर, संगीतज्ञ, हरदम समाज के लिए समर्पित व्यक्ति से भी महत्वपूर्ण पक्ष आपकी विनम्रता और आपकी विद्वता थी। नैनीताल के रंगमंच संस्कृति और कला को ऊंचाइयां प्रदान करने में गिरीश तिवारी गिर्दा और विशंभर नाथ सखा जो वर्षो कैलाखान, नैनीताल के एक ही मकान में रहे का, योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। नैना देवी मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में भी आपकी सेवाएं ऐतिहासिक रही हैं। आज नैना देवी के वास्तु और शिल्प में जो सादगी पूर्ण भव्यता दिखाई देती है उसमें भी विशंभर नाथ ‘सखा’ का व्यक्तित्व झलकता है।
आज विशंभर नाथ साह ‘सखा’ का देहावसान सिर्फ एक व्यक्ति का चले जाना नहीं है, यह संस्कृति और समाजिक सक्रियता के एक युग का भी अवसान है।