प्रोफेसर मृगेश पाण्डे
ब्रह्माण्ड अनेक रहस्यों से भरा है. इनके बारे में जानने के लिए उत्सुकता लगातार बनी रही है. आदि काल से ही मानव ने आकाश में सूर्य, चंद्र व तारों को देखा. इनकी गतियों का निरीक्षण किया. धीरे-धीरे इस अध्ययन से चली आ रही पूर्व मान्यताओं पर आधारित देवी देवताओं द्वारा संचालित ब्रह्माण्ड की धारणा से हट यांत्रिक रूप से संचालित ब्रह्माण्ड के स्वरुप की जाँच परख हुई. वैदिक काल में इसे क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर द्वारा बना माना गया. अरस्तु काल में यूनान में पृथ्वी को क्षिति, जल, अग्नि व वायु के साथ आकाश जिसमें सूर्य के साथ चंद्र, सूर्य, ग्रह व तारे के साथ एक अन्य स्वर्गीय पदार्थ क्विंटीसेंस से बना माना गया. मान्यता रही कि पृथ्वी में पाए जाने वाले पदार्थ नश्वर हैं पर स्वर्ग सदैव अपरिवर्तन शील है.
तदंतर पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के केंद्र में रख सूर्य, चंद्र, ग्रहों व तारों की गतियों का अध्ययन किया गया. इससे तारा समूहों का नक्षत्रों व राशियों में विभाजन संभव हुआ. वर्ष भर के पंचांग बने, तारों व ग्रहों की स्थिति बताने वाले मानचित्रों का निर्माण संभव हुआ. ऐसी गणना संभव बनी जिससे सूर्य व चंद्र ग्रहण के समय का पूर्वनुमान हो. यह सब ईसा पूर्व तीसरी सदी तक हो चुका था.
ग्रीस के खगोलविदों की पाइथोगोरियन बिरादरी ने उस काल में सूर्य केंद्रित संसार का मॉडल खोज डाला था. सोलहवीं सदी से यूरोपीय महाद्वीप में हुए नव प्रवर्तनों में कोपरनिकस, केप्लर, गेलीलियो और न्यूटन ने पुरानी मान्यताओं का खंडन कर सौर मंडल के केंद्र में सूर्य को स्थापित किया व ग्रहों की चाल को गणितीय नियमों से समझाया.
बीसवीं सदी के आरम्भ में आइन्सटाइन आपेक्षिकता का सिद्धांत रच गये. अब ब्रह्माण्ड के ऐसे रहस्यों का उद्घाटन हुआ जो न्यूटन के सिद्धांतों से सुलझ न सका था. स्पष्ट हुआ कि सृष्टि का प्रारम्भ अत्यंत सूक्ष्म बिंदु से ऊर्जा के महाविस्फोट या बिगबैंग से हुआ. इसका प्रसार दिक तथा काल में होता रहा. वैज्ञानिक बता पाए कि पदार्थ किस प्रकार व्यवहार करता है पर पदार्थ के आंतरिक गुण क्या हैं इसे अभी तक समझा नहीं जा सका है. विज्ञान व तकनीक की प्रगति ने ब्रह्माण्ड पर अभिनव शोध परक तथ्य जुटा डाले हैं पर भविष्य में इसका स्वरुप क्या होगा इस पर भी वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं.
ऐसे सभी सन्दर्भ जुटाती गिरीश चंद्र जोशी की विज्ञान श्रृंखला ‘विज्ञान और ब्रह्माण्ड’ चार पुस्तकों का समुच्चय है :
- इतिहास तथा आधुनिक अवधारणा.
- दूरबीन के विकास का इतिहास तथा खगोल विज्ञान में योगदान.
- पृथ्वी तथा सौर मण्डल के सदस्य.
- तारे निहारिकायें, आकाशगंगा, मन्दाकिनियाँ तथा ब्रह्माँडिकी.
इन पुस्तकों के प्रकाशक नवारुण के संजय जोशी की भावना यह रही कि चार किताबों के इस सेट को अपने स्कूलों और शिक्षकों के बीच ले जाया जाए. जिन स्कूल व पुस्तकालयों को इन किताबों की सख्त जरुरत है वहां किताब पहुंचे और गिफ्ट भी की जा सके. विद्यार्थियों व सामान्य पाठकों को हिंदी में सरल भाषा में नये विषयों व ज्ञान – विज्ञान से परिचित करवाया जाये. नये विचारों को प्रकाशित करना हो नवारुण का लक्ष्य रहे. ऐसी शुरुवात लोकप्रिय विज्ञान लेखक देवेंद्र मेवाड़ी की पुस्तक ‘विज्ञान की दुनिया’ से की जा चुकी थी. अब नवारुण की विज्ञान श्रृंखला में गिरीश चंद्र जोशी की ‘विज्ञान और ब्रह्माण्ड’ की उपर्युक्त चारों पुस्तकें विद्यार्थियों के साथ जनरूचि के बेहतर प्रतिमान बनाने में सक्षम प्रतीत होती हैं.
उत्तराखंड के नैनीताल शहर में 25 अक्टूबर 1949 को जन्मे गिरीश चंद्र जोशी 1975 से 2014 तक हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर में भौतिकी विभाग के आचार्य रहे.साथ ही उन्होंने विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग की परियोजना में तीन वर्ष वरिष्ठ वैज्ञानिक पद पर तथा टाटा फंडामेन्टल रिसर्च सेंटर में विजिटिंग फेलो के रूप में अपनी सेवाएं दी. सौर ऊर्जा के विविध आयामों पर उनका शोध कार्य, सौ रिसर्च पेपर व बारह शोध प्रबंधों का दिशा निर्देशन सम्मिलित है.अमेरिका, इंग्लैंड और जापान विश्वविद्यालयों में रहते प्रबुद्ध वैज्ञानिकों के सान्निध्य में रहते व वहां के पुस्तकालयों में सामयिक व नवीनतम सन्दर्भ का अवलोकन करते उन्हें विज्ञान को लोकप्रिय बनाने हेतु प्रचुर सन्दर्भ मिले.
हिंदी में विज्ञान व ब्रह्माण्ड पुस्तक लिखने की सोच उन्हें उनके गुरु तारा चंद्र त्रिपाठी से मिली. सुशील शुक्ल, देवेंद्र मेवाड़ी व आशुतोष उपाध्याय से लेखन के विविध स्तरों पर मदद मिली. उनकी पहला लेख ‘राष्ट्रीय शोध तथा विकास संस्थान ‘द्वारा प्रकाशित विज्ञान पत्रिका ‘अविष्कार’ में छपा जिसके संपादक राधा कृष्ण अंतवाल थे. हिंदी की रचनाएं, लेख व कहानियाँ पढ़ने की अभिरूचि जगाने व अपनी बात को लिख देने की समझ उन्हें अपने बाबू जी मोहन चंद्र जोशी से मिली जो हर माह उनके लिए पत्रिकाएं खरीद कर लाते थे.फिर यह उनकी आदत बन गई. खुद भी पढ़ते व अपने से छोटे भाइयों को भी समझाते. गिरीश जोशी की इंटर से आगे की पढ़ाई डी एस बी महाविद्यालय नैनीताल से हुई जहाँ की लाइब्रेरी विख्यात थी.
विज्ञान सम्बंधित विषयों पर चिंतन-मनन उनके भीतर प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. डी डी पंत के सान्निध्य से उपजा जो स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई में उनके गुरु रहे. लगातार खोजबीन की मानसिकता व तर्क संगत दृष्टिकोण उनके संसर्ग से पुष्ट होते गया.” विज्ञान तो सर्व जन हिताय है इसके नतीजे आम आदमी को उसकी सरल भाषा बोली में समझा दें तभी संतुष्टि चरम होगी”, यह उनका सूत्र वाक्य था.
अपनी पहली पुस्तक में डॉ जोशी ने ब्रह्माण्ड के इतिहास व आधुनिक अवधारणा के क्रम को स्पष्ट किया है. समझाया है कि विज्ञान और ब्रह्माण्ड की खोज की हजारों साल से चली इस यात्रा में कई सिद्धांत समय की कसौटी में खरे उतरे तो कई संदेह के घेरे में भी आए. विज्ञान तो तर्क और सिद्धांत को यथासम्भव प्रयोग की कसौटी पर परखता है. अभी भी पदार्थ और चेतना के बीच क्या संबंध है, इसका कोई खाका वैज्ञानिकों के पास नहीं है. संभव है कि ढाई हजार साल पहले अंकों व संगीत के सुरों के बीच जैसा सम्बन्ध स्थापित करने में सफलता हासिल हुई थी,भविष्य में पदार्थ और चेतना के बीच भी सम्बन्ध बन सके जिससे ब्रह्माण्ड के वास्तविक स्वरुप की पहचान संभव हो.
ब्रह्माण्ड का स्वरुप हमारी सोच से अधिक विलक्षण है. हम प्राकृतिक आकृतियों की तो पहचान कर सकते हैं पर हम जड़ और चेतन के सभी नियमों को पूरी तरह नहीं जानते. जड़ किस अवस्था में चेतन में बदल जाता है, पदार्थ और बुद्धि के बीच क्या संबंध है? शून्य व अनंत के बीच क्या संबंध है? कुछ होने और कुछ न होने के बीच क्या सम्बन्ध है?
खोज जारी है. सवाल भी कि ब्रह्माण्ड और आदमी के दिमाग में से कौन श्रेष्ठ है. शायद दिमाग ब्रह्माण्ड की सभी जटिलताओं को समझने में कभी सक्षम न हो सके,पर ब्रह्माण्ड को जानने-समझने का प्रयास ही मानव जीवन को सार्थकता प्रदान करता है. हम चीजों को जानने, प्रश्न करने और प्रशंसा करने को तैयार रहते हैं. हमारा अस्तित्व इसीलिए है.
वह दिमाग ही है जिसके द्वारा हम पिछली बातों को याद रख सकते हैं, भविष्य के बारे में कल्पना कर सकते हैं, उसके आधार पर सृजन कर सकते हैं. ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई स्थान नहीं जो आदमी के दिमाग की सीमा से बाहर हो. भारतीय दर्शन के अनुसार “अहं ब्रह्मास्मि” मनुष्य के दिमाग के इसी रूप को चरितार्थ करता है.
दूरबीन की मदद से ही ब्रह्माण्ड के इतिहास को जानने समझने में सफलता मिली है.पहले ब्रह्माण्ड का अस्तित्व न था, करीब तेरह अरब साल पहले यह अनंत रूप से सघन बिंदु के रूप में उभरा जिसमें विस्फोट हुए जिससे फलस्वरुप समय, आकाश, पदार्थ व ऊर्जा में विस्तार की प्रक्रिया चल पड़ी.पहले पदार्थ गरम प्लाज्मा के रूप में था जिसमें ऊर्जा का क्षय हुआ व लहरें उत्पन्न हुईं जिनसे पदार्थ में सघनीकरण व विरलीकरण आरम्भ हुआ. गुरुत्वाकर्षण से सघन भाग पिंड बने व मन्दाकिनियों का निर्माण हुआ. धीरे धीरे इनमें असंख्य तारों का सृजन हुआ. मन्दाकिनियों के समूह बनने लगे और ब्रह्माण्ड अपने वर्तमान स्वरुप में आया.
अभी पांच सौ साल ही हुए जब गैलीलियो ने अपनी छोटी सी दूरबीन आकाश की तरफ मोड़ी थी. उससे पहले तो नंगी आँखों से ही आकाश देखा जाता रहा. लगातार हुए नवप्रवर्तन से आज रेडियो दूरबीन-एक्स रे- उच्च ऊर्जा कण-फोटान -गुरुत्वतरंग संसूचक विद्यमान हैं जिनकी सहायता से अंतरिक्ष से आने वाले विकिरण का ज्ञान होता है और ब्रह्माण्ड की संरचना से संबंधित महत्वपूर्ण खोज संभव होती रही है .
मानव ने अंतरिक्षयान प्रक्षेपण में सफलता पाई तो चन्द्रमा की धरती का स्पर्श हुआ व सौर मण्डल के अन्य ग्रहों को निकट से देखने का अवसर मिला. हमारे सौर मण्डल के समान अन्यत्र तारों के ग्रहों की खोज जारी है जिनमें जीवन की संभावना तलाशने के प्रयास भी बढ़ते रहे हैं.
विज्ञान और तकनीकी का सर्वोत्तम चमत्कार तो यह है कि अंतरिक्ष में जेम्स वेव दूरबीन (2022) स्थापित कर दी गई. इसकी मदद से मन्दाकिनियों के साथ तारे व ग्रहों की निर्माण प्रक्रिया को समझना, ग्रहों की जानकारी के साथ उनमें जीवन की उत्पत्ति के कारणों की खोज व किसी बाह्य ग्रह में विद्यमान मीथेन गैस की खोज सम्भव हुई जिससे यह पता चल सके कि जीवन की उत्पत्ति के लिए जरुरी यह गैस वाहय ग्रहों में भी मौजूद है.
पृथ्वी के अलावा भी कहीं जीवन है की जिज्ञासा व उत्सुकता वैज्ञानिक करते रहे हैं, इसकी युक्ति पर लगातार अनुसन्धान किये जा रहे हैं. मंगल ग्रह पर जीवाष्म खोजने व सौर मंडल के बाहर के अन्य ग्रहों के वातावरण में जीवन होने के कारण होने वाले रासायनिक परिवर्तनों पर खोज जारी है.
ब्रह्माण्ड में आरम्भ में केवल हाइड्रोजन व हिलियम ही थे.तदन्तर तारों के गर्भ में नाभिकीय संलयन प्रतिक्रिया से भारी तत्व जैसे कार्बन, ऑक्सीजन, लोहा इत्यादि का सृजन हुआ. सुपर नोवा विस्फोट से अन्य भारी तत्व भी पैदा हुए व अंतरिक्ष में फैले जिससे अन्य तारे व ग्रह बने. किसी दिन, किसी स्थान में अनुकूल परिस्थितियों में जैविक अणुओं की उत्पत्ति हुई. जीवन के लिए जरुरी कैलशियम, रक्त में मौजूद लोहा, सांस के लिए ऑक्सीजन व अन्य तत्व वस्तुतः तारों से निकली धूल से ही धरा पर आये. इस समूची प्रक्रिया को तीसरी पुस्तक’ हमारा सौर मण्डल’ में विस्तार से समझाया गया है.
कुछ प्रश्न बहुत कौतुहल व रहस्य से भरे हैं जैसे कि क्या हमारी पृथ्वी से बाहर जीवन की संभावना है? सौर मण्डल के समान अन्य तारे भी ग्रह युक्त हैं, संभव है कि उनमें से अनेक में पृथ्वी की तरह जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियां विद्यमान हों. कई तारों का जीवन काल अधिक है जो इन्हें जीवन उद्भव के लिए अनुकूल बनाता है. यह खोज जारी है कि क्या पृथ्वी जैसे उच्च घनत्व वाले पार्थिव ग्रह हैं या नहीं. यदि ऐसे ग्रह विद्यमान हैं तो अरबों मन्दाकिनियों पर जीवन की संभावना वाले असंख्य ग्रह मौजूद हो सकते हैं. अभी तक ऐसे ग्रहों की खोज अप्रत्यक्ष रूप से की जाती है. यदि इनके प्रत्यक्ष अवलोकन के प्रयास फलीभूत हुए तो जल और ऑक्सीजन की मौजूदगी का पता लगाया जा सकेगा.
प्रासंगिक मुद्दा यह है कि यदि अन्य ग्रहों में जीवन है तो क्या वहां बुद्धिमता युक्त प्राणी हो सकते हैं, क्या कहीं विकसित सभ्यता विद्यमान होगी? हमारी धरती पर एलियन के दिखाई देने की बातें अक्सर सुनाई देती हैं पर इसके कोई स्पष्ट प्रमाण मौजूद नहीं. इस संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता कि अन्यत्र ग्रहों की विकसित सभ्यता शक्तिशाली विद्युत चुम्बकीय संकेतों से हमसे संपर्क करना चाहती हों पर हम उन्हें संसूचित न कर पा रहे हों. संभावना यह भी बनती है कि ये अनजान विकसित सभ्यताएं ऐसी संचार प्रणाली का प्रयोग कर रही हों जो हमारे संज्ञान में न हो.
प्रश्न यह भी उठता है कि क्या ब्रह्माण्ड का निर्माण संयोग से ऐसे हुआ कि इसमें जीवन का उद्भव हो सके और ऐसी तमाम परिस्थितियां हों जो जीवन को सतत चलाने के लिए अनुकूल हों. जब ब्रह्माण्ड का वर्तमान स्वरुप भौतिक नियमों के हिसाब से हुआ तो यह जिज्ञासा भी बनी रहती है कि ऐसे असंख्य ब्रह्माण्ड अस्तित्व में हों और हमारा विश्व इनके छोटे समूह का भाग हो जो जीवन के अनुकूल हो.
इन वैज्ञानिक रहस्यों से आम जनों के साथ विद्यार्थियों को परिचित कराने की भावना से परिचित कराने वाली पुस्तक ‘विज्ञान एवं ब्रह्माण्ड’ को मौलिक पुस्तक लेखन हेतु “राजभाषा गौरव पुरस्कार “से 14 सितम्बर 2024 को नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित चतुर्थ राजभाषा सम्मलेन में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा सम्मानित किया गया.
वैज्ञानिक विषयों में हिंदी भाषा के जनउपयोगी साहित्य की रचना व हिंदी का प्रयोग करने में सम्मान का भाव उत्पन्न करने की आकांक्षा में गिरीश चंद्र जोशी ने उन्नत अधिमान रचा है. प्रकाशन में नवारुण के संजय जोशी व उनकी टीम ने किशोरों के लिए बेहतर व कारगर पहल संभव कर दिखाई है.
नोट – अमेजन से किताब मंगवाने का लिंक : ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी