दिनेश जुयाल
भाजपा वालों की दिल्ली भी कमाल की जादूगर है। गज़ब हाथ की सफाई है। टोकरी में एक एक कर कई घुसेड़े गए फिर झप्प से कपड़े से ढका। डुगडुगी बजी। दर्शकों से कहा कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा। फिर कपड़ा हटा तो जो निकला वो तो टोकरी में घुसेड़ा ही नहीं गया था। बजाओ ताली!!!!…
इतने नाम तैराये गए और फिर पता चला कि ‘विधायकों ने एकमत से ‘ खटीमा के युवा विधायक पुष्कर धामी को अपना मुख्यमंत्री चुन लिया है। ठीक वैसे ही जादू हुआ जैसे त्रिवेंद्र के बाद तीरथ के चयन में हुआ था। पुष्कर धामी दो बार के विधायक हैं। युवा मोर्चा की कप्तानी की,छात्र राजनीति की लेकिन भाजपा की पिछली सरकार में उन्हें राज्यमंत्री के काबिल भी नहीं समझा गया था। अब डुगडुगी बजी तो सीधे सीएम हो गए।
उत्तराखंड के क्षत्रपों को चौंकाते हुए दिल्ली ने एक पैक में कुमाऊं का फेस दे दिया, ठाकुर दे दिया, युवा दे दिया और क्या चाहिए महाराज !! त्रिवेंद्र के हटने के बाद भी हल्के से ये नाम आगे किया गया था । इनके लिए भगत सिंह कोश्यारी यानी भगत दा ने भी दौड़ लगाई थी लेकिन तब गऊ टाइप फेस मदारी के दिमाग में था इस बार मदारी ने अपना सरप्राइज कुछ तर्कों – समीकरणों के साथ परोसा है।
दिल्ली ने अपने सीएम बनाने बिगाड़ने के खेल से उत्तराखंड भाजपा के कई गुट बना दिये। साफ संदेश है- लड़ते झगड़ते रहो, डांट खाते रहो, खिसकते रहो और कायदे में रहो, बाकी संभालना तो हमें ही है। विपक्ष की कमजोरियां और विरोधी मतों का बंटवारा देख रही भाजपा की दिल्ली कहीं चुनाव को ज्यादा हल्के में तो नहीं ले रही? चुनावी साल में तीसरा मुख्यमंत्री बदला है। एक चार साल पूरे न कर सका तो दूसरे को चार माह भी नहीं दिए। अब तीसरे की भगवान रक्षा करे। ये यहां की पुरानी परंपरा है 21 साल में हुए 10 मुख्यमंत्रियों को दिल्ली ने ही तय किया।
अब एक सवाल रह जाता है कि क्या पुष्कर धामी जी क्या 2022 चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर भी पेश किए जाएंगे? लगता है इस बारे में कुछ प्रारंभिक परीक्षणों के बाद ही किसी दिल्ली वाले के श्रीमुख से उचित समय पर कुछ निकलेगा। धामी के लिए अगले आठ महीने कठिन परीक्षा के हैं। तीरथ के इस्तीफे पर कल रात मिठाई बांटने वाले गुट के अलावा, लंबे समय से मुख्यमंत्री पद के दावेदार चेहरों की हताशा किस रूप में सामने आती है देखना होगा। वो जिनके पाला बदल की अटकलें साल भर से चल रही हैं जाने क्या सोच रहे हैं। खासकर इस बार ज्यादा ही जोर लगाने वाले सतपाल महाराज को जिस तरह एक बार फिर पुराना कांग्रेसी होने का अहसाह दिलाया गया है उससे बहुत अनमने होंगे। पिछले चुनाव में कुनबा तोड़ चुकी कांग्रेस में तो अब भी मुख्यमंत्री के दावेदार बचे हैं लेकिन पहली बार ताल ठोंक रही आमआदमी पार्टी की इधर टकटकी लगी हुई है। धामी को पार्टी के ऐसे दिग्गजों को भी साधना नाथना होगा जिनकी उधर डिमांड बनी हुई है और जो अपने विस्तारित कुनबे का एक हिस्सा पहले ही उधर सेट कर चुके। हरक सिंह का हाल में कंफर्ट जोन बना था उसमें विचलन भी असर दिखा सकती है। सुबोध उनियाल समेत कुछ और चेहरे हैं जो बड़े सुख में दिख रहे थे। पुष्कर भी इनके भार तले तीरथ बनते हैं या खुद को संभालते हैं ये देखने लायक होगा।
मंत्री – संतरी लोग अगले राज की उम्मीद में हसरतें अधूरी नहीं छोडते। तीरथ इन हसरतों से भरे लोगों और खासकर विरासत में मिले बड़े मंत्रियों की हसरतों को समझ ही रहे थे कि उनकी समझ पर ही सवाल उठ गया। और उन्हें कुर्सी से उठना पड़ा। तीरथ दिल्ली द्वारा लादे गए वजन की वजह से ठीक से चल नहीं पा रहे थे। उन पर दाग धोने को जिम्मेदारी थी, चुनाव के लिए जो जुटाना होता है उसका भी दायित्व था, स्थानीय दिग्गजों के साथ ही दिल्ली वाले भी कंधे पर चढ़े थे, कुछ चिढ़े हुए , चिड़चिड़े थे। नौकरशाहों ने तो पहले ही ताड लिया था कि ये तो भोले बाबा हैं सो उनकी दुकान पहले से बेहतर चली । फिर भी हड़बड़ाते बड़बड़ाते चौतरफा संभालने के चक्कर में भूल ही गए कि उत्तराखंड की फिसलने वाली कुर्सी को टाइट पकड़ना होता है।
पुष्कर धामी को बहुत दूर बैठे भगत दा ने कितना दीक्षित किया वही जाने लेकिन इन कसौटियों पर कसा तो उन्हें भी जाना है।
दरअसल 2022 के चुनाव में पार्टी की जीत की संभावनाएं तलाशने के लिए दिग्गजों ने रामनगर में जो मथा उसके नवनीत पर लिखा था तीरथ तुम से ना हो पायेगा। मुख्यमंत्री को उपचुनाव में उतारने के बारे में पक्ष विपक्ष संवैधानिक व्यवस्थाओं पर बहस में उलझा था और पार्टी के प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम नवनीत का विश्लेषण करते हुए अपनी रिपोर्ट अपने ढंग से लिख रहे थे। बैठक की रिपोर्ट दिल्ली पहुंची और मुख्यमंत्री दिल्ली तलब कर लिए गए। आस्था, समर्पण , आज्ञाकारिता आदि में पूरे नंबर होने के बावजूद तीरथ खुद को सक्षम मुख्यमंत्री साबित नहीं कर पाए। आते ही पूर्वमुख्यमंत्री के कई फैसले पलटने की घोषणाएं तो की लेकिन कुछ भी नहीं पलट पाए। अफसरशाही को हिलाने डुलाने की रस्म भी ऐसी कि कुछ नहीं हिला। कुछ अजीब से अटपटे से बयान। अब जिसकी भी आज्ञा रही हो लेकिन कहा तो यही जाएगा कि तीरथ ने ही कुम्भ को कोरोना कुम्भ बनाया और अब कोविड जांच घोटाले में वही घिरे हैं, भले ही ठेके किसी ने छोड़े हों। संगठन पर पहले सीएम की पकड़ होती थी अब ऐसा नहीं दिखता । यहां तो प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री को पकड़ कर इस्तीफा दिलाने ले जाते दिखे। घोषणा भी वही कर रहे हैं। तो भाई दिल्ली वाले इतने भले मानुष को राजनीति के दूसरे पर्चों में अच्छे नंबर कैसे देते?
विकल्प के तौर पर कई नाम उछाले गए। दिल्ली वालों के पास अनिल बलूनी नाम का स्काईलैब तैयार है । बलूनी के मीडिया वाले मित्र किसी न किसी बहाने उनकी ब्रांडिंग में लगे ही रहते हैं लेकिन सरकार और प्रदेश संगठन में बतौर नेता उनकी स्वीकार्यता के पैमाने पर मामला लटक जाता है।
सतपाल महाराज पूरी तैयारी में थे। एकाधिक मौकों पर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में अपनी उपस्थिति का उन्होंने जिस तरह अहसास कराया उससे भी लग रहा था कि उन्हें कहीं हरी झंडी दिख रही है। इस ब्राह्मणवेशी ठाकुर धार्मिक नेता को लेकर दूसरे दावेदार बहुत सतर्क थे। चिन्तित थे अगर एक बार सेनापति बन गए तो चाहे जितना भी लुटाना पड़े अपनी सेना भी खड़ी कर सकते हैं। बहुत मालदार हैं। नाम विशन सिंह चुफाल का भी चल रहा था। त्रिवेंद्र ने अपनी बात बिगड़ी देख फिर धन सिंह का नाम चलाया। इस बार भगत दा के दिल्ली देहरादून आने की खबर भी नहीं आयी लेकिन असली खिलाड़ी वही साबित हुए। चेले की सीएम बनवा ही दिया। चल गए तो क्या कहने, नहीं चले तो जादूगर दिल्ली है ना!