जगमोहन रौतेला
हल्द्वानी – नगर निगम के सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को संविधान के पांचवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई। वक्ताओं ने कहा कि सन् 1972 से पहले उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में संविधान की पांचवीं अनुसूची लागू थी। बाद में इसे एक राजनीतिक साजिश के तहत हटा लिया गया। इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत ने कहा कि पहाड़ में शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट-1874 लागू था। उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र तब कुमाऊं कमिश्नरी के अंतर्गत आता था। इसी एक्ट के तहत अंग्रेजों ने पहाड़ के लिए सन् 1921 में नॉन रेगुलेशन सिस्टम लागू किया। इसी के तहत इस क्षेत्र में रेगुलर पुलिस नहीं होती थी। पुलिस का काम राजस्व पुलिस करती थी। जिसे पटवारी व्यवस्था कहा जाता था।
वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक चिंतक श्याम सिंह रावत ने कहा कि पहाड़ के लोगों को सन 1995 तक 6% आरक्षण मिलता था। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार से भी पर्वतीय क्षेत्र के लिए विशेष फंड जारी किया जाता था। उन्होंने कहा कि हम राज्य बनने के 24 साल बाद भी अपनी नदी, अपने जंगलों पर अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाता है, तो हमें अपने जंगल, नदियों, जमीनों का कानूनी अधिकार स्वत: ही मिल जाएगा।
उत्तराखंड एकता मंच के अनुप बिष्ट ने कहा कि भारत सरकार द्वारा 1965 में नियुक्त लोकुर समिति ने कुछ ऐसे मानक तैयार किए गए हैं, जिनके आधार पर किसी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिया जाता है। इस कमेटी ने जनजाति के दर्जे के लिए जो मानक बनाए हैं, उन पर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के मूल निवासी खरे उतरते हैं।
उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता डीके जोशी ने पांचवीं अनुसूची को लेकर कुछ संवैधानिक सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि इन संवैधानिक सवालों का जवाब भी इसकी मांग के साथ खोजना होगा, तभी यह लड़ाई अपने मुकाम तक पहुँचेगी. निशान्त रौथाण ने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में 85% क्षेत्र में जंगल हैं। हमारे जंगल हमें अनुसूचित दर्जे का स्वाभाविक हकदार मानते हैं। भारत में 11 पहाड़ी एवं केंद्र शासित प्रदेशों के लोगों को जनजाति घोषित किया गया है। तब उत्तराखंड के साथ यह भेदभाव क्यों हो रहा है?
वरिष्ठ पत्रकार बसन्त पान्डे ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासियों को पांचवीं अनुसूची के अपने संवैधानिक अधिकार की लड़ाई के लिए आगे आना होगा। जिससे उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के पांचवीं अनुसूची में शामिल होने से यहां के जल, जंगल, जमीन और भाषा के कानूनी व संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित किया जा सके। पहाड़ी आर्मी के अध्यक्ष हरीश रावत ने कहा कि हाल ही में केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में पहाड़ी समुदाय और गद्दी ब्राह्मणों को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत यह आरक्षण दिया है। सीए सरोज आनंद जोशी ने कहा कि पांचवीं अनुसूची के मुद्दे को जनता तक पहुँचाने का लिए बहुत मेहनत करनी होगी, तभी यह मुद्दा एक आन्दोलन में बदलेगा.
सम्मेलन में शामिल अन्य वक्ताओं ने भी पुरजोर तरीके से संविधान के पांचवीं अनुसूची में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को शामिल करके इसे अनुचित क्षेत्र का दर्जा देने की मांग की। सम्मेलन का संचालन रिम्पी बिष्ट ने किया। सम्मेलन में वरिष्ठ पत्रकार हरि मोहन ‘मोहन’, मोहन कांडपाल, पीयूष जोशी, हेमंत पाठक, कमल सुनाल, बृजेश बिष्ट,कार्यक्रम के कॉर्डिनेटर संजय राठौर, बेरोजगार संघ के कुमाऊं संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, पंकज बिष्ट, हिमांशु शर्मा, कमल चंद्र पांडेय, हेमंत पाठक ,शान्ति जीना, हेमा कबड़वाल, कल्पना रावत, तन्नू बिष्ट, योगिता बनौला, कपिल शाह, रविन्द्र जोशी, विनोद नेगी, कमलेश जेठी, डूंगर सिंह, प्रेम प्रकाश मटियाली, गौरव गोस्वामी, विनीत कबडवाल आदि कई लोग शामिल थे।