राजीव लोचन साह
24 अप्रेल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है, क्योंकि इसी रोज वर्ष 1993 में देश में 73वाँ संविधान संशोधन कानून लागू हुआ था, जो त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को असीमित अधिकार देता है। इस बार इस कानून को लागू हुए तीस साल हो गये हैं। मगर हाल के वर्षों में यह महत्वपूर्ण दिन उपेक्षित सा हो गया है। मीडिया में भी इसकी ज्यादा चर्चा नहीं होती। इस बार कांग्रेस पार्टी ने इस दिन को जोर-शोर से मनाया क्योंकि कांग्रेस राजीव गांधी की सरकार द्वारा बनाये गये 73वें सविधान संशोधन कानून को अपनी एक उपलब्धि मानती है। एक संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस के प्रवक्ता जयराम रमेश द्वारा इसे क्रांतिकारी कानून बताया गया, जो कि वास्तव में वह है भी। इस कानून के लागू होने के बाद पंचायतें कानूनन लोकसभा और विधानसभाओं के समकक्ष खड़ी हो गयी हैं। जयराम रमेश ने बताया कि इस कानून के अन्तर्गत पहली बार महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, जबकि वास्तविकता में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की उपस्थिति 45 प्रतिशत है। इस समय भारत में पंचायतों में लगभग 32 लाख निर्वाचित जन प्रतिनिधि हैं, जिनमें लगभग 15 लाख स्त्रियाँ हैं। पंचायतों को मजबूत करने के लिये मनमोहन सिंह की यू.पी.ए. सरकार द्वारा वर्ष 2006 में मनरेगा योजना लागू की गई थी, ताकि पंचायतों को विकास के केन्द्र में रखा जा सके। जयराम रमेश द्वारा मौजूदा केन्द्र सरकार और भाजपा शासित प्रदेशों की सरकारों पर आरोप लगाया कि वे पंचायती राज कानून की अवहेलना कर रही हैं। कांग्रेस द्वारा 73वें संविधान संशोधन कानून का श्रेय लेना गलत नहीं है, मगर कटु सच्चाई यह है कि उसने भी इस कानून को लागू करने में जरूरी तत्परता नहीं दिखाई। कांग्रेस के अन्दर के सामन्ती और पूँजीवादी तत्व चाहते ही नहीं थे कि गाँव शक्तिशाली हों और केन्द्रीकृत शासन में लगातार मजबूत होता माफिया जरा भी कमजोर पड़े। इस क्रांतिकारी कानून को निष्प्रभावी करने में कांग्रेस भी भाजपा से कम दोषी नहीं है।