उमेश डोभाल ने पहाड़ और पहाड़ी के हालातों पर बेबाक लिखा। विशेषकर पहाड़ी जनजीवन के लिए आदमखोर बने शराब माफिया के नौकरशाह और राजनेताओं से सांठ-गांठ के झोल उसने कई बार उतारे। जनपक्षीय पत्रकारिता के खतरों को बखूबी जानते हुए भी वह कभी डरा और डिगा नहीं। 25 मार्च, 1988 को पौड़ी में उसके अपहरण और बाद में हत्या का यही कारण था कि वह शराब माफिया और प्रशासन की मिलीभगत पर नई रिर्पोट लिखने वाला था।
बसंत दस्तक दे रहा है
सरपट भागते घोड़े की तरह नहीं
अलकनंदा के बहाव की तरह
धीरे धीरे आयेगा बसंत
बसंत की पूर्व सूचना दे रहे हैं
मिट्टी पानी और हवा से ताकत लेकर
तने से होता हुआ
शाखाओं में पहुंचेगा बसंत
अंधेरे में जहां आंख नहीं पहुंचती
लड़ी जा रही है एक लड़ाई
खामोश हलचलें
अंदर ही अंदर जमीन तैयार कर रही हैं
जागो! बसंत दस्तक दे रहा है
– उमेश डोभाल
उमेश डोभाल की हत्या के बाद पहाड़ की जनता ने शराब माफिया और सरकार के खिलाफ एक लम्बी स्वयं स्फूर्त लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में पत्रकार, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, वैज्ञानिक और छात्रों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। यह आन्दोलन तब के दौर में उत्तराखंड की सीमाओं से बाहर प्रदेश और देश के अन्य क्षेत्रों में लम्बे समय तक गर्म रहा। परन्तु चौंका देने वाली बात यह थी कि इस शराब विरोधी लड़ाई के खिलाफ शराब माफिया का जवाबी आन्दोलन भी सड़कों पर उतरा। जिसने अस्सी के अन्तिम वर्षों में शराब माफिया के खौफनाक इरादों और उसकी राजनैतिक पकड़ की मजबूती का सरेआम पर्दाफाश किया था।
उमेश के जाने के 3 दशक बाद आज की तारीख में उत्तराखंड में उस जैसे पत्रकार तो न जाने कहां दफ्न हो गये हैं पर हां शराब तत्रं जरूर तगड़ा हुआ है। उमेश के समय में राजनैतिक संरक्षण में शराब माफिया पनपता था वर्तमान में शराब माफिया के संरक्षण में राजनैतिक तंत्र पनाह लिये हुए है। आज उत्तराखंडी जन-जीवन में शराब का कारोबार कानून सम्मत और सामाजिक स्वीकृति की ताकत लिए हुए है। तब से अब तक बस इतना सा फर्क हुआ है कि तब शराब चुनिंदा लोगों की आय का जऱिया थी, आज शराब ही सरकार की आय का मुख्य जऱिया है।
आज उत्तराखंड में शराब न बिके तो सरकार की अकड़ और पकड़ को धड़ाम होने में कोई देरी थोड़ी लेगेगी। शराब तंत्र के लिए उत्तराखंड में रोज ही उत्सव है। उत्तराखंड राज्य की विकास की गाड़ी उसी के बलबूते पर फर्राटा मार रही है, वैसे ये कोई कहने वाली बात नहीं है। सभी जानते हैं। पर यह भी सच है कमज़ोर लौ में ही सही समाज के उमेश डोभालों की जंग जारी है। आइए, उनकी जंग में शामिल होकर जिम्मेदार नागरिक होने का अहसास अपनी जिंदगी को करवायें।