अरविंद शेखर
तो क्या भारतीय जनता पार्टी ने 2027 के हिसाब से रणनीति बना कदम उठाना शुरू कर दिया है ? भाजपा आलाकमान ने क्या नए परिसीमन के उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की विधानसभा सीटों पर असर को भांपते हुए पहली बार पर्वतीय राज्य कहलाने वाले उत्तराखंड में मैदानी क्षेत्र को संगठन की कमान सौंपी है ?
दरअसल प्रदेश में 2022 में विधानसभा और लोकसभा सीटों का नया परिसीमन होना है। आबादी के हिसाब से मैदानी क्षेत्रों की विस सीटों की संख्या बढ़ना तय है। यानी सत्ता पर उस पार्टी का उतना अधिक दावा होगा जिसकी सीटें मैदान से ज्यादा होंगी। ऐसे में जब 2027 के विधानसभा चुनाव नए परिसीमन के मुताबिक होंगे तो भाजपा के पास पहले से एक बड़ा मैदानी चेहरा होगा क्योंकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद मदन कौशिक का मुख्यमंत्री की सीट का दावेदार होना स्वाभाविक होगा।
जब 2008 में परिसीमन हुआ था तो पहाड़ी क्षेत्रों की आबादी घटने की वजह से पहाड़ के नौ जिलों की विधानसभा सीटें 40 से घटकर 34 जबकि मैदान की 30 से बढ़कर 36 हो गई थी। उत्तराखंड में विधानसभा के पहले और दूसरे चुनाव में हरिद्वार जिले में 9 और उधमसिंह नगर जिले में 7 सीटें थीं। पूरे देश में 2001 की जनगणना के आधार पर जब 2008 में विस व लोस क्षेत्रों परिसीमन हुआ तो दोनों ही जिलों में दो-दो विधानसभा क्षेत्र यानी कुल चार विधानसभा सीटें बढ़ गई। अब 2022 का परिसीमन अगर फिर से आबादी को आधार बनाकर हुआ तो तय है कि आबादी का भारी पलायन झेल रहे पहाड़ी जिलों की सीटें काफी घट जाएंगी। 2011 की जनगणना के आंकड़े और हाल में आई राज्य पलायन आयोग की विभिन्न रिपोर्टें पहाड़ से पलायन की भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं। 2008 में राज्य में एक लाख की आबादी पर विधानसभा सीटों का निर्धारण किया गया था। नौ पर्वतीय जिलों के 40,353 वर्ग किमी क्षेत्रफल में 40 विधानसभा सीटें व चार मैदानी जिलों के 12,214 वर्ग किमी क्षेत्रफल में 30 सीटें हैं। यह राज्य की पर्वतीय पहचान की वकालत करने वालों के लिए परेशानी का सबब है, क्योंकि वे मानते हैं कि इससे राज्य की राजनीति में पहाड़ का वर्चस्व खत्म हो जाएगा। यही वजह है कि 2022 में प्रस्तावित परिसीमन को आबादी की बजाय भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर करने की मांग उठने लगी है। कुछ समय पहले ही उत्तराखंड क्रांति दल के नेता व रामनगर के प्रमुख राज्य आंदोलनकारी पीसी जोशी ने उच्च न्यायालय में इस बाबत याचिका भी दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने उन्हें सरकार को प्रत्यावेदन देने और सरकार से उस पर कारर्वाही को कहा था।
देशव्यापी किसान आंदोलन से प्रभावित
मैदानी विस सीटें साधने की जुगत
प्रदेश में पहली बार मैदानी क्षेत्र के किसी चेहरे को भाजपा ने प्रदेश संगठन की बागडोर सौंपी है। इस नए प्रयोग की एक वजह मानी जा रही है कि विधानसभा चुनाव करीब है। सवाल यह है कि क्या मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बना भाजपा मैदानी क्षेत्र की विधान सीटें साधने की जुगत में है। उत्तराखंड में हरिद्वार और उधमसिंह नगर ही दो जिले हैं जहां किसान आंदोलन का काफी प्रभाव है। संभवतः भाजपा आलाकमान ने किसान आंदोलन से प्रदेश के तराई के इलाके में उपज रहे असंतोष को संगठन की कमान मैदानी चेहरे को देकर मैदानी वोट को थामने की कोशिश की है।