हादसे या हत्या : विशाखापत्तनम (आन्ध्र प्रदेश), रायगढ़ (छत्तीसगढ़), कुड्डालोर (तमिलनाडु)
मेहनतकश पत्रिका से साभार
कोरोना/लॉकडाउन की त्रासदी के बीच गुरुवार, 7 मई को देश 3 बड़े हादसों का गवाह बना। विशाखापत्तनम, रायगढ़ कुड्डालोर में हुए बड़े हादसों में अबतक की सूचना में करीब एक दर्जन मज़दूरों की दर्दनाक मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं। ये मुनाफे की अंधी हवस का परिणाम हैं।
ज्ञात हो कि कोरोना की वजह से देश में दो चरणों में 40 दिनों का लॉकडाउन पूरा होने के बाद तीसरे चरण में देशभर में तमाम कारखाने खुले। जिसकी आगाज़ मज़दूरों की ज़िन्दगी की एक और तबाही के रूप में सामने आई है।
1- छत्तीसगढ़ के पेपर मिल में हादसा, 7 घायल
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में शक्ति प्लस पेपर्स मिल में क्लोरीन गैस पाइप लाइन फटने से बड़ा हादसा हुआ। पुसौर थाने के तेतला में स्थित पेपर मिल में जहरीली गैस का रिसाव होने की वजह से वहाँ काम कर रहे सात मज़दूर इसकी जद में आकर झुलस गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इनमें से तीन मजदूरों की हालत गंभीर है और उन्हें रायपुर रेफर कर दिया गया है।
ख़बर के मुताबिक लॉकडाउन की वजह से मिल बंद थी, मजदूर सफाई के लिए पहुंचे थे, रिसायकल टैंक में गैस का रिसाव हुआ। घटना गुरुवार की दोपहर करीब दो बजे की बताई जा रही है। प्रारंभिक जांच में यहां क्लोरिन गैस के लीक होने की बात सामने आ रही है। मिल का मालिक दीपक गुप्ता है।
मज़दूर मिल में गैस टैंक की सफाई कर रहे थे, इसी दौरान वहाँ जहरीली गैस लीक होने लगी। टैंक के बाहर मौजूद लोगों ने वहां से भागकर अपनी जान बचा ली, लेकिन जो लोग टैंक के अंदर थे वे वहाँ फंसे रह गए और बेहोश हो गए। बाद में कुछ लोगों की मदद से उन्हें वहां से बाहर निकाला गया।
पेपर मिल में क्लोरीन गैस का उपयोग इंक की सफाई के लिए किया जाता है।
2- तमिलनाडु के कुड्डालोर में ब्वायलर फटा, 7 घायल
तमिलनाडु के कुड्डालोर में नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन (एनएलसी) में भी एक बड़ा हादसा हुआ, जहाँ बॉयलर फट गया। शुरुआती रिपोर्टों में बताया गया है कि बॉयलर विस्फोट में 7 लोग घायल हुए हैं जिसमें 4 की हालत गंभीर बताई जा रही है।
नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन (एनएलसी) के शीर्ष अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए हैं। तमिलनाडु पुलिस, अग्निशमन दल भी मौके पर उपस्थित है। आग पर नियंत्रण पाने के लिए दमकल की 5 गाडिय़ों को लगाया गया है।
3- विशाखापट्टनम गैस लीक से अबतक 11 की मौत
सबसे बड़ा हादसा आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में गुरुवार तड़के एलजी पॉलिमर्स इंडस्ट्री के एक केमिकल प्लांट में हुई, जहाँ आधी रात स्टाइरीन गैस लीक होने से तबाही का भयावह मंज़र सामने आया है। गैस उस वक्त लीक हुई, जब लोग अपने घरों में सो रहे थे। सुबह करीब 5:30 बजे न्यूट्रिलाइजर्स के इस्तेमाल के बाद हालात थोड़े काबू में आए। तब तक गैस 4 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 5 गांवों को अपनी चपेट में ले चुकी थी।
हादसे में अब तक 2 बच्चों समेत 11 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि 800 से ज्यादा अस्पताल में भर्ती हैं और 5 हजार से ज्यादा लोग बीमार हो चुके हैं। इन्सान से लेकर जानवर तक बेसुध हैं, चारो तरफ हाहाकार मची हुई है। मृतकों की वास्तविक संख्या काफी ज्यादा होने की संभावना है।
बेहद ख़तरनाक है स्टाइरीन
स्टाइरीन एक न्यूरो-टॉक्सिन और दम घोंटू गैस है जिससे सिर्फ दस मिनट में शरीर शिथिल पड़ जाता है और मौत हो जाती है। इस गैस पर हुई स्टडी में इसे कैंसर और जेनेटिक म्यूटेशन का कारण भी बताया गया है।
स्टाइरीन गैस नाक में जाने पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है। ऊबकाई के साथ और आंखों में जलन हो सकती है। सांस में जाने पर यह कुछ ही मिनटों में श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है और उल्टी, जलन और त्वचा पर चकत्ते पैदा कर सकती है। रोग नियंत्रण केंद्र (सीडीसी) के मुताबिक गैस का अल्पकालिक जोखिम छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लिए घातक हो सकता है।
आंखों में जलन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रभाव (जैसे पेट खराब होना) और टिश्यूज की ऊपरी सतह में जलन हो सकती है। यह शरीर के कोमल अंगों के टिश्यूज के अस्तर को नष्ट करने की क्षमता रखती है और इसके कारण रक्तस्राव हो सकता है। इससे तुरंत बेहोशी और यहां तक कि कुछ ही मिनटों में मौत भी हो सकती है।
जो लोग स्टाइरीन की घातक चपेट में आने के बाद बच जाते हैं, उन्हें बाद में इसके विषैले प्रभावों के साथ जीना पड़ सकता है। न्यूरोटॉक्सिन होने कारण इसका तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव पड़ता है और यह सिरदर्द, थकान, कमजोरी और अवसाद, नर्वस सिस्टम की शिथिलता का कारण बन सकता है। इसके लम्बे प्रभाव के कारण हाथ और पैर जैसे सुन्नता, आंखों को नुकसान, सुनाई न देना और त्वचा पर डर्मीटाइटिस जैसी बीमारी देखने को मिलती है।
भोपाल गैस त्रासदी बनाम विशाखापट्टनम गैस त्रासदी
मध्यप्रदेश के भोपाल में अमेरिकी यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाना में 3 दिसंबर 1984 को 42 हजार किलो जहरीली गैस का रिसाव होने से करीब 15 हजार से अधिक लोगों की जान गई थी और लाखों प्रभावित हुए थे। यह गैस भी एक आर्गनिक कम्पाउंड से निकली मिथाइल आईसोसाइनेट या मिक गैस थी जो कीटनाशक बनाने की काम आती है।
36 साल बाद भी इस गैस का असर पुराने भोपाल शहर के लोगों में देखा जा सकता है। हजारों लोग स्थायी अपंगता, कैंसर और नेत्रहीनता का शिकार हो गए। इस गैस ने अजन्में बच्चों तक को प्रभावित किया था। जहां विशाखापट्टनम प्लांट से निकली स्टाइरीन का रिएक्शन टाइम 10 मिनट का है, वहीं मिक गैस महज कुछ सेकंड में जान चली जाती है।
लेकिन दोनों हादसों ने एक बड़े इलाके को अपनी जद में लिया। भोपाल गैस त्रासदी का प्रकोप आज 36 साल बाद भी वहाँ की जनता झेल रही है। आज भी उन्हें न्याय नहीं मिल सका है।
अब यह एक बड़ा सवाल है कि विशाखापत्तनम के हादसे का असर कितनी गहराई में इलाके की जनता को शिकार बनाए रखता है? और क्या यहाँ की पीड़ित जनता को इंसाफ मिलेगा? क्या हत्यारे मल्टीनेशनल कम्पनी के मालिकों पर हत्या का मुक़दमा दर्ज होगा?
ये मुनाफे की अंधी हवस का परिणाम है!
भोपाल गैस त्रासदी हो, या आज एक दिन में सामने आए तीन हादसे, ये मुनाफे की अंधी हवस का परिणाम हैं। सुरक्षा मानकों की अनदेखी, बगैर उचित प्रशिक्षण मामूली वेतन पर मज़दूरों को काम में झोंकने, अन्धाधुन मुनाफे के लिए बगैर उचित प्रावधान के खतरनाक व जहरीली गैसों का उत्पादन आदि आज मज़दूरों की ज़िन्दगी के साथ लगातार खिलवाड़ करते जा रहे हैं। मज़दूरों की जान जाने से लेकर अंग-भंग होने तक आज सामान्य बात हो चुकी है। ये हादसे नहीं हत्या हैं।
दरअसल, इस मुनाफाखोर व्यवस्था में, निजी कंपनियों के मुनाफे के आगे एक मज़दूर के जान की कोई कीमत नहीं है। पूँजीपतियों की प्रबंधक बनी सरकारें, हर कीमत पर लुटेरे व हत्यारे मालिकों की सुरक्षा कवच बनकर मज़दूरों पर शासन का डंडा चलती हैं। जबकि एक संगठित ताक़त ना होने के कारण मज़दूर लगातार शिकार बनने को मजबूर है!