योगेश भट्ट
औली के बर्फीले ढलानों पर दक्षिण अफ्रीका में वांटेड चल रहे गुप्ता बंधुओं के सुपुत्रों का विवाह समारोह इन दिनों सियासी गलियारों और मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है । जिन गुप्ता बंधुओं पर दक्षिण अफ्रीका में ‘स्टेट कैप्चर’ यानि निजी हितों के लिए नीति निर्धारण तंत्र को प्रभावित करने का आरोप है, उन्हें उत्तराखंड सरकार ने विवाह समारोह के नाम पर औली जैसे संवेदनशील क्षेत्र में दौलत की खुली ‘नुमाइश’ की छूट दी गयी । पर्यावरण और पारिस्थितकी के लिहाज से बेहद संवेदनशील इलाके में धनपति गुप्ता बंधुओं के लिए तमाम नियम कायदों, यहां तक कि उच्च न्यायालय तक की परवाह नहीं गयी । सब कुछ ताक पर रख दिया गया । तुर्रा यह कि इस समारोह से उत्तराखंड डेस्टिनेशन वेडिंग का केंद्र बनेगा और इससे राज्य की आर्थिकी मजबूत होगी ।
राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के न्यौते पर औली में होने वाले इस समारोह से पहाड़ से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों और हाईकोर्ट तक सरकार की खासी ‘किरकिरी’ हुई है । व्यक्तिगत तौर पर मुख्यमंत्री और उनके सलाहकारों की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं । इत्तेफाक देखिए जिस वक्त औली में गुप्ता बंधुओं के शाही आयोजन को सरकार उत्तराखंड के भविष्य के लिए बड़ी उपलब्धि करार दे रही थी , ठीक उसी दौरान मात्र पांच साल पहले वजूद में आए तेलंगाना में दुनिया की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना का उद्धघाटन हो रहा था । इधर उत्तराखंड अपने दुर्भाग्य पर रो रहा था तो उधर तेलंगाना की जनता अपने राज्य और के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली राज्य की सरकार पर फक्र कर रही थी। बात फक्र की थी भी, तेलंगाना की प्रगति की इबारत लिखी जा रही थी । तकरीबन 80 हजार करोड़ लागत वाली कालेश्वरम गोदावरी लिफ्ट सिंचाई परियोजना को रिकार्ड समय में पूरा कर तेलंगाना इतिहास रच रहा था ।
तेलंगाना की ‘कालेश्वरम परियोजना’ और उत्तराखंड में सरकारी संरक्षण में विदेश में वांटेड एक धनपति का शाही समारोह, इन दोनो का आपसी कोई संबंध नही है । चूंकि दोनों घटनाओं में मुद्दा सरकार और उसके सरोकार से जुड़ा था इसलिये उत्तराखंड की दशा और दिशा पर बड़ा सवाल खड़ा हो रहा था । एक ओर विवादों से घिरे गुप्ता बंधुओं के निजी समारोह में बिछी हुई उत्तराखंड सरकार थी और दूसरी ओर जनता के सपनों को साकार करने में जुटी तेलंगाना सरकार । पांच बरस का तेलंगाना उत्तराखंड को मानो चिढ़ा रहा था कि देखो उसने जो मात्र पांच साल में कर दिखाया वह उत्तराखंड बीस बरस पूरा होने पर भी नहीं कर पाया । उत्तराखंड की सरकार और उसका तंत्र बेपर्दा हो रहा था । जिस कालेश्वर परियोजना की यहां बात हो रही है, तेलंगाना की वह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं है । तेलंगाना ने जिस तरह से इस परियोजना पर काम किया वह पूरे देश के लिए एक मिशाल बनने जा रही है ।
दरअसल तेलंगाना भी उत्तराखंड की तरह जन आंदोलन से उपजा राज्य है, जिसकी अवधारणा के पीछे उस क्षेत्र का जल संकट एक मुख्य वजह था । तेलंगाना गोदावरी नदी से महज 300 से 650 मीटर ऊपर स्थित है मगर तेलंगाना को गोदावरी का पानी मयस्सर नहीं था। जल संकट के कारण आए दिन किसान आत्महत्या को मजबूर थे । अलग राज्य बनने के बाद सरकार ने इसके समाधान के लिए गोदावरी के पानी को विशाल पंप हाउस के जरिये लिफ्ट कराकर राज्य के ऊपरी हिस्सों में पहुंचाने की योजना बनायी । इसके लिए महराष्ट्र सरकार से मतभेद दूर करते हुए मार्च 2016 में तेलंगाना सरकार ने समझौता किया और मई 2016 में काम शुरू कर दिया ।
सरकार की इच्छाशक्ति का कमाल देखिए कि महज तीन साल में तेलंगाना ने दुनिया का सबसे बड़ा पंप हाउस तैयार हो गया । तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी में परियोजना का उदघाटन कर चुके हैं । तकरीबन 139 मेगावाट क्षमता वाला यह पंपिंग स्टेशन अगस्त से पानी की लफ्टिंग शुरू करने जा रहा है । इसमें कोई दोराय नहीं कि कालेश्वरम गोदावरी लिफ्ट सिंचाई परियोजना सूखे और प्यासे तेलंगाना के लिए वरदान साबित होने जा रही है । इससे राज्य में 45 लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि के लिए सिंचाई का पानी उपलब्ध होगा तो वहीं राजधानी हैदराबाद के एक करोड़ लोगों का पेयजल संकट भी दूर होगा । कुल मिलाकर तेलंगाना ने साबित किया कि राज्य के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के लिए सरकार का सही दिशा में उठाया गया एक कदम ही काफी है ।
अब बात उत्तराखंड की, तेलंगाना की सरकार ने अलग राज्य की जो सार्थकता महज पांच साल में साबित कर दिखायी वह उत्तराखंड की सरकारें बीस बरस में भी नहीं कर पायी । यहां सत्तानायक राज्य की दशा दिशा तय करने में पूरी तरह नाकाम रहे, नतीजतन आज भी उत्तराखंड भटक ही रहा है । मालूम ही नहीं है कि उत्तराखंड किस दिशा में जा रहा है । हालत यह है कि बीस साल में सरकारें भविष्य का खाका खींचना तो दूर राज्य की प्राथमिकता तक तय नहीं कर पायी । तेलंगाना ने तीन साल में दुनिया की सबसे बड़ी बहुउद्देश्यीय परियोजना तैयार कर दी, मगर उत्तराखंड राजधानी देहरादून का पेयजल संकट खत्म करने की एक छोटी से परियोजना शुरू नहीं कर पाया ।
जी हां, तेलंगाना जितनी विशाल तो नहीं मगर ऐसी ही एक बहुउद्देश्यीय परियोजना राज्य बनने के बाद पहली निर्वाचित सरकार के कार्यकाल में उत्तराखंड में भी तैयार हुई । सौंग नदी पर पर प्रस्तावित तकरीबन डेढ़ हजार करोड़ की बहुउद्देश्यीय परियोजना का मकसद राजधानी देहरादून को पेयजल उपलब्ध कराने के साथ ही बिजली उत्पादन और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना भी था। राज्य के सिचाई विभाग को डीपीआर तैयार करने का जिम्मा दिया गया । विडंबना देखिये अब चौथी सरकार का कार्यकाल भी आधा पूरा हो चुका है, अभी तक परियोजना पर काम पूरा होना तो दूर डीपीआर भी फाइनल नहीं हुई है । इसी परियोजना पर समय से काम हुआ होता तो कम से कम देहरादून जल संकट से बाहर निकल चुका होता । उत्तराखंड के तंत्र की इच्छाशक्ति यह है कि डेढ दशक बाद भी यह परियोजना धरातल पर नहीं उतर पायी है । यह तो एक बानगी भर है, ऐसे तमाम उदाहरण है जो सरकार और सिस्टम की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करते हैं ।
सच यह है कि सरकार के फैसलों में राज्य और राज्य की जनता के प्रति तो प्रतिबद्धता कतई नहीं नजर आती । फैसला निकायों की सीमा के विस्तार का हो, औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने का, निजी संस्थानों और विश्वविद्यालयों की मंजूरी का, भू कानून में संशोधन का, स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने का, राज्य में भांग की खेती कराने का या हो फिर कोई और, सरकार के लगभग हर बड़े फैसले के पीछे या तो किसी धनपति का हित छिपा होता है या खुद सफेदपोश और नौकरशाहों का । तेलंगाना जैसी सोच की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती, राजनेताओं में न इच्छाशक्ति है और न ही रज्ञज्य हित में कुछ करने का जज्बा। अपने और अपने करीबियों के हितों से आगे उन्हें कुछ नजर नहीं आता । आज पूरी व्यवस्था ऐसे नौकरशाहों के हाथ में है जिन्हें सही से राज्य का भूगोल तक नहीं मालूम ।
अब औली के तमाशे को ही लीजिए, इस समारोह के लिए सरकार की साख तक दाव पर लगा दी गयी । हो सकता है कि इस समारोह से प्रदेश के चंद राजनेताओं और उनके करीबी सलाहकारों के धनपति गुप्ता बंधुओं से नजदीकी रिश्ते स्थापित हो गए हों, उन्हें इससे कोई व्यक्तिगत लाभ होने की संभावना हो । मगर यह अहम सवाल अपनी जगह खड़ा है कि प्रदेश को इस तमाशे से क्या हासिल हुआ ? गुप्ता बंधुओं के बारे में यह सार्वजिनक है कि राजनेताओं की जरूरत का वह पूरा ख्याल रखते हैं, तमाम राजनैतिक दलों के नेताओं के साथ उनके रिश्ते हैं । संभवत: यही कारण है कि विवाद के बावजूद तमाम राजनैतिक लोगों ने उनके समारोह में शिरकत की ।
सरकार लाख कोई तर्क दे लेकिन सच्चाई यह है कि गुप्ता बंधुओं के समारोह से प्रदेश को कोई फायदा नहीं हुआ और न ही कोई अच्छा संदेश गया । एकमात्र संदेश यह गया कि उत्तराखंड की सरकार धनपतियों के आगे नतमस्तक है । इस मामले में एक जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय नैनीताल की वह टिप्पणी गौर करने लायक है जिसमें न्यायालय ने कहा कि सप्ताह भर पहले इस समारोह का पता लगा होता तो औली में घुसने नहीं देते । बताते चलें कि गुप्ता बंधुओं की योजना औली में 150 हेलीकाप्टर उतारने की थी, जिन्हें एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सीमित किया और कोई भी नया हैलीपेड न बनाने के लिए कहा । सरकार ने इस आयोजन को लेकर सरकार पर भी सवाल खड़े किये और आयोजन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आंकलन करने को भी कहा।
वैसे यह अपने आप में आश्चर्य की बात है कि जो औली विश्व भर में हिम क्रीड़ा के लिए विख्यात है, सैकड़ों करोड़ खर्च होने के बाद जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं आयोजित होनी चाहिए हिम क्रीडा संस्थान विकसित होने चाहिए, आज उसे सरकार वेडिंग डेस्टिनेशन बनाने की बात कर रही है । पौराणिक स्थल त्रिजुगीनारायण जिसे कि शिव पार्वती का विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है, उसे भी वेडिंग डेस्टिनेशन बनाने की बात की जा रही है । यह जानते हुए भी कि औली और त्रिजुगीनारायण जैसे स्थल वेडिंग इवेंट के लिए नहीं है, फिर भी सरकार आए दिन इस तरह के बयान दे रही है । इस तरह के बयानों से सरकार की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं । इसमें उन सलाहकारों भूमिका मानी जा रही है, जो सरकार से नजदीकी के चलते अपने कारोबारी हित साधने की जुगत में हैं ।
बहरहाल देखते हैं कि गुप्ता बंधुओं का शाही आयोजन आने वाले दिनों में क्या गुल खिलाता है ? हालात इस कदर गंभीर बने हुए हैं कि राज्य की अवधारणा हाशिए से बाहर हो चुकी है । तेलंगाना जैसी सोच और इच्छाशक्ति की दरकार तो उत्तराखंड को भी है मगर मौजूदा माहौल में इसकी कोई उम्मीद नजर नहीं आती । काश ! उत्तराखंड के नीति नियंता भी समझ पाते कि फिलवक्त उत्तराखंड की जरूरत वेडिंग डेस्टिनेशन नहीं बल्कि विकास का ऐसा माडल है जो बंजर खेतों को आबाद करता हो, बंद पड़े अस्पतालों और स्कूलों को गुलजार करता हो । उत्तराखंड की आवश्यकता कालेश्वर की तर्ज पर छोटी छोटी ऐसी बहुउद्द्श्यीय परियोजनाएं है जो राज्य में खेती किसानी को बढ़ावा दें, जल संकट दूर करें और राज्य की आय का साधन भी बनें । सरकार को यह समझना होगा कि प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत है न कि धनपतियों के हाथों गिरवी रखने की ।
योगेश भट्ट न्यूज़ पोर्टल ‘Dainik uttarakhand दैनिक उत्तराखंड’ के सम्पादक और डायरेक्टर हैं.