मृगेश पांडे
आम आदमी को जमीनी स्तर पर बुनियादी सुविधाएँ दे पाने के लिए समेकित विकास की बातें होती रही हैं। नियोजित विकास के क्रम में स्थायित्व और वृद्धि की निरंतरता की शब्दावली हमेशा असमंजस पैदा करती रही है। इसे लोकतंत्र की विशेषता ही समझें कि न्यून जीवन स्तर पर जीवनयापन करने वाले वंचित व सुविधाविहीन चेहरों के लिए तथाकथित एफ्लूऐंट बुद्धिजीवी निर्धनता से निवारण की नीतियों को मिथक रचते हैं, जिनमें तुष्टीकरण के मिर्च-मसाले पर्याप्त मात्रा में विधमान रहते हैं। आज के परिवेश में स्थितियां कुछ बहुत कुछ भिन्न हैं। वंचितों, दलितों, अल्प सुविधाभोगियों के व्यापक जनसमर्थन से उनके प्रति हितकारी निर्णय ले सकने वाली और धरातल पर बुनियादी सुविधाएँ उपजा पाने वाली सक्षम और समर्थ पोलिटिकल इकॉनामी का वजूद रखने वाली शक्ति आज संकेंन्द्रित है।
प्रबल जनमत के साथ ‘सबका साथ सबका विकास’ का उद्धोष करती सरकार अब सबके विकास की कसौटी पर आने वाले बजट में अपनी प्रभावी व समर्थ भूमिका का निर्वहन करने में सक्षम है। यह वह अवसर है जिसमें जन-मन को वह आधारभूत व मूल अवसर व सुविधाएँ प्रदान की जाएँ जिनके न्यून स्तर संतुलन ने अभाव, विषमता और असाम्य की खाई लगातार चौड़ी की है, जिससे समाज में तनाव-दबाव व कसाव पैदा हुए है। प्रधानमंत्री ने जयघोष किया है कि सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास को सहेजने में नीति आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण बनेगी। वर्ष 2024 तक भारत को 5 लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बनाने की चुनौती को अमली जामा पहनाया जाएगा। आज तब, जब देश के मुख्य आर्थिक चरों की गतिविधियां घरेलू और वैश्विक स्तर पर एक दूसरे से जुड़े जोखिमों के संक्रमण से ग्रस्त हैं।
आज बदले हुए मानकों की गणना पर आधारित जी.डी.पी की दरें ह्रास का संकेत दे रही हैं। बढ़ती बेकारी रोग बन गई है। विनियोग की कमी उपभोग की मांग को फैला पाने में कारगर दवा नहीं बन पा रही है। वैश्विक स्तर पर व्यापार के तनाव गहरा रहं हैं। चीन और अमेरिका के व्यापार युद्ध से मंदी के दबाव गहरा रहे हैं तो मुद्रा प्रसार के संकट भी। प्रतिसार का अनुभव कर रहे उद्योग जगत को आज ऐसी सुविधाएँ, फायदे और विपणन प्रबंध श्रृंखलाएँ चाहिये, जिनसे विमुद्रीकरण और जी.एस.टी से पस्त असंगठित क्षेत्र की पीड़ा कम हो सके। स्थानीय उत्पाद शिल्प व ग्रामोद्योग की कमर भी टूटी है, जिससे जुड़े कामगार ऐसी फौरी सहायता व राहत की आस लिए हैं, जिससे उत्पादन तो बढ़े ही साथ ही आय अर्जित करने की निरंतरता भी बढ़ सके। अमेरिकी रेटिंग एजेंसी ‘फिच‘ की रपट में कहा गया है कि मुख्यतः घरेलू कारणों से भारत में विकास की रफ्तार ढुलक रही है। ओटोमोबाइल और दुपहिया वाहन जैसे क्षेत्र जो नॉन बेंकिग फाइनेंशियल कम्पनी के कर्ज पर आश्रित रहते हैं, में साख की उपलब्धता ठहर गई है, जिससे बिक्री में कमी आई है। जी.डी.पी. वृद्धि के अनुमानों में विश्व बैंक जहां 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान प्रकट करता है, वही फिच ने इसे वित्त वर्ष 2020 के लिए 6.6 प्रतिशत बताया है। भारत सरकार ने 2018 की आखिरी तिमाही में इसे 6.6 बताया, जो 2019 की पहली तिमाही में लुढ़क कर 5.8 प्रतिशत आ गई थी। अंतरिम बजट में सरकार ने 2019-20 के लिए 7.03 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय घाटे का अनुमान लगाया और उसकी कोशिश थी कि यह जी.डी.पी. के 3.4 प्रतिशत की सीमा में सिमटा रहे। पर इस वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में ही वित्तीय घाटा पूरे वर्ष के बजट अनुमार के 52 प्रतिशत को छू गया है। सी.जी.ए. की रपट के अनुसार आगम और व्यय के मध्य का अंतर निरपेक्ष रूप से 3,66,157 करोड़ रुपये हो गया है।
इन परिस्थितियों में यह उम्मीद स्वाभाविक है कि आर्थिक हालात में सुधार के लिए सरकार दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों पर ध्यान दे अर्थात न्यूनतम 8 प्रतिशत वृद्धि की रफ्तार पकड़ी जाये और हर साल काम चाहने वाले 10 मिलियन युवाओं को धंधे से जोड़ा जाय। साथ ही आंतरिक अस्थायित्व व बाह्य असंतुलन से जूझ रहे देश को एक सबल, व्यावहारिक व जमीनी स्तर से जुड़ी आर्थिक नीति से सम्बद्ध करना है। इसका सारा दायित्व मौद्रिक व राजकोषीय नीतियों के बेहतर समंजन पर निर्भर करता है, जो स्पष्ट रूप से वित्त मंत्रालय पर टिकी है। वास्तव में वित्त मंत्रालय आज देश में सबसे मजबूत और प्रभावी स्थिति में है। अब अप्रत्यक्ष करों पर कोई भी निर्णय जी. एस.टी परिषद लेगी। राज्यों की इसमें हिस्सेदारी होगी पर इसकी अध्यक्षता वित्त मंत्री के हाथ में होने से किसी भी अंतिम निर्णय में पूरे वर्ष वित्तमंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी। राज्यों को विशेष पैकेज व अनुदान देने का दायित्व भी अब वित्त मंत्रालय के पास है। अब रेल बजट भी विवेक देवराम समिति की संस्तुति पर आम बजट का हिस्सा है। भले ही रेल मंत्रालय सुझाव देता है पर परियोजनाओं की मांगों को पूरा करने के लिए रेल मंत्री के साथ वित्त मंत्री की संस्तुति रहेगी। साथ ही किसी भी उद्योग को मिलने वाले प्रोत्साहन पैकेज व आयात-निर्यात से संबंधित निर्णयों में भी वित्त मंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास ने अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार को गति देने के लिए एक निर्णायक मौद्रिक नीति अपनाने पर बल दिया है। पिछली दो कटौतियों के बावजूद 2019-20 में मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत की सीमा में ही रहने का अनुमान है। उन्होंने मौद्रिक नीति को तटस्थ से नरम किये जाने का भी समर्थन किया है। समिति के सदस्य व डिप्टी गर्वनर विरल आचार्य के साथ तीन अन्य सदस्य रवीन्द्र्र एच. डोलकिया, पामी दुआ व चेतन घाटे ने भी नीतिगत दर को घटाने के पक्ष में मतदान किया जिससे जनवरी 2019 के तदन्तर रैफेदर में 0.75 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है।
उद्योग जगत ने रियायत के लिए दबाव बढ़ा दिया है। यानी सरकार कारपोरेट कर कम करे, बैंको को पूंजी उपलब्ध कराए व बेकारी पर नियंत्रण करने के लिए निवेश करे। डूबे कर्ज के संकट व 9 प्रतिशत के एन.पी.ए. से जूझ रहे बैंकों को तरलता मिले जिससे पूंजी का प्रवाह उद्योगों तक हो। अभी बैंक उद्योगों को उधार देने से बच रहे हैं। ऐसोचैम के अध्यक्ष बी गोयनका ने इस संकट को टालने के लिए ‘स्टिमुल्स पैकेज’ की मांग की। वित्तीय क्षेत्रों में विशेषतः एम.बी.एफ.सी.एस. व बैंकों को राहत पैकेज की जरूरत है।
पूर्व वित्त मंत्री ने वित्तीय वर्ष 2016 में कॉरपोरेट टैक्स कम करने का चार साल का रोड मैप बनाया था। एक सीमा तक इसे लागू भी किया गया था विशेषतः छोटी कम्पनियों के लिए। अब बड़े कारपोरेट ग्रुप टैक्स घटाने के लिए प्रयासरत हैं। बढ़ते वित्तीय घाटे को देखते हुए 5 जुलाई को पेश होने वाले बजट में ऐसी संभावना कम ही है। आयकर विभाग के अनुसार 8 लाख कंपनियों में से 100 कंपनियां ( 0.012 प्रतिशत) कुल कारपोरेट टैक्स का 40 प्रतिशत योगदान देती हैं। टैक्स देने वाली कंपनियां कई प्रकार के वित्तीय संकटों का सामना कर रही हैं। सरकार भी इस स्थिति में नहीं कि वह कारपोरेट टैक्स में कमी कर सके। फरवरी में सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020 के लिए 7.6 ट्रिलियन रुपये का कॉरपोरेट टैक्स वसूलने का लक्ष्य रखा। 2017 के बजट में 5 करोड़ की बिक्री वाली कंपनियों के लिए टैक्स दर घटा कर 29 प्रतिशत व नई विनिर्माण कंपनियों के लिए 25 प्रतिशत कर दिया गया था। वहीं 2018 में 50 करोड के टर्नओवर वाली कम्पनियों के लिए कर की दर कम कर 25 प्रतिशत कर दिया गया था। 2019 के बजट में इस कटौती की सीमा बढ़ा कर 250 करोड़ रुपये तक की बिक्री वाली कंपनियों को शामिल कर लिया गया था। इसमें लगभग 99 प्रतिशत कंपनियां आ गई थीं। पर अभी भी 1 प्रतिशत कंपनियां जो लगभग 7,000 हैं, 30 प्रतिशत स्लैब के अधीन आती हैं।
भारतीय उद्योग परिसंघ (ब् प् प्) के अध्यक्ष विक्रम किर्लोस्कर मानते हैं कि कारपोरेट टैक्स को घटा कर अधिकतम 18 प्रतिशत करने की जरूरत है। साथ ही यदि अतिरिक्त छूट समाप्त कर दी जाये तो सरकारी राजस्व को कोई हानि नहीं होगी। 1997 से 2019 तक औसत कारपोरेट टैक्स 34.94 प्रतिशत रहा जो वर्ष 2001 में अधिकतम 38.95 प्रतिशत तो 2011 में न्यूनतम 32.44 प्रतिशत रहा। इधर प्रशासनिक सुधारों को क्रियान्वित करने पर जोर दिया जा रहा है जिसका परिणाम व्यवसाय को गति देने में लाभकारी स्फुरण देना ही।
फरवरी में आया अंतरिम बजट यह स्पष्ट संकेत दे गया कि करारोपण का क्षेत्र सुधारों के क्रम में है। इसे और प्रभावी बनाए जाने की जरूरत है। अंतरिम बजट में आय कर एक्ट की धारा 87। में छूट की सीमा को 25,000 रु. से 12,500 रु. कर दिया गया। इससे व्यक्तिगत करदाताओं को लगभग 40 प्रतिशत जो पांच लाख रुपये या इससे कम की आय पर टैक्स देते थे, भारी राहत महसूस कर गए। निश्चय ही करों की दरों को कम किया जाना और विवेकीकृत किया जाना जरुरी है। अनुभव सिद्ध अवलोकन से साफ दिखाई्र देता है कि करों की दर कम हाने पर आगम में कमी की प्रवृत्ति नहीं दिखाई दी। आयकर की दरें वित्तीय वर्ष 1975, 1977, 1986-88 व वित्तीय वर्ष 1998 में कम की गई, सुधारी गई और तब कर आगम बढ़े थे। जी.एस.टी. में भी जो सुधार किए गए उनमें कुछ आंरभिक असमंजस के परे सुधार के संकेत तो दिखाई ही दिए। यह सामान्य मनोवृत्ति है कि करदाता की जेब में जितनी तरलता होगी निजी उपभोग, बचत विनियोग उतना अधिक बढ़ेगा।
घरेलू उपभोग और बचतों को प्रभावी करने के लिए अंतरिम बजट में आय कर छूट की सीमा 5 लाख रुपये तक बढ़ाई गई। यह एक प्रोत्साहन भरा धनात्मक निर्णय है। अब प्रत्यक्ष कर का अधिकतम 30 प्रतिशत भी केवल उन कर दाताओं तक लागू किया जाना चाहिए जिनकी आय 20 लाख रूपये से अधिक है। ठीक इसी समय सेक्शन 80ब्ए 80 क् व सेक्शन 24 के अधीन हाउस लोन पर दी जा रही छूट की विनियोग सीमाओं को भी बढ़ाना होगा। ऐसे प्रोत्साहनों से घरेलू उपभोक्ताओं के पास पर्याप्त क्रय शक्ति रहेगी जिससे उत्पन्न प्रभावी मांग आर्थिक गतिविधियों पर प्रेरक प्रभाव डालेगी।
2019-20 के अंतरिम बजट में डिसइन्वेस्टमेंट के लिए तय किया गया लक्ष्य 90 हजार करोड़ है, जिसे पूर्णकालिक बजट में बढ़ा कर कम से कम 1.5 लाख करोड़ रुपये किया जाना चाहिए। एक सुस्त पड़ रही अर्थव्यवस्था केवल कर पक्ष से प्राप्त आय पर टिकी नहीं रह सकती। इसे प्रभावी बनाने के लिए डिसइन्वेस्टमेंट की नियत सीमाओं को बढ़ाने की संभावनाओं पर भी विचार किया जाना जरूरी है। व्यर्थ पड़ी परिसम्पत्तियों में अभी भी भूमि व औद्यौगिक आस्थानों की लंबी सूची है।
अवस्थापना क्षेत्र में सुधार आर्थिक व्यापक चरों में गुणक प्रभाव उत्पन्न करता है। इसे अधिक प्रभावी व त्वरित नतीजों की दिशा में लगाने के लिए सड़क, हाइवे, उप शहरी मेट्रो व विमान पत्तन क्षेत्र में जारी पहल के साथ बेहतर संचालन गतिविधियों पर ध्यान देना होगा। अन्तर्संरचनात्मक परियोजनाओं से कामकाज के नए अवसर खुलते हैं। सीमेंट, इस्पात, विद्युत, वाणिज्यिक वाहन व पूंजीगत वस्तुओं मांग बढ़ती है। अभी निर्यात क्षेत्र में दिखाई दे रही ह्रास की प्रवृत्तियां चितां का विषय हैं। निर्यात संवर्धन नीतियों को विशेष पैकेज चाहिए। ऐसी संस्थागत प्राविधि जो वैश्विक बाजार की गहरी पड़ताल करे, बाजार में हो रही गतिविधियों का मूल्यांकन करे। क्षेत्र विशिष्ट अध्ययनों पर जोर रहे, व्यापार क्षेत्र में आ रही बाधाओं का निराकरण हो व नए बाजारों में घुसपैठ के अवसरों की ढूंढ-खोज हो। निर्यात सूचना पोर्टलों के द्वारा निर्यातकों को विश्व बाजार की नवीन प्रवृत्तियों से अवगत कराना है, जिसके लिए अभिसूचना तंत्र के विशेष प्राविधान हों। ब्रांड इंडिया व भारतीय विशिष्ट उत्पादों के व्यापार प्रचार-प्रसार व सुव्यवस्थित बिक्री प्रबंधों से संपुष्ट रणनीति और अधिक प्रभावी बने।
रोजगार गहन क्षेत्रों में काम के अधिक मौके देने पर विशेष जोर तो देना ही होगा। टेक्सटाइल, चमड़ा, जवाहिरात, आभूषण, फुटवेयर, खिलौने, हस्तशिल्प व लघु व कुटीर उद्योग क्षेत्र में नए उपक्रम स्थापित हों। इनके लिए क्रमिक रूप से अनुदान युक्त आधार सुविधाएँ, ड्यूटी मुक्त आयात व टैक्स होलीडे की व्यवस्थाएँ तुरंत करें। सिलेसिलाये वस्त्रों व हेंडीक्राफ्ट के साथ भेषज जैसे क्षेत्रों के लिए सरकार ‘प्लग एण्ड प्ले‘ इकाइयों का सृजन करे जिसे न्यूनतम रैन्ट के आधार पर युवा उपक्रमियों को दिया जाये और इनकी समय अवधि मध्यावधि तो हो, कौशल निर्माण योजना के बेहतर प्रबंध व कारगर क्रियान्वयन की अपेक्षा तो है ही, जिससे वास्तविक रूप से युवा उपक्रमी सामने आएँ।
अभी यह संदेश भी उभर रहा है कि रेपोरेट को बार-बार कम किया जाना वास्तव में निजी पूंजी निवेश की अभिवृद्धि में सहायक होगा। सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश बैंक फंसे हुए एन.पी.ए. से नुकसान में हैं। रेपोरेट कटौती को बैंक अपने घाटे की भरपाई के लिए प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे में ऐसी कटौती का मूल फायदा अर्थव्यवस्था को नहीं मिल पा रहा है। मंदी का संकट गहरा रहा है। निजी पूंजी निवेश का स्तर गिर रहा है। नये ऋणों की मांग नहीं हो रही है। उद्योग क्षेत्र में विद्यमान क्षमता के केवल 75 प्रतिशत का उपयोग हो पा रहा है क्योंकि बाजार में मांग मन्द पड़ी है।
संभावनाएँ कई हैं। भारतीय रिजर्व बैंक, बैंक द्वारा उधार लेने वालों के लिए रैपोरेट में अतिरिक्त 100 आधार बिदुओं में कटौती कर ब्याज दर की कमी का रास्ता खोल सकती है। इससे निवेश प्रोत्साहित होगा। करारोपण के एक नए ढांचे की प्रस्तावना दी जा सकती है जिसमें रोजगार गुणांक के लिए आवश्यक विनियोग प्राप्त होगा। यह उत्प्रेरक एजेंट की तरह क्रियाशील हो। इस स्कीम में वह कंपनियां जो 250 से 499 श्रमिकों के लिए रोजगार का सृजन कर सकती हैं कम से कम अगले पांच साल के लिए कारपोरेट कर में 2 प्रतिशत की छूट तब प्राप्त करें जब उनका प्लाण्ट उत्पादन करने की दशा में आ जाए। ऐसे ही वह उत्पादन इकाइयां जो 500 से 749 श्रमिकों के लिए रोजगार सृजित करें उन्हें 3 प्रतिशत की छूट व 750 से 999 को रोजगार देने वाली इकाइयां 4 प्रतिशत की छूट पा जायें। वह कम्पनियां जो 1,000 या अधिक रोजगार दें उन्हें कर भुगतान में 5 प्रतिशत की छूट मिले। साथ ही वह 25 प्रतिशत की दर से कारपोरेट टैक्स का भुगतान करें। रोजगार सृजित करने वाली कम्पनियां इससे विनियोग की दशाओं में उत्साह भरा स्फुरण पाएँगी व रोजगार सृजन की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लए सरकार को बेहतर माहौल मिलेगा।
अब सबसे बड़ी जरूरत कृषि क्षेत्र के बुनियादी सुधार की है। उत्पादकता की वृद्धि, किसानों के हाथ तक आये और विपणन की दुश्चिंताओं के निवारण के लिए प्रबल प्रयास करने हैं। यह ऐसा क्षेत्र है जहां विनियोग से अल्प समय अवधि में ही प्रतिफल मिल जाता हैं और बाजार की अपूर्णताओं को समेट लेता है। फिर आज भी यह खेती, बागवानी, फल-फूल, भेषज का क्षेत्र तमाम अनियमितताओं और जोखिमों से अटा हुआ है। हर मौसम में किसानों को खाद बीज की फौरी सहायता व मंडी तक पंहुच की सुविधा के साथ अल्प समय अवधि में सिंचाई के बेहतर प्रबंध देने हैं। पर्वतीय- पठारी- बागानी व असमतल भूमि वाले क्षेत्रों में सूक्ष्म सिंचाई की सुविधाएँ भी बढ़ानी हैं। प्रधानमंत्री ने ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्येक घर को 2024 तक पाइप से जलापूर्ति का लक्ष्य रखा है। साथ ही कृषि सिंचाई योजना के अन्तर्गत जिला सिंचाई योजना के सावधानीपूर्वक प्रबंध के ताने-बाने को सुलझाने की बात भी रखी है। कृषि पूति श्रृंखलाओं को मजबूत व प्रभावी बनाया जाना है। इस बात को ध्यान में रख कि ढुलान और संग्रहण में आने वाली परेशानियां तो दूर हो हीं, उपज बरबाद न हो। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर. के. वी. वाई.) के अधीन एक हजार मीट्रिक टन से अधिक के संग्रहण केन्द्र, फार्मगेट स्टोरेज विकसित किए जाने हैं। जिनमें छोटे किसान अपनी उपज को लाभकारी मूल्य पाने तक सुरक्षित रख सकें। मुख्य मार्गों, हाइवे के समीपस्थ राष्ट्रीय वेयरहाउस ग्रिड बने। साथ ही ऐग्रो प्रोसेसिंग उद्योग भी बढ़ें, फूलें-फलें।
बिंग बैंग सुधारों की रूपरेखा अंतरिम बजट में रख दी गई थी, पर भूमि और श्रम सुधारों की दिशा दिग्भ्रमित ही थी। स्वयंस्फूर्त विकास की दिशा में वित्त मंत्री अब किन महत्त्वपूर्व फैसलों से अर्थव्यवस्था को सबल आधार देगी इसकी प्रतीक्षा है।