विवेक मिश्रा
‘डाउन टू अर्थ’ से साभार
भारत 29 लाख की आबादी के अंतर से चीन को पछाड़ कर दुनिया में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन चुका है। यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) की द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, 2023 के अनुसार भारत की जनसंख्या 1,42.86 करोड़ (1.428 अरब ) तक पहुंच गई है, जबकि चीन की आबादी 142.57 करोड़ (1.425 अरब) है।
यूएनएफपीए की बीते वर्ष की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारत की आबादी 140.6 करोड़ थी। 2023 में इसमें 1.56 फीसदी की बढोत्तरी (142.86 करोड़) हो गई है। वहीं, बीते वर्ष की तरह ही भारत की कामकाजी उम्र मानी जाने वाली करीब दो-तिहाई आबादी 68 फीसदी है जो कि 15 से 64 वर्ष आयु के बीच है।
उन्होंने कहा कि भारत का यह आंकड़ा भारत की शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, आर्थिक प्रगति और तकनीकी दक्षता की कहानी है। सर्वाधिक युवा शक्ति वाला (25.4 करोड़ – 15 से 24 आयु वर्ग) यह देश में नई सोच, नए समाधान, इनोवेशन का बड़ा स्रोत बन सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक अगर महिलाएं और लड़कियां, विशेष रूप से समान शैक्षिक और कौशल-निर्माण के अवसरों, प्रौद्योगिकी और डिजिटल नवाचारों तक पहुंच और सबसे महत्वपूर्ण रूप से अपने प्रजनन अधिकारों और विकल्पों का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए सूचना और शक्ति से लैस हैं, तो प्रक्षेपवक्र आगे बढ़ सकता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 68 रिपोर्टिंग देशों में 44 प्रतिशत भागीदार महिलाओं और लड़कियों को यौन संबंध बनाने, गर्भनिरोधक का उपयोग करने और स्वास्थ्य देखभाल की मांग करने पर अपने शरीर के बारे में सूचित निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। यह बताता है कि दुनिया भर में अनुमानित 257 मिलियन महिलाओं को सुरक्षित, विश्वसनीय गर्भनिरोधक की आवश्यकता है।
यूएनएफपीए की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 25 फीसदी आबादी 0-14 वर्ष आयु, 18 फीसदी आबादी 10-19 वर्ष आयु, 26 फीसदी आबादी 10-24 आयु समूह की है। जबकि 68 फीसदी आबादी 15-64 आयु समूह में है। वहीं 65 से अधिक आयु वाले सिर्फ 7 फीसदी लोग देश में हैं।
इतिहास बताता है कि प्रजनन नीतियां इस हिसाब से तैयार की जाती हैं कि वह न्यूनतम रहने वाली जन्मदर को बढाएं। यह नीतियां न सिर्फ निष्प्रभावी हैं बल्कि इनसे महिलाओं के अधिकार भी प्रभावित होते हैं।
रिपोर्ट में इस्तेमाल किए गए सर्वे में पाया गया कि जनसंख्या से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण मामलों की पहचान करने पर, 63 प्रतिशत भारतीयों ने जनसंख्या परिवर्तन के बारे में सोचते समय विभिन्न आर्थिक मुद्दों को शीर्ष चिंताओं के रूप में पहचाना। इसके बाद पर्यावरण संबंधी चिंताएं 46 प्रतिशत और यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों और मानवाधिकारों की चिंताएं 30 प्रतिशत थीं।
वहीं, भारत में उत्तरदाताओं की राय थी कि उनके देश में जनसंख्या बहुत अधिक है और प्रजनन दर बहुत अधिक है। राष्ट्रीय प्रजनन दर पर भारत में पुरुषों और महिलाओं के विचारों में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था