प्रमोद साह
25 जुलाई 1944 को अपने आमरण अनशन के 84वे दिन वीर शहीद श्री देव सुमन ने टिहरी जेल में आजादी के महान संकल्प की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे दी ।
श्री देव सुमन के इस ऐतिहासिक बलिदान ने न केवल टिहरी रियासत बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर सभी देसी रियासतों में आजादी और भारत राष्ट्र की भावना को बल दिया ।
श्री देव सुमन का यह महान बलिदान गांधी की मौजूदगी में गांधी के रास्ते पर दिए जाने वाला अब तक का सर्वश्रेष्ठ बलिदान था । जिसने पूरे राष्ट्र में आजादी की भावना और संघर्ष को नई ऊंचाइयां प्रदान की । टिहरी रियासत के विरुद्ध दीए गए श्री देव सुमन के इस महान बलिदान को पूरे भारत ने सम्मान दिया ।
श्री देव सुमन की मृत्यु पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा
” रियासती जनता के स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धा श्री देव सुमन के बलिदान पर मैं अपनी श्रद्धांजलि प्रेषित करता हूं ”
डॉक्टर पट्टाभीसीतारमैया ने श्री देव सुमन के बलिदान पर कहा “युवा सुमन उन फूलों में से एक थे जो बिना देखे मुरझा गए ,लेकिन वह अपने पीछे अपनी सुगंधी छोड़ गए, सुमन ने जो सेवाएं की वह चिरकाल तक स्मरणीय रहेंगी ”
इस प्रकार श्री देव सुमन के बलिदान ने टिहरी रियासत के विरुद्ध चल रहे ,स्वतंत्रता संग्राम को राष्ट्रीय पटल पर पहुंचा दिया और टिहरी रियासत की उल्टी गिनती शुरू हो गई ।
श्री देव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को पट्टी बमुंड के ग्राम जौल में वैद्य श्री हरिराम बडोनी जी के घर पर जनपद टिहरी गढ़वाल में हुआ। वैद्य राज श्री बडोनी ने 1919 में कोलरा के विरुद्ध जन सेवा में ही अपने प्राणों की आहुति दी थी ।
इस प्रकार समाज के लिए प्राणों की आहुति देना श्री देव सुमन के खून में था , अपने प्रारंभिक वर्षों में श्री देव सुमन का अनुराग साहित्य के प्रति था , किशोरावस्था में मात्र 14 वर्ष की अवस्था में नमक सत्याग्रह 1930 देहरादून में आप 14 -15 दिन जेल में रहे । लेकिन तब तक आपका पहला प्यार साहित्य था । आपने हिंदी पत्र बोध का बाल्यावस्था में ही लेखन कर दिया ।उसके बाद साहित्य में “विशारद “और “साहित्य रत्न” की डिग्रियां प्राप्त की। 1937 में आपका पहला काव्य संग्रह “सुमन सौरभ “प्रकाशित हुआ और इसी वर्ष शिमला में राष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन में श्री देव सुमन ने भागीदारी की ।
लेकिन इस साहित्यकार के भीतर जन संघर्षों का नायक भी छिपा था । वह जून 1930 दिल्ली में गढ- देश सेवा संघ की स्थापना कर चुके थै जो बाद में राष्ट्रीय स्तर पर हिमालयी राज्यों का मंच “हिमालय सेवा संघ” में तब्दील हुआ, एक व्यापक दृष्टि के नायक के रूप में आपने लुधियाना में ‘ देसी राज्यो की लोक परिषद ” के राष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी की और कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य हुए , यहां से आप जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में आए ।
श्री देव सुमन ने मई 1938 में श्रीनगर में आयोजित राजनीतिक सम्मेलन में प्रतिभाग कर टिहरी राज्य की दुर्दशा और दमनकारी कर व्यवस्था के विषय में जवाहरलाल नेहरू को अवगत कराया ।
अब एक साहित्यकार पीछे छूट रहा था , एक जन नायक का जन्म हो रहा था । कुशल संगठन कर्ता के रूप में जनवरी 1939 में ” टिहरी राज्य प्रजामंडल ” की स्थापना सुमन द्वारा की गई । श्री देव सुमन इसके मंत्री निर्वाचित हुए , श्रीनगर, देवप्रयाग, मुनी की रेती ऋषिकेश आदि स्थानों पर श्री देव सुमन ने रियासत के कुशासन के विरुद्ध व्यापक आवाज उठाई, इनकी गतिविधियों से रियासत में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया । मई 1940 में टिहरी रियासत में प्रवेश को “रजिस्ट्रेशन ऑफ एसोसिएशन एक्ट ” के तहत प्रतिबंधित कर गिरफ्तार कर लिया गया ,वह टिहरी जेल में रहनाचाहते थे ।लेकिन असंतोष के भय से इन्हें पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया , श्री देव सुमन रिहा हुए तो कर्मभूमि समाचार पत्र के माध्यम से टिहरी रियासत की दुर्दशा और क्रूर व्यवस्था को कर्मभूमि अखबार के माध्यम से समाज में प्रचारित प्रसारित कर जनमत तैयार किया ।टिहरी रियासत में गांव-गांव पर्चे वितरित किए , राजा ने श्री देव सुमन को ग्राम सुधार अधिकारी के सरकारी पद पर नियुक्ति का प्रलोभन दिया ,श्री देव सुमन ने इसे ठुकरा दिया ।
वर्ष 1941 में श्री देव सुमन को बार-बार गिरफ्तार किया गया लेकिन श्री देव सुमन ने संघर्ष नहीं छोड़ा विद्यार्थियों का एक बड़ा दल अपने समर्थन में तैयार कर दिया ।
जब देश में भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त 1942 को प्रारंभ हुआ तो उसका प्रभाव टिहरी रियासत में भी हुआ यहां 8-10 अगस्त को यहां आजादी का संघर्ष तेज कर दिया गया हालांकि प्रजामंडल राजा के उत्तरदाई शासन को स्वीकार कर रही थी ।29 अगस्त को श्री देव सुमन को पुनः गिरफ्तार किया गया कुछ दिन देहरादून जेल में रखने के बाद इन्हें आगरा जेल स्थानांतरित कर दिया गया । 40 से अधिक इनके अनुयाई टिहरी में बगैर मुकदमे के गिरफ्तार कर लिए गए, तब जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप के बाद 19 नवम्बर 1943 को उन्हें आगरा जेल से रिहा किया गया , श्री देव सुमन देह से कमजोर हो गए थे लेकिन उनका लौह संकल्प बाकी था।
सुमन दिसंबर 1943 में पुनः सक्रिय हुए और कहा
” मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा लेकिन टिहरी के नागरिक अधिकारों को कुचलने ना दूंगा ”
रियासत का श्री देव सुमन के प्रति षड्यंत्र जारी था पहले उन्हें टिहरी आने की अनुमति दी गई फिर चंबा खाल के पास रोक दिया गया और 30 दिसंबर 1943 को उन्हें टिहरी जेल में बंद कर दिया गया जहां से 25 जुलाई 1944 को उनकी लाश ही बाहर आई ।
टिहरी रियासत में नागरिक अधिकारों की बहाली के लिए 3 मई 1944 को श्री देव सुमन ने अपना ऐतिहासिक अनशन प्रारंभ किया अनशन के अठाइसवे दिन जेलर और डॉक्टर ने उन्हें दूध पिलाने की कोशिश की असफल रहे, फिर 48 वें दिन जेल मंत्री डा०बेली राम ने उन्हें रिहाई का भरोसा दिया तो श्री देव सुमन ने बड़ी दृढता से प्रत्युत्तर दिया कि ” यह सब क्या मैं अपनी रिहाई के लिए कर रहा हूं” मंत्री निराश होकर वापस लौटे । रियासत के षड्यंत्र शुरू हो गए 11 जुलाई 1944 को यह प्रचारित कर दिया गया कि श्री देव सुमन ने अपना अनशन तोड़ दिया है। लेकिन निमोनिया से ग्रस्त हो गए हैं ।हालत इतनी खराब हो गई थी अब वह जनता के सामने नहीं लाए जा सकते थे।
रियासत के छल और षड्यंत्र के शस्त्र ने 20 जुलाई को उन्हें कुनैन की इंजेक्शन के माध्यम से अल्ट्रा डोज दी गई । जिससे वह मूर्छित हो गए और 25 जुलाई श्री देव सुमन ने टिहरी जेल में अपने प्राण त्याग दिए जनाक्रोश के भय से रात्रि में श्री देव सुमन का शव भिलंगना नदी में प्रवाहित कर दिया गया ।
लेकिन अब यह बलिदान व्यर्थ न जाना था ,जनता का टिहरी दरबार से सीधा संघर्ष शुरू हो गया , श्री देव सुमन के बलिदान ने महाराजा नरेंद्र शाह पर नैतिक दबाव पैदा किया और उन्होंने पद त्याग दिया। दरबार के बहुत से महत्वपूर्ण दरबारियों ने भी अपने पद छोड़े, 5 अक्टूबर 1946 को मानवेंद्र शाह रियासत के नए नरेश नियुक्त हुए लेकिन वास्तव में वह अपना प्रभाव खो चुके थे ।
श्री देव सुमन के बलिदान के बाद टिहरी रियासत मैं जनता के आंदोलन परवान चल रहे थे ।परिपूर्णानंद पैन्यूली ,नागेंद्र सकलानी ,मोलू भंडारी, विद्यासागर नौटियाल जैसे जनाधार वाले जन नेता टिहरी में पैदा हुए , और आखिरकार प्रजामंडल का संघर्ष कामयाब हुआ 14 जनवरी 1948 को कीर्ति नगर, देवप्रयाग और टिहरी में जनता ने कब्जा कर लिया । 1 नवंबर 1949 को टिहरी रियासत का भारत संघ में विलय हुआ।
संघर्ष की महान परंपरा के नायक श्री देव सुमन को विनम्र श्रद्धांजलि