आज 4 फरवरी को उत्तराखंड के जन नायक स्व. डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट का जन्मदिन है। इस अवसर पर प्रस्तुत हैं उनकी पत्नी रेवती बिष्ट के अन्तरंग संस्मरण।
पल्टन बाजार में तिम्ली के बिष्ट लोगों का भरा पूरा परिवार रहता था । परिवार के सबसे छोटे बेटे को सभी शम्भू नाम से पुकारते थे । परिवार में मां , बड़े भाइयों और भाभियों के अलावा छोटे – छोटे भतीजे और भतीजियां भी थीं । इसलिए पढ़ाई करने के लिये शम्भू जी के वास्ते दो छोटे छोटे कमरों की व्यवस्था वहीं पर शीतला देवी मंदिर के निकट कर दी गई । पड़ोस में विभिन्न विषयों की पढ़ाई करने के लिये कई अन्य छात्र – छात्राओं ने भी किराए पर कमरे लिये थे । शम्भू जी तक चाय पहुंचाने का जिम्मा था उनकी छोटी सी भतीजी पर । जो अब बड़ी हो गई है पर उसे देखकर आज भी याद आती है वही दुबली – पतली छोटी सी चाय की केतली ।
हास्टल की लड़कियों की मित्रता पल्टन बाजार में रहने वाली लड़कियों से थी । उनका आना जाना पलटन बाजार में लगा रहता था और शम्भू जी का निवास होता था इन चाय गोष्ठियों का केन्द्र । हाइनैक की स्वेटर पहने, नजरें झुका कर चलने वाले इन शम्भू जी के तो सभी मुरीद थे पर शम्भू जी किसके मुरीद थे पता नहीं ।
उन दिनों कॉलेज में इलैक्शन हो रहे थे । हमसे विद्या ने कहा कि शमशेर सिंह बिष्ट ‘शम्भू ‘ को वोट देना । प्रचार का माध्यम था एक छोटा सा मुहर लगा कागज जिसे हम सभी को थमा दे रहे थे और यही मुहर लगा कागज मेरी जिन्दगी की मुहर बन गया।
जिन शम्भू जी का हम प्रचार कर रहे थे वो जनाब अपने प्रतिद्वन्दी तारा चंद्र गुरुरानी का पम्फलेट खुद अपने हाथों से बांट रहे थे , पर इस सरल विचार की जबरदस्त जीत हुई । बहुत बड़ा जुलूस निकला । मेरे स्मरण में आज भी शिवजी का वो बड़ा पोस्टर अंकित है जिस पर लिखा था, ‘ इन्होंने ही इसको भेजा है । ‘ भानु अग्रवाल, उपाध्यक्ष और विनोद जोशी सचिव बने। कोई भी समस्या हो, समाधान अवश्य ढूंढा जाता था। लड़कियों के साथ छेड़ाखानी करने वालों को थप्पड़ की सजा अवश्य मिलती थी ।
शम्भू जी का हेमवती नंदन बहुगुणा, एन.डी. तिवारी, के. सी . पन्त , गोविन्द सिंह मेहरा आदि से अच्छा परिचय था । पर इस परिचय का लाभ इन्होने व्यक्तिगत फायदे के लिये कभी नहीं उठाया।
इन्होंने जे.एन. यू. में भी प्रवेश लिया पर अपने सरल स्वभाव के कारण वहां नहीं रह पाए और लौट आए उत्तराखंड , जहां इन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय बनाने हेतु किये जा रहे संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई । फलस्वरूप विश्वविद्यालय बना और शम्भू जी से सबने कहा कि आप इस विश्वविद्यालय में सर्विस कर लें , ताकि जीवन यापन का सहारा हो सके । पर उन्होंने कहा कि नहीं हम ऐसा नहीं कर सकते । हमने आन्दोलन अपने लाभ के लिए नहीं किया है। इन्होंने पी.एच.डी. की बी . एड . किया एल.एल.बी. की यहां तक कि स्टेनोग्राफी में पॉलीटेक्नीक किया । बच्चों को पढ़ाया पर अपने स्वाभिमान को बनाए रखा।
कालान्तर में मुझे केन्द्रीय विद्यालय पिथौरागढ़ में नौकरी मिली । विवाह हेतु कई प्रस्ताव भी आए जो मुझे मन्जूर नहीं थे । कुछ वर्ष उपरान्त जेठ जी और गिर्दा आए । मेरे माता – पिता ने तो इस प्रस्ताव का समर्थन किया पर गांव के लोगों ने जाति-पाति और ऊँच – नीच जैसी सोच के कारण इस विवाह का विरोध किया और इस कारण से यह विवाह आर्यसमाज अल्मोड़ा में सम्पन्न हुआ । गिर्दा ने तब ही कह दिया था कि ‘बैणी इसका तो एक पांव जेल में ही हुआ ‘ और हुआ भी ऐसा ही कि विवाह के पहले दिन ही ये जेल से छूट कर आए थे ।
मैने अपना तबादला अल्मोड़ा के निकट रानीखेत करा लिया था । आन्दोलनों के साथ साथ इनका रानीखेत आना-जाना लगा रहता था । एक बार घूमने के लिये काठमान्डू जाने का विचार बना , सो होल्डोल, बिस्तर आदि साजो सामान लेकर जा पहुंचे हल्द्वानी । नानतिन महराज और उनके चेले उस बस में पहले से ही मौजूद थे और जय शंकर आदि नारे लगा रहे थे । ये इन सबके जबरदस्त विरोधी थे तुरन्त मय सामान के उतर गए । उन दिनों अन्य कोई साधन होते नहीं थे , इस कारण हम दोनों देहरादून , मंसूरी आदि घूम – घाम कर लौट आए ।
माता पिता बूढ़े हो गए थे सो उनकी देख-रेख के लिये मुझे कई बार छुट्टी लेकर पिथौरागढ़ जाना पड़ता था। बाद में अल्मोड़ा स्थानान्तरण हो जाने पर मैं उन दोनों को अल्मोड़ा ले आई। यहां प्रातः काल के कार्यों को निपटा कर मैं तो स्कूल चली जाती थी पर ये दिन भर मेरे वृद्ध मां पिता की सेवा करते थे । उनकी देख -रेख बिल्कुल छोटे बच्चों की तरह करनी पड़ती थी और यह सेवा इन्होंने पूरी लगन से, मुझसे कहीं बहुत बेहतर तरीके से की ।
कई कई जगह, कई मीटिंगों में इनके साथ जाना होता था । जहां इनकी विशालता मुझे पता चलती थी।
इनकी तरह ही अद्भुत थे इनके दोस्त शेखर , राजीव, गिर्दा , पाण्डे जी आदि । हम सब की यादों में हमेशा जिन्दा रहने वाले शम्भू जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं ।