नैनीताल समाचार
जन नायक स्व डा शमशेर सिंह बिष्ट की पांचवी पुण्यतिथि पर पर्वतीय क्षेत्र में आपदा कारण एवं समाधान पर गहन मंथन किया गया। सेवाय होटल में हुए आयोजन की मुख्य वक्ता हिमधरा कालेक्टिव हिमाचल की संस्थापक मांशी आसर रही। इस मौके पर स्व बिष्ट के समाज के लिए उल्लेखनीय योगदान को भावपूर्ण याद किया गया और विनम्र श्रद्धांजलि दी गई।
मांशी आसर ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में आपदा के जोखिम प्राकृतिक हैं लेकिन यहां आने वाली आपदा के लिए हमारे नीति नियंता जिम्मेदार हैं। अव्यवहारिक नीतियों के चलते पहाड़ों में आपदा एक विकराल स्वरूप धारण करने लगी है। उन्होंने कहा कि पहाड़ के समाज व परिस्थितियों में एक लचीलापन रहा था जोकि अब धीरे धीरे कम हो रहा है। पिछले दो सदियों से क्षेत्र में गतिविधियां हो रही हैं। 1990 से आए वैश्विक दौर ने हिमालय को झकझोर के रख दिया है। यहां संशाधनों की लूट जारी है। आम जनता शोषण का शिकार हो रही है। सरकारें आपदा में केवल रेस्क्यू व तात्कालिक सहायता तक सीमित रह गई हैं। प्रभावितों की समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि हिमालय में संरक्षण के नाम पर आ रहे बाहरी फंडिंग को भी देखे जाने की जरूरत है। इसका उपयोग अर्ली वार्निंग जैसे काम में हो रहा है। जोकि सम्साया का स्थायी समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में राजनीति में वर्चस्व के संघर्ष में आपदा जैसे मुद्दे पर गंभीरता से मंथन नहीं हो रहा है। जोकि वर्तमान की जरूरत है। उन्होंने हिमाचल में हालिया आपदा की घटनाओं पर भी प्रकाश डाला।
हिमाचल के साथ उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य के पहाड़ों में बन रहे बांध होटल व रिसोर्ट के साथ ही चौड़ी सड़कों के निर्माण को आपदा के कारक करार दिया।
वन कानूनों के इतिहास से वर्तमान तक प्रकाश डाला।
नैनीताल से आए वन विशेषज्ञ विनोद पांडे ने अंग्रेजों के जमाने से लेकर वर्तमान यानि 2023 में बने वन कानूनों पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने भारत में 1852 में पहली बार आई रेल को वनों से जोड़ते हुए अपनी बात शुरू की। बताया कि रेल के लिए जहां जंगलों के बीच ट्रेक बनाए गए वहीं बड़ी तादात में स्लीपर के लिए बनों का दोहन शुरू हुआ। हालांकि भारत में 1865 में पहली बार जंगल के लिए कानून बना और इसको रिजर्व फोरेस्ट घोषित किया गया। लेकिन जनता में इसको लेकर असंतोष पनपा। भारत रत्न पं गोविंद बल्लभ पंत आदि स्वतंत्रता सैनानियों ने 1915 कुमाऊं परिषद का गठन कर इसको लेकर सामूहिक विरोध दर्ज कराया। जनता में पैदा हुए असंतोष को दूर करने के लिए अंग्रेज शासन ने कुमाऊँ फॉरेस्ट ग्रीवेंस कमेटी क बनाई और इसका परिणाम रहा है बिट्रिश कुमाऊं में वन पंचायतों का गठन हुआ और रिजर्व के स्थान पर कुछ जंगल प्रोटेक्ट फोरेस्ट में डाल दिए गए। इधर आजादी के बाद भी वन कानूनों को लेकर कवायद चलती रही। 1959 में कुमाऊं फोरेस्ट एक्ट फाइडिंग कमेटी गठित हुई। बताया कि 1970 के दशक में चले वन आंदोलन ने नई सोच पैदा की। स्थानीय जनता जंगलों से मिलने वाले परंपरागत हक हकूक जारी करने के लिए मुखर हुई लेकिन इसको पेड़ बचाओ यानि चिपको आंदोलन में तब्दील कर दिया गया और लोगों की हक हकूक की मांग आज भी अधर में लटकी है।
उन्होंने वन अधिकार कानून 2006 तथा 1996 गोडावर्धन मामला तथा 2017 में किए गए परिवर्तन की जानकारी प्रदान की। इधर हाल में यानि 2023 में बनाए गए कानून जिसमें वन क्षेत्र के लिए बड़ी चालाकी से अपने पसंदीदा लोगों को उपयोग की छूट देने के प्राविधान किए गए हैं की जानकारी भी दी। कहा कि नए प्राविधान में केंद्र सरकार विशेष परिस्थिति के नाम पर वन क्षेत्र के उपयोग के लिए दिशा निर्देश जारी कर सकती है। इसमें अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े इलाके में 100 किमी के दायरे तक की छूट शामिल हुए।
उपपा अध्यक्ष पीसी तिवारी ने वर्तमान हालात को बदलने के लिए राजनैतिक विकल्प तैयार करने की जरूरत बताई। कहा कि सामूहिक हितों के लिए एकजुटता से संघर्ष करना होगा। जिला बार अध्यक्ष महेश परिहार ने वन व नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन सहित उत्तराखंड राज्य आंदोलन पर प्रकाश डाला। कहा कि इस सब के बावजूद आज उत्तराखंड की आम जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उलोवा अध्यक्ष राजीव लोचन साह ने वाहनी से लेकर उलोवा के तहत किए गए जनसंघर्षों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1972 से शुरू हुई यह यात्रा वन के हक हकूक नशे का कारगर विरोध व बड़े बांधों के खिलाफ संघर्ष के साथ ही उत्तराखंड राज्य गठन तक जारी रहा। महासचिव पूरन चंद्र तिवारी व स्व बिष्ट की धर्मपत्नी रेवती बिष्ट आदि ने भी विचार रखे। सभी ने स्व डा बिष्ट के योगदान को याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि दी। भाष्कर भौर्यांल व अन्य ने जनगीत प्रस्तुत किए। संचालन डीके कांडपाल ने किया। इस मौके पर प्रो उमा भट्ट विनीता यशस्वी एड जगत रौतेला अजय मित्र बिष्ट अजय मेहता जंगबहादुर थापा मोहन सिंह शिवदत्त पांडे डा हयात रावत डा जेसी दुर्गापाल आनंद सिंह बगडवाल मोहन कांडपाल अमीनुर्र रहमान पत्रकार जगदीश जोशी आदि मौजूद रहे।