पंकज भट्ट
मौत के 4 लाख, घर टूटे के 1 लाख 9 हजार इस बार की आपदा के रेट तय हैं, मौत आँकड़ा महज है.. गिनते रहिए!
17 – 18 अक्तूबर को आई आपदा में इतनी ज़्यादा बारिश हुई कि 8 इंच पानी वाला गधेरा किसी ग्लेशियल नदी जैसे चौड़े फाट बना के बहा। बिगड़े पानी के रास्ते में घर आए, बड़े बड़े अखरोट के पेड़, बगीचे या मनरेगा के चैक डैम सब ध्वस्त।
पहाड़ की चोटी पर बेतरतीब किए गए निर्माण कार्य, उसके निष्पादित मलवे के ढेर जिन्हें किसी खास तय डंपिंग जोन में ना डालकर यूँ ही गधेरो के आस पास डाल दिया गया पानी के साथ बहकर किसी सिरेमिक ब्लेड की तरह जमीनों को काटता-पाटता आगे बढ़ता रहा, तबाही मचाता रहा।
तारों पर कसी पत्थर की मोटी दीवारों से बने चैक डैम मलवे को भरते रहे और नदी को ऊंचाई देते रहे। नदियाँ अपने ज़मीनी स्तर से ऊपर बगीचों में बही, घरों में घुसी, दायरे बढ़ाती गई।
रामगढ़ के गाङखेत में स्व. शंभू दत्त डालाकोटी जी का घर नेस्तनाबूद हो गया, उनके परिजन मलवे में दब रहे थे और पास ही मौजूद उनके परिजन और ग्रामीण उस स्थान पर हुई दो लोगों की मृत्यु को नहीं टाल पाए। बहुत मुश्किल से किसी तरह एक नौजवान मनीष आर्या ने उनकी पत्नी को मलबे से बाहर निकाला। एक छोटे से गधेरे के उफान को पार करके चीखते पुकारते किसी अपने को ना बचा पाने की विवशता और हाथ जोड़कर माफी मांगने का कोई मुआवज़ा नहीं हो सकता।
कुछ लोगों के पास रामगढ़ के बोहराकोट में एक छोटा घर और मुट्ठी भर ज़मीन थी वो भी इस तबाही में बह गई। करीब 6 ग़रीब अनुसूचित जाति के परिवार बेघर होकर दर दर भटक रहे हैं। कई घर खतरे की ज़द में हैं।
रामगढ़ के ही पृथ्वीराज सिंह एक नामी होटल के जनरल मैनेजर की नौकरी छोड़कर अपने इलाके में पलायन रोकने और एक पर्यावरण संतुलित, सम्वेदनशील समाज बनाने के उद्देश्य से रैन्बो ट्राउट मछली का एक प्रोजेक्ट चला रहे थे जिसमें काफ़ी पैसा इनवेस्ट किया गया था वो अब ध्वस्त हो चुका है, मछलियाँ जो कि अब उत्पादन योग्य वज़न ले चुकी थीं सब बह गई। उनका पुराना बगीचा जिसे उन्होंने दुबारा तैयार किया था आपदा की भेंट चढ़ गया। इससे पूर्व मई में भी उनका एक मछली तालाब मानव जनित आपदा की भेंट चढ़ चुका है जिसमें लगभग 3000 छोटी मछलियाँ बह गई। फ़िलहाल उनका घर की भूस्खलन के खतरे की ज़द में है, परिवार विस्थापन को मजबूर है।
आपदा की TRP शायद अपनी ढ़लान पर है… अंदर के इलाकों में हुए भारी नुकसान हुआ है। जान माल की हानि अब शायद ही सोशल मीडिया या न्यूज पेपर में दिखे….
आपदा आती रहेंगी TRP चलती रहेगी… हम शायद ही अब सम्वेदनशील हों! फ़िलहाल मौत के आंकड़े बासी हैं नए आंकड़े IPL के हैं और भारत पाकिस्तान मैच ज़्यादा ज़रूरी हो चुका है।