राजीव लोचन साह
नैनीताल बैंक के बारे में यह रिपोर्ट 7 जनवरी को नैनीताल समाचार की वैबसाईट पर अपलोड हुई और देखते ही देखते जबर्दस्त ढंग से वायरल हो गई। इसका एक अच्छा परिणाम यह हुआ कि पिछले डेढ़-दो साल से नैनीताल मुख्यालय से भाग कर देहरादून अपने घर में बैठ रहे बैंक के चेयरमैन दिनेश पन्त को 21 जनवरी को नैनीताल आकर एक प्रेस काॅन्फ्रेंस करनी पड़ी। बैंक के बारे ‘कुछ अच्छा’ छपने की उनकी मनोकामना पूरी हुई और उनके उपहारों से उपकृत पत्रकारों ने स्टेनोग्राफर की तरह उनका प्रेस नोट अविकल रूप से प्रकाशित कर दिया। मगर नैनीताल समाचार में प्रकाशित रिपोर्ट में उठाये गये सवालों का चेयरमैन की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया। उदाहरणार्थ, उन्होंने यह तो बतलाया कि बैंक ने वर्तमान वित्त वर्ष के प्रारम्भिक 9 महीनों में 44.85 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया, जो पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि से 24.96 करोड़ रुपये अधिक था; मगर यह नहीं बतलाया कि पिछले वर्ष बैंक को 68 करोड़ रुपये का घाटा आखिर हुआ क्यों, जिसके कारण पहली बार बैंक के शेयरहोल्डरों को डिविडेण्ड से वंचित कर दिया गया। गैर निष्पादित आस्तियों में कमी आने का दावा किया गया, मगर यह स्पष्ट नहीं किया गया कि रुद्रपुर, बरेली, नोएडा, दिल्ली, गाजियाबाद, भोपाल आदि स्थानों पर जो बड़े-बड़े संदिग्ध एडवांस फँसाये गये हैं, उनमें कितनी वसूली हुई ? अकेले बरेली की शाखा द्वारा एक राईस मिल को जो 46 करोड़ रुपये दिये गये थे, इतने सालों में उनमें से केवल 6 करोड़ रुपये की ही वसूली क्यों हुई ? बाकी 40 करोड़ रुपये कहाँ डूबे ? नोएडा के मेडिकल काॅलेज के 105 करोड़ और रुद्रपुर के आॅटोमोबाइल्स के 110 करोड़ रुपये के एडवांस की वसूली की दिशा में क्या किया जा रहा है ? क्या ये गलत-सलत ऋण देने के मामले में कोई जाँच की गई ? क्या दोषी अधिकारियों को दंडित किया गया ?
बैंक की 13 नई शाखायें खोल कर कुल शाखाओं की संख्या 154 करने और इन्हें 160 तक ले जाने का दावा किया गया, मगर यह साफ नहीं किया गया कि ये शाखायें बैंकिंग को बढ़ाने के लिये खोली गई हैं या बैंक के वर्तमान चेयरमैन द्वारा अपने को इतिहास में दर्ज करने की हास्यास्पद महत्वाकांक्षा के कारण ? अब तक बैंकों की शाखाओं का उद्घाटन या तो जन प्रतिनिधि करते रहे हैं या फिर समाज के विशिष्ट व्यक्ति। यह रोचक तथ्य है कि अब बैंक के चेयरमैन अपने बैंक की शाखाओं का स्वयं उद्घाटन कर रहे है। इससे भी ज्यादा मजेदार बात यह है कि न सिर्फ वे उद्घाटन कर रहे हैं, बल्कि अपने नाम के पत्थर लगा रहे हैं, जिनमें उनके फोटो भी लगे हैं। फोटो वाले शिलालेख, जो कहीं नहीं देखे जाते, नैनीताल बैंक की विशेषता बन गये हैं। बैंक में कोई इस बात पर भी ध्यान नहीं दे रहा है कि अपनी परिसम्पत्तियों में शिलालेख लगाना शायद जायज भी हो सकता था, मगर किराये के मकान में पाँच साल का अनुबंध समाप्त हो जाने के बाद इन शिलालेखों का क्या होगा ? ये कहाँ रखे जायेंगे ?
बैंक के कर्मचारियों के परिश्रम के कारण ही बैंक अब तक प्रगति करता रहा है। यह बात चेयरमैन भी स्वीकार करते हैं। मगर क्या कारण हैं कि कर्मचारियों के लिये 7 बजे तक काम करने, भले ही उसकी जरूरत हो या न हो, का तुगलकी फरमान तो जारी कर दिया गया है, मगर उनकी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उनकी माँगों पर लम्बे समय से कोई निर्णय न लिये जाने के कारण बैंक के अधिकारियों और कर्मचारियों में जो असंतोष और हताशा है, उससे तो बैंक की प्रगति बाधित ही होगी।