महिपाल नेगी, साहब सिहं सजवाण, अरण्य रंजन
उत्तराखंड में उत्तरकाशी जनपद के अंतर्गत उत्तरकाशी वन प्रभाग के सेम मुखेम रेंज के वयाली के जंगल में रई और मुरेंडा जैसे उच्च हिमालई हरे पेड़ों का अवैध कटान किया जा रहा है। गत सप्ताह इस जंगल के रास्ते एक देवयात्रा पर गए ग्रामीणों में से कुछ जागरूक लोगों ने चलते चलते जंगल में पेड़ कटान के फोटो और वीडियो लेकर हमें भेजे।
इनका संज्ञान लेकर हम 3 साथी (महिपाल नेगी-गढ़वाल डायरी, साहब सिहं सजवाण – सर्वोदय मंडल एवं अरण्य रंजन- उत्तराखण्ड न्यूज 24) बयाली के जंगल के लिए निकल पड़े। पहले उन ग्रामीणों से संपर्क किया, बातचीत की जिन्होंने फोटो और वीडियो भेजे थे। उन्होंने पुनः अपने मोबाइल पर फोटो और वीडियो दिखाए और हरे पेड़ों के कटान की पुष्टि की।
उन्हीं ग्रामीणों के बताए रास्ते पर अगले दिन 12 अप्रैल को हम करीब सात आठ किलोमीटर पैदल चलने के बाद जंगल में पहुंचे तो देखा जगह-जगह रई और मुरेंडा के हरे पेड़ों के तने, टहनियां और पत्तियां बिखरी पड़ी हैं। जानकारी मिली कि वन निगम ने सूखे और गिरे पेड़ों के कटान का ठेका दिया हुआ है। साफ दिखाई दिया कि सूखे गिरे पेड़ों की आड़ में खड़े हरे पेड़ों का भी कटान किया जा रहा है।
क्योंकि इस जंगल में ग्रामीणों की सामान्य आवाजाही नहीं होती इसलिए हमने बेहद सतर्कता से फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की। इस दौरान वन कटान वालों ने संदेह जताया तो हमने बताया कि हम निकट के मंदिर में पूजा के लिए आए हैं। और वास्तव में हम मंदिर के लिए झंडा और पूजा सामग्री लेकर गए थे ताकि कटान वालों को हम पर संदेह ना हो। हममें से एक साथी पुजारी के भेष में आ गया था। वन कटान वालों से हमने पीने का पानी भी मांगा।इस दौरान भी वहां आरे और कुल्हाड़ी से पेड़ों के स्लीपर बनाए जा रहे थे। आवाज जंगल में दूर तक गूंज रही थी। हालांकि हमारी उपस्थिति के दौरान कोई हरा पेड़ काटा नहीं गया। स्लीपर के कई स्थानों पर ढेर लगे हुए थे। साफ दिखाई दे रहा था कि उनमें हरे पेड़ों के भी स्लीपर हैं।
टिहरी और उत्तरकाशी की सीमा पर काफी ऊंचाई पर अंयारखाल एक जगह है, वहां पर भी सड़क पर स्लिपर के ढेर लगे थे। स्थानीय लोगों ने बताया कि करीब 8 से 10 ट्रक स्लीपर अब तक जा चुके हैं। जिनमें निचले क्षेत्रों के कुछ चीड़ के पेड़ भी शामिल थे। कितनी संख्या में हरे खड़े पेड़ काटे गए होंगे, यह जांच से ही पता चलेगा। अभी पास के ही एक और जंगल तैड़ी में भी ठेका हुआ है। तैड़ी टिहरी वन प्रभाग के अन्तर्गत है।
खास बात यह है कि वयाली के जंगल की नीलामी के खिलाफ वर्ष 1974 में चिपको आंदोलन के दौरान बड़ा आंदोलन हुआ था। 25 लाख रू में नीलामी हुई थी। चिपको नेता सुंदरलाल बहुगुणा, घनश्याम सैलानी, कम्युनिस्ट नेता कमलराम नौटियाल, चंदन सिंह राणा आदि के नेतृत्व में चले आंदोलन के बाद वयाली का जंगल करने से बच गया था।
यह जंगल इसलिए भी संवेदनशील है कि इंद्रावती नदी का यह उद्गम क्षेत्र है। दुर्लभ थुनेर और मौरू के पेड़ भी यहां हैं। इंद्रावती नदी उत्तरकाशी शहर के पास गंगा में मिल जाती है।