आशीष नेगी
पत्रकार उमेश डोभाल की शहादत दिवस पर उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता शिक्षक,चिन्तक एवं साहित्यकार मनोहर चमोली ‘मनु’ ने कहा कि कल, आज और कल की पत्रकारिता का इतिहास देखें तो आज की पत्रकारिता जनोन्मुखी कम और अवसरवाद की पत्रकारिता रह गई है। प्रिन्ट मीडिया में कमोबेश हिन्दी पट्टी में आखिरी पीढ़ी के पत्रकार रह गए हैं। ऐसा नहीं है कि नई पीढ़ी मीडिया,जनसंचार एवं पत्रकारिता कोर्स में दाखिला नहीं ले रहे हैं। ले रहे हैं लेकिन उनका लक्ष्य प्रिन्ट मीडिया की बजाय वेब पोर्टल, संस्थानों के मीडिया प्रभार या इलैक्ट्राॅनिक मीडिया के क्षेत्र में कॅरियर देख रहे हैं।
शिक्षक एवं साहित्यकार एवं पूर्व पत्रकार मनोहर चमोली जन सरोकार के लिए प्रतिबद्व रहे प्रख्यात पत्रकार उमेश डोभाल की पुण्य तिथि पर नगर पालिका सभागार में आयोजित विचार गोष्ठी में बोल रहे थे।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में उमेश डोभाल एवं उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट पर निर्मित वृत्त चित्र भी साझा किया। साथ ही सभागार में उपस्थित श्रोताओं ने उमेश डोभाल के चित्रपट्ट पर पुष्प भी अर्पित किए।
श्री चमोली ने अपने उदबोधन में कहा कि आज के दौर में यदि भारत की पत्रकारिता का इतिहास देखे तो उसे आजादी से पहले के काल और आजाद भारत और नब्बे के दशक के काल सहित आज और भविष्य के देशकाल के सन्दर्भ में देखें तो प्रिन्ट मीडिया रसातल की ओर जाता दिखाई दे रहा है।
उन्होंने कहा कि आजादी से पहले की पत्रकारिता को देखें तो तब मुख्य लड़ाई भारतीयता की अंग्रेज़ियत से थी। तब भारत की जनता पन्द्रह फीसदी भी साक्षर न थी। तो भी पत्रकारिता जन सरोकार की और समाज की बेहतरी के लिए मुद्दों को उठाती थी। अत्याचारों के खिलाफ, रोटी,कपड़ा और मकान के गुहार की पत्रकारिता थी। अंग्रेजों के विरुद्ध जनता को लामबद्ध करने वाली थी। पत्रकारिता में भारतीयता कूट-कूट कर भरी थी। ओजस्वीपूर्ण लेख, कहानी, आलेख और प्रेरित जनगीतों का चलन था।
उन्होंने कहा कि आजाद भारत के बाद की पत्रकारिता ने तेवर और कड़े किए। प्रतिरोध की पत्रकारिता चरम पर थी। अपना मुल्क, अपनी सरकार से पत्रकारिता ने मानो लोहा लेना अपना धर्म समझ लिया था। निरक्षरता के खिलाफ हिन्दी अखबार भी बेहद मुखर थे। अस्सी ही नहीं नब्बे के दशक तक की पत्रकारिता जनोन्मुखी रही।
उन्होंने कहा कि नब्बे के दशक से ही इलैक्ट्राॅनिक मीडिया का ग्लैमर बढ़ता रहा और निजी चैनलों ने विज्ञापन और पीत पत्रकारिता भरी पत्रकारिता शुरू कर दी। पत्रकारिता का चैथा स्तम्भ चाटुकारिता की ओर बढ़ने लगा। स्ववित्तपोषित स्वामी,प्रबन्धन ने संपादक और स्वतंत्र पत्रकारिता का दमन करना शुरू कर दिया। तथ्य के साथ कथ्य भी शामिल होने लगा। कथ्य में वैचारिक शुद्धता की जगह अवसरवाद ने ले ली। पोस्ट ट्रूथ यानि सत्य के आगे ऐसा सच जो झूठ को भी सच साबित कर दे, विचार की पत्रकारिता ने जन सरोकार की पत्रकारिता को लील लिया।
श्री चमोली ने अपने वक्तव्य में आज की और भविष्य की पत्रकारिता पर भी बात की। उन्होंने कहा कि अब इरादतन जो पढ़ाया जाना चाहिए, इस तरह की पत्रकारिता ने सोशल मीडिया और व्हाट्सएप् पत्रकारिता शुरू कर दी है। सच छिपा दिया जाता है और वैचारिक दुराग्रह का फैलाव नई मीडिया ने शुरू कर दिया है। पढ़ने की संस्कृति कम होती चली गई है। अखबार हजारों की प्रतियों से दर्जनों में सिमट गए हैं। उन्होंने कहा कि विशुद्ध पत्रकारिता के पैराकार पत्रकारों की हत्याएं अब भी हो रही हैं। पिछले तेइस सालों में दुनिया में 1928 पत्रकारों की हत्या हुई हैं। यह वह पत्रकार थे जो समाज के हित में कलम चलाते थे। भारत में 74 पत्रकारों की हत्याएं हुई हैं। यह आंकड़े राइट एण्ड रिस्क एनालिसिस ग्रुप ने अध्ययन के बाद दिए हैं। अकेले 2020 में 228 पत्रकारों को भारत में निशाना बनाया गया है। उन पर हमले हुए हैं। जिनमें 13 पत्रकारों की हत्या हुई हैं। यही नहीं इसी वर्ष 37 पत्रकार गिरफ्तार हुए हैं। यदि हर साल का आंकड़ा देखा जाए तो यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। उन्होंने कहा कि ऐसा समाज बनाया जा रहा है कि हर कोई अपने काम से काम रखे और अपनी आंखें और कान बंद रखे। सामाजिकता की जगह व्यक्तिवाद हावी हो रहा है।
इस अवसर पर ट्रस्ट के अध्यक्ष बिमल नेगी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संचालन विरेन्द्र खंकरियाल ने किया। विचार गोष्ठी की अध्यक्षता सुरेन्द्र सिंह रावत ‘सूरी’ ने की। मंच पर वरिष्ठ पत्रकार डाॅ॰योगेश धस्माना, प्रख्यात गीतकार और गढ़वाली के मर्मज्ञ विशेषज्ञ वीरेन्द्र पंवार मौजूद थे। श्रोताओं में नवांकुर नाट्य समूह के यमुनाराम, एस.पी.बौड़ाई, शिक्षक विनय मोहन डबराल, ओपी लखेड़ा, प्रदीप रावत, आशीष मोहन नेगी, रघुवीर सिंह रावत प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। ट्रस्ट के महासचिव ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। विचार गोष्ठी में उमेश डोभाल के गांव सिरौली से सम्मानित नागरिक एवं छात्र भी उपस्थित रहे।