रमदा
हॉटमिक्स सड़कें बड़ी आरामदायक होती हैं, वाहन जैसे मक्खन पर फिसलते से चलते हैं. सड़कों के क्षतिग्रस्त हो जाने पर, तीन इंच मोटी, एक नयी सतह पुरानी के उपर चढ़ा दी जाती है और सड़क फिर चकाचक. हाँ एक गड़बड़ जरूर पनपती है, साइड का फुटपाथ नीचे चला जाता है. सड़क और फुटपाथ की सतहों की यह दूरी हॉटमिक्स की हर नयी सतह के साथ बढ़ती जाती है और वाहनचालकों को यदि एकाएक गाड़ी फुटपाथ पर उतारनी पड़े तो जान-माल का खतरा सामने खड़ा हो जाता है. यह समस्या अखिल भारतीय है किन्तु “भाग्य-विधाताओं” के “संज्ञान” में अभी तक शायद यह नहीं लाई जा सकी है.
अभी दो-चार दिन पहले जब मैंने, नयागांव से रामनगर की ओर आते हुए, सड़क के दोनों ओर लगी जे.सी.बी मशीनों को, मिट्टी डालकर, फुटपाथों और सड़क की ऊँचाइयों की इस खतरनाक होती जा रही दूरी को पाटते देखा तो लगा कि उत्तराखंड सरकार ने आम लोगों की इस तकलीफ का संज्ञान ले लिया है. सोचा कि देश के बाकी राज्य भी अब उत्तराखंड का अनुकरण करेंगे. थोडा ज्यादा गौर करने लगा तो पाया कि सड़क के दोनों ओर के पेड़ों की उन डालियों की भारी छंटाई भी चल रही है जिनसे गर्मियों में थोड़ी राहत सी मिलती है. नालियां ठीक की जा रही हैं, क्षतिग्रस्त दीवारों की मरम्मत, पुताई, झाड़ी-कटान, खोकों को हटाया जाना आदि आदि सभी काम युद्धस्तर पर चल रहे हैं.
जितना रामनगर के पास आता गया सड़क के दोनों ओर ऐसी तमाम तरह की गतिविधियों की बढ़ती तादाद को देखते देखते सोचने लगा कि कहीं चुनाव जैसा तो कुछ आस-पास नहीं है. मगर ध्यान में आया कि एक तो हाल-फिलहाल ऐसा कुछ सामने है नहीं ऊपर से चुनाव के लिए जन सुविधायें या क्वालिटी ऑफ लाइफ हमारे जनतंत्र में कोई मुद्दा होता ही नहीं है. जात-बिरादरी, सम्प्रदाय-धर्म, धनबल-बाहुबल और सत्ता के शीर्ष पर बैठे आदमी की छवि आदि चुनाव के मामले में हमें कहीं ज्यादा उपयोगी लगते हैं. दिमाग ने वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने मार्च में त्वरित गति से निबटाये जाने वाले कामों की ओर भी इशारा किया मगर दिल बोला वह तो हर साल होता है, यह साल इस तरह से कुछ न्यारा नहीं है.
अगर आप कभी रामनगर आये हैं तो एक बराज से होकर आप नगर में प्रवेश करते हैं. अपनी यात्रा के आख़िरी हिस्से में जैसे ही मैं यहाँ पहुंचा और मैंने कार्मिकों के एक पूरे दल को बराज की डैन्टिंग-पेंटिंग में लगा देखा तो इन तमाम गतिविधियों के मंतव्य के सवाल ने मुझे बेचैन कर दिया. डिग्री कॉलेज की ओर आते-आते यह बेचैनी और बढ़ी. झक्क सफ़ेद कर दी गयी बाउंड्री-वाल पर चित्रकारों की एक पूरी टीम कुमाऊँ के जन-जीवन, लोगों, पहनावों, त्योहारों की शानदार तस्वीरें उकेरने में व्यस्त थे. फुटपाथों को पूरी तरह नया किया जा रहा है, बिजली के खम्बों को बदला जा रहा है. कुल मिलाकर एक ऐसा परिदृश्य सामने था कि हालत सच है या सपना जैसी हो गयी. दिल ने कहा चलो कोई तो है जो रामनगर की सुधि ले रहा है.
लखनपुर चुंगी-चौराहे से रानीखेत रोड पर बायीं ओर चलने पर मुख्य-शहर/ बाज़ार पड़ता है और दायीं ओर बढ़ जाने पर हम शहर से बाहर ढिकुली गाँव के रिसॉर्ट्स और कॉर्बेट-पार्क की ओर निकल जाते हैं. चौराहे पर पहुंच कर पता चला कि “नयनाभिराम बदलावों” की यह बाढ़ भी नगर से बाहर की ओर ही जा रही है. नगर को छोड़, नगर की परिधि को सजाती इन गतिविधियों में छोटा-मोटा रोजगार करने वालों को हटाना, निर्बाध-ट्रैफिक संबंधी व्यवस्थाओं का सृजन, सड़क पर हॉटमिक्स की नई सतह यहाँ तक कि निजी आवासीय भवनों को एक रंग में पुतवाने / पोतने की योजना सब शामिल हैं . शेष नगर को अपनी पूरी अव्यवस्थाओं के साथ यथावत ही रहना है.
इधर-उधर से पता चला कि सारी तैयारी “जी-20 सी.एस.ए.आर” (चीफ साइंस एडवाईजर्स राउंडटेबल कांफ्रेंस) के लिए की जा रही है जो 26-28 मार्च को होनी है और जिसमें 30 स्वदेशी प्रतिनिधियों के साथ 70 विदेशी प्रतिनिधि हिस्सेदारी करेंगे. पंतनगर विमानपत्तन पर उतर वातानुकूलित कारों पर आरूढ़ यह काफिला बाजपुर-नयागांव से होता हुआ रामनगर की परिधि को छूते हुए सम्मेलन के लिए प्रस्थान करेगा. इस पूरी यात्रा में जितने क्षणों के लिए भी वह बाहर की ओर दृष्टि डाल सकेगा उसके सामने हमारी छवि ऐसी तो होनी ही चाहिए ना कि “वसुधैव कुटुम्बकम” की थीम पर आयोजित जी-20 समूह की अठारवीं बैठक में “वैश्विक आर्थिक मुद्दों-नीतियों और उठाये जाने वाले कदमों”संबंधी बात-बहस में हम अपने शानदार“ आभासीय-बिम्ब “ के साथ हिस्सेदारी कर सकें.
फोटो इंटरनेट से साभार