कमलेश जोशी
कभी-कभी यूँ लगता है जैसे एक स्वप्न सा चल रहा है. जिसमें एक महामारी दुनिया भर में फैली है जिस वजह से लोग घरों में कैद है. ऐसा लगता है जैसे अभी सपना टूटेगा, आँख खुलेगी और एक गहरी साँस भरते हुए दिल के किसी कोने से आवाज आएगी उफ़्फ क्या भयानक सपना था.
सपने में कई-कई बार तो यही होता है हमारे साथ कि हम खुद को बचाने के लिए छटपटा रहे होते हैं और आँख खुलते ही राहत महसूस करते हैं कि यह हकीकत नहीं है. काश कि यह महामारी सपना होती! लेकिन सपनों सी यह बीमारी जानलेवा हकीकत बन गई है जिस पर इंसान का बस नहीं चल रहा. हमारे पूरे सिस्टम की पोल इस बीमारी ने खोलकर रख दी है. साथ ही यह भी कि इंसानियत अभी मरी नहीं है. हजारों लोग हैं जो रात-दिन एक कर अपनी पूरी मदद लोगों तक पहुँचा रहे हैं.
लेकिन इस पूरी महामारी के दौरान सबसे अचंभित करने वाली जो बात है वह है स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर हमारी सरकारों की संजीदगी और घोर लापरवाही. आपको शायद याद न हो लेकिन जब चीन में महामारी फैलने की चटकारेदार खबरें भारतीय मीडिया परोस रहा था उस वक्त चीन इस महामारी से लड़ने की जद्दोजहद कर रहा था. वुहान शहर में चीन की सरकार ने 10 दिन के अंदर ही 1000 बेड का अस्पताल तैयार कर कोरोना से जंग जीतने के अपने इरादों को जगजाहिर कर दिया था. कोरोना महामारी फैलने को लेकर चीन की दुनिया भर में जबरदस्त आलोचना हुई लेकिन हमें यह बात तो स्वीकार करनी ही होगी कि सबसे पहले महामारी से प्रभावित होने के बावजूद चीन ने सबसे कारगर और प्रभावी तरीके से इस महामारी पर नियंत्रण पा लिया.
अब आते हैं भारत पर. जब चीन में कोरोना वायरस रहस्यमयी तरीके से लोगों की जान ले रहा था तब भारतीय मीडिया उसे सिर्फ एक सनसनी की तरह पेश कर रहा था. यह पहला मौका था हमारे पास अपने हैल्थ सिस्टम की खामियों को समझने और ऐसी किसी भी महामारी के आने पर उससे निपटने के लिए तैयार होने का. लेकिन हमने महामारी को सिर्फ चीन की समस्या समझकर आँखें मूँद ली. भारत में सबसे पहला केस 27 जनवरी, 2020 को केरल में आया. लेकिन इसके बावजूद हमने न तो अपनी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से आने वाले यात्रियों की किसी तरह की टेस्टिंग की और न ही उड़ानें रद्द की.
इसी दौरान महामारी ने यूरोप में पैर पसारने शुरू किये. इटली व स्पेन जैसे विकसित देशों में महामारी ने हाहाकार मचा दिया. यह दूसरा मौका था जब हमें इस महामारी की गंभीरता को समझते हुए अपने हैल्थ सिस्टम को दुरुस्त करने के काम पर लग जाना चाहिये था और समस्त अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को रद्द कर विदेशों से भारत आए तमाम यात्रियों को तुरंत ट्रेस और ट्रैक कर उनके टेस्ट कर आइसोलेट करना चाहिये था. लेकिन एक बार फिर हमसे चूक हुई और इस महामारी के दूरगामी परिणामों को भाँपने में हमारी सरकार नाकाम रही. महामारी जब भारत में तेजी से अपने पॉंव पसारने लगी और पूरे यूरोप में हाहाकार मचने लगा तो इसे देखकर हमारी सरकार को खतरे का एहसास हुआ और मार्च के अंतिम सप्ताह में बिना किसी तैयारी के देश भर में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई.
इसी बीच महामारी की लहर अमेरिका को भी अपने जद में ले चुकी थी. अमेरिका जैसा ताकतवर देश कोरोना महामारी के आगे घुटने टेक चुका था. उसका पूरा हैल्थ सिस्टम चरमरा गया था और हजारों लोग मरने लगे थे. यह तीसरा मौका था हमारे पास खुद को सतर्क कर अपने हैल्थ सिस्टम को दुरुस्त करने का. अमेरिका जैसे देश की हालत को देखकर हमें अपनी पूरी ताकत अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने में लगा देनी चाहिये थी लेकिन उस दौरान कभी हम ताली-थाली बजाते रहे और कभी दिये-टॉर्च जलाते रहे. 2020 का पूरा साल कोरोना से लड़ते हुए गुजर गया. इस दौरान अर्थव्यवस्था चरमराई, करोड़ों लोगों की नौकरी गई, लाखों की मौत हुई लेकिन हमारा हैल्थ सिस्टम जस का तस बना रहा.
विशेषज्ञों का मानना था कि कोरोना की दूसरी लहर कभी न कभी लौटकर जरूर आएगी और पहली लहर से ज़्यादा घातक होगी. बीच में कुछ समय के लिए कोरोना के केस आना कुछ कम क्या हुए हमें लगा हमने जंग जीत ली और दूसरी लहर को नजरअंदाज करते हुए हमने कोरोना को एक सामान्य बीमारी मानकर अपनी मनमानियॉं शुरू कर दी. लेकिन मार्च-अप्रैल 2021 में जैसे ही दूसरी लहर का कहर बरपा हमारे हैल्थ सिस्टम का पूरा कच्चा चिट्ठा खुल गया. हमें पूरे एक साल का समय मिला था जिसमें हम अपने हैल्थ सिस्टम को दुरुस्त कर सकते थे लेकिन हैल्थ सिस्टम पर ध्यान देने की बजाय या तो हमारी सरकारें चुनावों में व्यस्त रहीं या फिर आरोप प्रत्यारोप में. आज देश की स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह चरमरा गई हैं. अस्पतालों में न बेड हैं, न वेंटिलेटर हैं, न आईसीयू हैं और न ही ऑक्सीजन है. लोग ऑक्सीजन की कमी के चलते मर रहे हैं. शमशानों में लाशों के ढेर लगे हैं. क़ब्रिस्तानों में जगह कम पड़ने लगी है.
आम आदमी की तो बिसात ही क्या, बड़े-बड़े नेताओं को अस्पतालों में बेड के लिए गुहार लगानी पड़ रही है. सरकारों ने अपने हाथ लगभग खड़े कर दिये हैं और लोगों से अपील की जा रही है कि वह घर पर एहतियात बरतें ताकि अस्पताल तक जाने की नौबत न आए. आज आम जनता के साथ-साथ सरकारें भी असहाय महसूस कर रही हैं, सिर्फ इसलिए कि एक वोटर के तौर पर न तो कभी हमने अस्पतालों की मॉंग की और न ही हमारी राजनीतिक पार्टियों के लिए अस्पताल कभी चुनावी एजेंडा रहा. वरना साल भर का समय मिलने के बाद भी आज हम इस स्थिति में न होते कि अस्पतालों के बाहर एंबुलेंस की कतारें लगी हुई हैं और लोग बेड की कमी के कारण दम तोड़ रहे हैं.
इकॉनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट के डॉक्टर रमाकान्त पांडा कहते हैं कि कोरोना महामारी ने देश में प्राइवेट स्वास्थ केंद्रों की नाकामी को उजागर कर दिया है. सरकार को पब्लिक हैल्थकेयर सिस्टम में ज़्यादा निवेश कर उसे मजबूत करने की जरूरत है. अधिक से अधिक सरकारी अस्पताल बनाए जाने चाहिये तथा रोग प्रबंधन से ज़्यादा, स्वास्थ्य प्रबंधन, रोगियों की समझ व रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये. वर्तमान में न सिर्फ सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रबंधन को दुरुस्त व मज़बूत करने की जरूरत है बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में मानव संसाधन को बढ़ाने की भी ज़रूरत है. कोविड व नॉन-कोविड रोगियों के बेहतर ईलाज के लिए अस्पतालों में अलग-अलग ब्लॉक बनाए जाने की ज़रूरत है ताकि नॉन-कोविड रोगी खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. 24 देशों के 235 अस्पतालों में किये गए एक अध्ययन से यह सामने आया है कि यदि नॉन-कोविड रोगी को अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान कोरोना होता है तो उसके मरने के चांसेज 800 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं.
कोरोना की इस भयावह स्थिति के बाद भी अगर हमारी सरकारें स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दे पर काम करने को तैयार नहीं होती हैं तो हमारा हश्र भविष्य में भी यही होगा जो आज है. सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में सुधार के साथ ही भारतीय राजनीति को आम जनमानस के मुद्दों पर केंद्रित किये जाने की जरूरत है. धर्म, जाति, मजहब के नाम पर वोट देने की जगह शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा जैसे मुद्दों को राजनीति के केंद्र पर लाने की जरूरत है ताकि हुक्मरानों को इसके लिए जवाबदेह होने पर मजबूर होना पड़े. जिस दिन हम एक नागरिक के तौर पर जनता की मूलभूत सुविधाओं को लेकर सवाल करने लग जाएँगें उस दिन से सरकारें भी अपनी प्राथमिकताएँ बदलने लग जाएँगी और जो आज का सूरतेहाल है वह शायद बेहतर होता नजर आएगा.