आदरणीय मुख्यमंत्री महोदय
उत्तराखंड सरकार, देहरादून
महोदय,
हम उत्तराखंड उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ता गत 20 दिसम्बर को उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा बनभूलपुरा की 5 बस्तियों/वार्डो को कथित रूप से रेलवे की ज़मीन से हटाने के जो निर्णय किया है उससे बहुत आहत हैं। हमारा मानना है कि यह निर्णय उत्तराखंड की आम जनता की मानवीय त्रासदी का कारण बन रहा है।
इस निर्णय से बनभूलपुरा हल्द्वानी के निवासी अपने घरों को बचाने के लिए न्याय के लिए भटक रहे हैं। हजारों महिलाएं अपने बच्चों को लिए इस सर्दी में अपने मकानों को बचाने के लिए सड़कों आंदोलन कर रही हैं
हम न्यायालय के पूरे सम्मान के साथ उसके फैसले की आलोचना करने का हक़ रखते हैं।हम यह कहना चाहते हैं कि माननीय न्यायालय ने अपने इस फैसले में मानवीय पक्ष के साथ कानूनी और जनतांत्रिक अधिकारों की पूरी तरह अनदेखी की है। जो कि उत्तराखंड के लोक अधिकारी संगठनों को पूरी तरह अस्वीकार है।
माननीय न्यायालय ने सम्बंधित मुकदमे में मूल/ मुद्दों से इतर लीज़ भूमि पर नकारात्मक निर्णय लेकर भविष्य में आवासहीन और समाज में कमज़ोर वर्ग के लिए आवास के अधिकारों पर कुठाराघात कर दिया है। इसके अतिरिक्त बेदखली की कार्यवाही में राज्य सरकार का पक्ष और सम्बंधित विभागों जिन्होंने बनभूलपुरा के निवासियों के लिए लम्बे समय से अलग तरह की सेवाएं दी हैं ( जैसे नगर निगम, शिक्षा विभाग, जल कल विभाग, विद्युत विभाग, स्वास्थ्य विभाग,राजस्व विभाग) को पक्षकार न बनाकर एकतरफा कार्यवाही की है।
बनभूलपुरा में सबसे बड़ा मुद्दा कथित अतिक्रमण के क्षेत्र का है। रेलवे ने इस मामले में न्यायालय और प्रशासन को अंधेरे में रखा है और अब बनभूलपुरा में रेलवे और प्रशासन न्यायालय की आड़ लेकर तीन किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई पांच बस्तियों को बेदखल करने की कार्यवाही करने को उतावला है, जबकि न्यायालय के मूल आदेश में और रेलवे के द्वारा दिए गए हलफनामे में यह क्षेत्र 29 एकड़ है, तब न तो 29 एकड़ 3 किलोमीटर के बराबर होता है और ना इसमें करीब पांच हजार मकान हो सकते हैं। यहां तक कि रेल लाइन से 20/45 फुट के स्थान पर 800 फिट की दूरी के मकान भी नहीं हो सकते हैं। जबकि रेलवे किसी अदृश्य इशारे पर धींगामुश्ती करके अपनी सीमा से बाहर 100 साल से अधिक पुराने मकानों को ध्वस्तीकरण के नोटिस दे रहा है।
रेलवे द्वारा पूर्व में बताई गई 29 एकड़ कथित अतिक्रमित भूमि के अतिरिक्त ( 78 एकड़ ) 31.87 हैक्टेयर क्षेत्र में बेदखली की कार्यवाही करने के कारण कई नजूल पट्टाधारक परिवार, फ्रीहोल्ड धारक परिवार, 70-80 वर्ष पुराना शिव गोपाल मन्दिर, 50 वर्ष पुराना एक दुर्गा माता मंदिर, साहू धर्मशाला, सरस्वती शिशु मन्दिर, लगभग 8 से 10 मस्जिद, दो राजकीय इण्टर कॉलेज, दो प्राथमिक विद्यालय (एक ब्रिटिश कालीन) , एक जूनियर हाई स्कूल, लगभग आधा दर्जन निजी विद्यालय, 1970 के दशक से चल रही सीवर लाइन , नगर निगम का सामुदायिक भवन, एक सामुदायिक अस्पताल व एक ओवरहेड टैंक सहित लगभग 40 हजार से 50 हजार की जनसंख्या बेदखली की कगार पर हैं। इस हाड़ कंपकंपाती सर्दी में मकानों को तोड़कर उन्हें बेदखल करना पूरी तरह अमानवीय काम होगा।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस क्षेत्र में चलने वाले करीब एक दर्जन सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों के छात्र कहां पढ़ेंगे। उनकी व्यवस्था किए बगैर बेदखली की कार्यवाही पूरी तरह गैर ज़रूरी है।
नगर निगम के पांच वार्डो में बसने वाले यहां आजादी से पहले निवासी हैं, उनके निवास के नागरिक अधिकारों की रक्षा राज्य सरकार को आगे आना चाहिए जैसा कि देहरादून में रिस्पना नदी के किनारे रहने वालों के निवास के अधिकार सुरक्षित रखने के लिए राज्य सरकार ने अध्यादेश लाकर हस्तक्षेप किया था।
बस्ती बेदखल के फैसले से यहां पर रहने वाले हजारों वृद्ध महिला पुरूषों, महिलाओं और बच्चों का जीवन संकट में आ सकता है।
हमारा माननीय न्यायालय से निवेदन है कि वो अपने निर्णय पर पुनर्विचार करके इस मानवीय संकट को टालने की कृपा करें। यह ध्यान दिलाना चाहेंगे कि अभी भी रेलवे बनाम यहां के निवासियों से सम्बंधित 1 हजार से अधिक मुकदमें जिला न्यायालय में चल रहे हैं, उनको दरकिनार करके माननीय न्यायालय ने यह दूसरे केस में फैसला दिया है, जिसमें माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 1 नवम्बर 22 के निर्देशों की भी अनदेखी की गई है।
राज्य सरकार से आग्रह है कि बनभूलपुरा क्षेत्र को मानवीय संकट मानकर वहां के निवासियों के आवासीय, शैक्षिक स्वास्थ्य सेवा आदि के अधिकारों की रक्षा के लिए तुरंत हस्तक्षेप करे, यदि इसके लिए आवश्यक अध्यादेश लाने की महती कृपा करें
हम हैं उत्तराखंड के लोक अधिकार संगठन