डॉ योगेश धस्माना
चीन में संपन्न अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय एथेलटिक प्रतियोगिता में उत्तराखंड की गोल्डन गर्ल , मानसी नेगी को ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद जहां जनता में उत्साह देखा जा रहा है वहीं हमारी सरकार अब तक मौन क्यों है ? चमोली जनपद की मानसी नेगी इसके साथ ही परमजीत और पिथौरागढ़ के उन्मुक्त चंद , साथ ही देहरादून के क्रिकेटर दिव्यांशु खंडूरी को जब राज्य सरकार और हमारे निजी संस्थान इन प्रतिभाओं को रोकने में असफल रहे तभी इन्ही खिलाड़ियों में बाहरी राज्यों में अपनी भविष्य की संभावनाओं को तलाशा ।
अंतरराष्ट्रीय धाविका , मानसी नेगी को जब प्रदेश भर के विश्वविद्यालय और सरकार सम्मान और स्पॉन्सरशिप नही दे सकी तब इस खिलाड़ी को मजबूरी में चंडीगढ़ की लवली यूनिवर्सिटी ने हाथों हाथ लेकर प्रोत्साहित करते हुए चीन में चल रही प्रतियोगिता में भाग लेना का अवसर दिया । अब मानसी की सफलता चंडीगढ़ के खाते में है ना ही उत्तराखंड के खाते में । इसी तरह क्रिकेटर प्रियांशु भी उत्तराखंड की खेल नीति का शिकार होने के कारण हिमाचल जाके रणजी खेलने गया ।
इसी तरह अर्जुन पुरस्कार विजेता सुरेंद्र कनवासी भी सरकार की उपेक्षा के चलते गौचर में ढाबा चलाने के लिए मजबूर हैं । राज्य बनने के 23 वर्षों के बाद भी सरकार के पास कोई स्पष्ट खेल नीति नही है । साथ ही अभी तक राज्य में पंजाब या हरियाणा की तरह भारतीय खेल प्राधिकरण के कोचिंग सेंटर और प्रशिक्षकों की बहुत कमी है। भ्रष्टाचार के कारण हमारी खेल प्रतिभाएं बीच में ही दम तोड़ देती हैं। मानसी और परमजीत खिलाड़ियों की कहानी भी इसी तरह की है। इनके कोच रहे अनूप नेगी और गोपाल बिष्ट के निजी प्रयासों के बदौलत ये खिलाड़ी एक्स अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच चुके हैं।
क्या हमारी सरकार इन प्रतिभाओं को अपने ग्रह राज्य में वापस बुलाकर नए खिलाड़ियों के लिए कोई रणनीति बना पाएगी ? मानसी की सफलता पर उत्तराखंड सरकार द्वारा उसे बधाई न दिए जाना बहुत दुखदाई है ।