व्योमेश चन्द्र जुगरान
उमेश डोभाल स्मृति समारोह के 31 वें संस्घ्करण को इस नजरिये से भी असाधारण कहा जाना चाहिए कि इतनी लंबी अवधि तक किसी संगठन/ट्रस्ट का संचालन सुचारु ढंग से जारी है। व्यय और वक्त की परवाह न करते हुए दूर-दूर से आए लोगों की उपस्थिति और स्थानीय सहभागिता हर बार समारोह की शान में चार चांद लगा देती है।
इस बार यह समारोह 8-9 अप्रेल को टिहरी के चमियाला में हुआ और उत्तराखंड के चप्पे-चप्पे से पत्रकार, संस्कृतिकर्मी, समाजसेवी और जनाधिकार कार्यकर्ता यहां पहुंचे। चमियाला बालगंगा घाटी की नयनाभिराम उपत्यका में बसा एक छोटा सा कस्बा है जो इस क्षेत्र के कर्मयोद्धा और रचनाधर्मी स्वर्गीय श्री त्रेपन सिंह चौहान की जन्म एवं कर्मस्थली है। इस बार समूचा समारोह विविध स्थानीय रंगों और श्री चौहान की स्मृतियों से ऊर्जावान रहा।
9 अप्रेल को मुख्य समारोह के प्रथम सत्र में ‘मीडिया और इसकी स्वतंत्रता’ पर केंद्रित गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे ‘नैनीताल समाचार’ के प्रधान संपादक राजीव लोचन साह ने स्मृतिशेष त्रेपन सिंह चौहान को याद करते हुए उन्हें जिजीविषा का एक सैंदिष्ट रूप कहा। उन्होंने बताया कि अपने आखिरी सालों में त्रेपन चौहान असाध्य बीमारी से जूझते रहे, पर उन्होंने अपना रचनाकर्म नहीं छोड़ा। जब हाथ चलने बंद हुए तो बोलकर लिखने वाले कप्यूटर सॉफ्टवेयर का उपयोग किया और जुबान भी बंद हो गई तो पुतलियों के इशारे को शब्दों में ढालने में समर्थ आधुनिक सॉफ्टवेयर का सहारा लिया। राजीव दा ने बताया कि अनेक लोग उनकी रचनाओं/विचारों से प्रभावित थे। इनमें राहुल गांधी का भी नाम हैं जिन्होंने बातचीत के लिए त्रेपन को बुलावा भेजा। फरीदाबाद के एक पुलिस अधिकारी ने तो त्रेपन के उपन्यास और अन्य रचनाओं को छापने का बीड़ा उठाया।
राजीव दा ने विषय को संबोधित करते हुए कहा कि मीडिया सामंती पृष्ठभूमि से कूदकर पूंजीवाद की तरफ आया है और आज सत्ताधारियों का बड़ा हथियार बन गया है। उन्होंने कहा कि एक ओर गोदी मीडिया काफी ताकतवर हो चुका है, वहीं जिस वैकल्पिक मीडिया को उसके पांव पर खड़ा नहीं होने दिया जा रहा। सरकार की दरबारी ताकतें वहां भी हस्तक्षेप से बाज नहीं आ रही हैं।
सत्र के बीजवक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल ने वर्तमान सरकार पर मीडिया और मीडियाकर्मियों को कुचलने और मीडिया के मनमाने उपयोग को साजिशन बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वर्तमान सत्ताएं मीडिया का उपयोग अपनें हित में रचे जा रहे बड़े षडयंत्रों के लिए कर रही हैं। लेकिन उन्होंने आशा जताई कि यह सब अधिक देर तक टिकने वाला नहीं है। इस सत्र को प्रभात घ्यानी, विमल नेगी, शंकर गोपाल, शंकर भाटिया, अरुण कुकसाल, गंगा असनोड़ा, माया चिलवाल, आनंद प्रसाद व्यास और व्योमेश जुगरान इत्यादि ने भी संबोधित किया। सत्र के कुशल संचालक वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी थे। सभी ने इस मौके पर पुरस्कार से सम्मानित होने वाले साथियों को जमकर बधाई दी।
त्रेपन बनाम ‘तिरेपन’
बात सन 83 की है। मैं दिल्ली में रहते हुए एच.एन बहुगुणा की पार्टी लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के मुखपत्र के लिए कुछ एसाइनमेंट कर दिया करता था। मैंने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री मीर कासिम का इंटरव्यू किया और टिहरी के सांसद त्रेपन सिंह नेगी का भी। नेगीजी वाले इंटरव्यू में नाम त्रेपन की बजाय ‘तिरेपन’ छप गया। संपादक रजनीकांत वर्मा मुझ जैसे नवोदित फ्रीलांसर पर बुरी तरह गरम हो गए और मैं उनके कंट्रीब्यूटर्स की सूची से बाहर हो गया। दो-ढाई सौ रुपये जो माह में मुझे मिल जाया करते थे, वे इस त्रेपन बनाम तिरेपन के चक्कर में तिरोहित हो गए। तब से इस नाम और संख्या (53) को लेकर मैं एक अजीब से उलझाव में रहा। लेकिन इधर दो-चार पहले इसी नाम की एक शख्सियत त्रेपेन सिंह चौहान के बारे में पढ़ा और सुना तो अचंभित करने वाली एक मिसाल इस नाम से जुड़ गई। गूगल में त्रपेन के हिन्दी माइने सर्च किए तो शब्दकोश की एक साइट में ‘तिरेपन’ का अर्थ लकड़ी पर सूराख करने वाले लोहे के घुमावदार पारंपरिक औजार बरमा लिखा मिला। यह रुचिकर था क्योंकि किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को मथने वाली काया के रूप में त्रेपन सिंह चौहान से बढ़कर दूसरी शख्सियत और कौन होगी। इस बार यदि इसी शख्स की जन्म और कर्मस्थली बालगंगा घाटी के चमियाला में उमेश डोभाल स्मृति समारोह संपन्न हुआ तो इस नारे की सार्थकता और बढ़ जाती है- ‘उमेश डोभाल इक व्यक्ति नहीं, इक धारा थी इक धारा है…..।
– व्योमेश
इस बार ‘उमेश डोभाल स्मृति सम्मान’ जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती को दिया गया। प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका के लिए टनकपुर के हिमांशु जोशी, इलेक्टॉनिक्स मीडिया के लिए चंपावत के कमलेश भट्ट और सोशल मीडिया के लिए देहरादून के जयदीप सकलानी को दिया गया। दो अन्य महत्वपूर्ण सम्मानों के रूप में ‘राजेन्द्र रावत राजू जनसरोकार सम्मान’ शिप्रा कल्याण समिति नैनीताल के जगदीश नेगी और ‘गिरीश तिवारी गिर्दा’ सम्मान बागेश्वर के भास्कर भौर्याल को दिया गया।
दो दिवसीय इस आयोजन का स्थानीय दायित्व त्रेपन सिंह चौहान के ‘चेतना आंदोलन’ से जुड़ी चेतना समिति ने उठाया। समारोह का पहला दिन खूब हलचलभरा रहा और स्थानीय लोगों की अपार भागीदारी के बीच देर रात तक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। इनमें खासकर मंच और मंच के बाहर खचाखच भरे पंडाल में स्कूली बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था। इससे पूर्व सायंकाल में उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट की ओर से परंपरा का निर्वहन करते हुए मुख्य बाजार में सांस्कृतिक जुलूस निकाला गया जिसमें पौड़ी के जन नाट्य दल ‘नवांकुर’ के कलाकारों के साथ मिलकर सभी ने जनगीत गाए और उमेश डोभाल, त्रेपन चौहान, राजू रावत, गिर्दा और ललित कोठियाल को नारों के साथ याद किया। ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविन्द पंत राजू तथा अन्य ट्रस्टी आशीष नेगी, रवि रावत, सुरेंद्र रावत सूरी, यमुना राम और सत्यनारायण रतूड़ी इत्यादि के नेतृत्व में निकले सांस्कृतिक जुलूस का चमियाला वासियों ने कौतूहल पूर्वक स्वागत किया।
निश्चित ही उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट के अध्यक्ष जाने-माने पत्रकार गोविन्द पंत राजू और उनकी टीम ने स्थानीय ’चेतना समिति’ के सहयोग से पूरे आयोजन को यादगार बना दिया। वह क्षण अद्भुत था, जब मंच पर इस क्षेत्र के प्रसिद्ध पारंपरिक लोकगायक और ढोल वादक वयोवृद्ध शिवजनी और उनके सहायक को मंच पर स्मृति चिन्ह और शाल देकर सम्मानित किया गया। आयोजन के सबसे महत्वपूर्ण सत्र यानी पुरस्कार वितरण सत्र की अध्यक्षता भी शिवजनी को ही नवाज़ी गई। श्री शिवजनी 1956 में राजपथ पर निकली गणतंत्र परेड में उत्तराखंड से आई लोक नर्तकों की टोली के सदस्य थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर भी उनके ढोल वादन का जादू छा गया और कहते हैं कि वे थिरक उठे। पुरस्कार सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार व इतिहास वेत्ता श्री योगेश धस्माना ने किया।
आयोजन में स्व. बी मोहन नेगी, आशीष नेगी व प्रदीप रावत के पोस्टर प्रदर्शनी व विनीता यशस्वी की फोटो प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी जिसे वहाँ आये लोगों ने काफी सराहा। इस दौरान कुछ बुक स्टॉल भी लगाये गये थे।