पृथ्वी ‘लक्ष्मी’ राज सिंह
अपने पहले टर्न में मोदी सरकार… माफ किजिऐगा! टर्न यानि पलटी मारना मनमोहन सरकार की ख़ासियत थी। मोदी सरकार के संदर्भ में इसे डंके की चोट वाले कार्यकाल के अर्थ में पढ़ियेगा।
हाँ तो मैं कह रहा था कि अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार डाल-डाल चल रही थी। उस वख्त जो भी निर्णय लिये गये वह राष्ट्रीय स्तर पर लिए व राष्ट्रीय स्तर पर ही भुनाये गये।
अपने दूसरे कार्यकाल… माफ किजियेगा! पहले- दूसरे जैसे क्रम में इनका आंकलन बेइंसाफी होगी। ये तो काल खंड की सबसे बड़ी खगोलीय घटनाओं के माफिक कार्यकाल हैं अतः इनके लिए भूत, वर्तमान जैसे विशेषणों का ही उपयोग किया जाना चाहिए। ताकि आने वाले भविष्य को लेकर कोई आशंका ही न रहे, पहले ही उसका आना राष्ट्रहित में मान लिया जाए।
हाँ तो मैं कह रहा था कि अपने वर्तमान कार्यकाल में मोदी सरकार पात-पात चल रही है। इस वख्त जो भी निर्णय लिये जा रहे हैं वह प्रांतीय स्तर पर भांजे व राष्ट्रीय स्तर पर भुनाये जा रहे हैं।
इस वख्त में पहले सैन्य बलों का घेरा डाला जा रहा है फिर उस घेरे में सरकारी निर्णय डाला जा रहा है।
जैसा हम अक्सर फिल्मों में देखते हैं कि “खबरदार! आपको पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया है” मलप घेरे की अपनी सीमा होती है। बालीवुड की टॉप माइका-लालम-लाल फिल्म में भी यह डायलाग संभव नहीं है कि देशभक्त हीरो टाइप अफसर बहती हवा को गोली मार कर कह दे “खबरदार! सेना ने आपके देश को चारों तरफ से घेर लिया है”
घेरने की यह सीमा सरकार बखूबी जानती है इसीलिए वह पात-पात चल रही है। जैसे सब छोटा होकर आज आपके मोबाइल में समा गया है, हमें भी इस सरकारी चाल को वैज्ञानिक तरीके से देखना चाहिए।
मैं तो कहूंगा हमें इसे मेकिग इंडिया की सफलता के रुप में देखना चाहिए। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि भविष्य के कार्यकालों में सरकार पहले इसे आपकी जड़ फिर बीज तक लेके जाये और आप उस सरकार की अमठिये की जड़ भी ना हिला पायें, उखाड़ पायें कहना अतिश्योक्ति होगी, देशद्रोह होगा।
हमारी राष्ट्रनिष्ठा का इससे बड़ा क्या सबूत होगा भला कि महा क्रिकेट के कुंभ से बाहर होने के बाद हम गमगलत करने के लिए टीवी में आम्रपाली जैसी किसी रक़्क़ासा के कोठे या हाऊसिग घोटाले में पड़ मजा नहीं ले रहे थे।
हम धौनी की सैनिक रंगरलियों में व्यस्त थे।
हम अपने समय के बेहतरीन कांवड में मस्त थे, मानो शेष सैय्या में थे, दिव्य शासन हमारे पांव चाप रहा था। कि अचानक सरकार ने कश्मीर में चल रही अमरनाथ यात्रा बंद कर दी। वहाँ भारी सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी।
मन को आतंकित आशंका से भर दियाI लगा कि कोई सूचना है। पुलवामा जैसा कुछ होने जा रहा है। पांच इंद्रियां कह रही थी सरकार इस बार बियर ग्रिल के नहीं सैन्य ड्रिल के मूड में है।
छठी इंद्री फुसफुसा रही थी कि बेटे सरकार नोटबंदी जैसा छठी का दूध पिलाने के मूड में है।
आजकल समाचार देखने, सुनने जैसा रह नहीं गया है। टीवी म्यूट कर फेसबुक, वाट्सअप में लगा रहता हूँ एक पंथ दो काज हो जाते हैं। बीच बीच में लक्ष्मी की हूं में हाँ कहते हुए टीवी पढ़ लेता हूं। खबरें मुझ तक ऐसे ही आती हैं।
“कश्मीर में भारी सुरक्षा बल की तैनाती!”
“एम्स में भारी पुलिस बल की तैनाती!”
मन बेचैन हो जाता है, मुझे तीन सौ सत्तर और सुषमा जी दोनों के जाने का अफसोस है। वह एक लाइट हाउस की तरह थी, जनता को उनसे बहुत उम्मीदें थी।
उम्मीद जिसे कभी हम आडवानी से रखते थे पर अब वह धीरे धीरे धृतराष्ट्र के करेक्टर में जा रखते हैं। हमारी उम्मीदें अभी भी एक बिलास्त भर राजनाथ पर टिकी हैं।
माफ किजियेगा! अब अगस्त भी बहुत खतरनाक होता जा रहा है। पिछली बार लाल किले भर के फासले में अटल जी चले गये, अबकि सुषमा जी!