विनीता यशस्वी
नैनीताल से पैदल जाने पर मात्र 3 किमी. की दूरी पर है खूपी गाँव और यदि सड़क मार्ग यहाँ जाना हो तो इसकी दूरी नैनीताल से 18 किमी. हो जाती है। सन् 1993 की तेज बारिश के बाद से ही यह गाँव लगातार भू धँसाव की मार झेल रहा है, जिसके चलते यहाँ के लोगों को हर समय यह चिन्ता ही सताती रहती है कि न जाने कब उनका घर भी भू धँसाव की चपेट में आ जाये।
अभी कुछ दिन पहले ‘नैनीताल समाचार’ के सम्पादक के साथ इस गाँव के हालात को समझने का मौका मिला। खूपी गाँव के रहने वाले विरेन्द्र पाल और प्रदीप कुमार हमें अपना गाँव दिखाने ले गये। उन्होंने बताया कि इस साल अक्टूबर की बारिश में उनके गाँव की हालत और भी खराब हुई है। उन्होंने भूमियाधार में सड़क के किनारे गाड़ी रोक कर हमें अपने गाँव की स्थिति दिखायी। यहाँ से खूपी गाँव ठीक सामने दिखता है। इस जगह से देखा जा सकता था कि खूपी गाँव के नीचे से पाइन्स नाला बहता है जो इस गाँव को नीचे से काटता जा रहा है। यह कटाव दूर से देखने पर साफ नजर भी आ रहा है, क्योंकि गाँव नीचे को खिसका हुआ भी दिख रहा है और जहाँ-तहाँ बड़े-बड़े भू धँसाव भी दिख रहे हैं। लीलाधर जी का मकान तो बिल्कुल इस भू धँसाव की ज़द में ही है। जब कभी भी तेज भूस्खलन होगा तो यह मकान टूट कर गिर जायेगा। लीलाधर जी के मकान के कुछ ऊपर महेन्द्र पाल का मकान है। यह मकान भी दूर से देखने में तिरछा झुका हुआ दिखायी दे रहा था।
प्रदीप कुमार ने बताया कि खूपी, भूमियाधार, कुरियागाँव, गेठिया पड़ाव, आलूखेत, कैंट एरिया कैलाखान, बिडला क्षेत्र और अक्सौड़ा गाँव भू धँसाव की ज़द में हैं। यह नाला बारिश के दिनों में बहुत विकराल हो जाता है और उस दौरान जमीन के कटने की गति भी बढ़ जाती है। गाँव के ऊपर की चट्टान दरकने के कारण गाँव में पत्थर भी गिरते रहते हैं। फिलहाल तो अभी तक पत्थर गिरने से कोई जनहानि नहीं हुई है, पर हमेशा ऐसा ही होगा ये नहीं कहा जा सकता है। गाँव के ऊपर आर्मी का कैलाखान हैलीपैड है। उसमें भी दरारें आ रही हैं। गाँव के बीच से पाइन्स-कुरियागाँव नहर निकलती है। वह भी जगह-जगह पर टूट जाने के कारण काफी सालों से बंद है।
विरेन्द्र और प्रदीप कुमार ने बताया कि इसी गाँव में रहना हम सब की मजबूरी है, क्योंकि सबने अपनी जमा पूँजी से गाँव में मकान बनाया है और खेती-बाड़ी की जमीन को आबाद किया है। अब किसी के भी पास इतना पैसा नहीं है कि सब कुछ यहाँ छोड़ के दूसरी जगह चले जायें। आगे हनुमान मंदिर के पास हमें एक नाला दिखाया गया, जो ऊपर की पहाड़ी से आता है और खूपी गाँव के बगल से निकल के नीचे मुख्य पाइन्स नाले में मिल जाता है। इस नाले को 52 डांठ नाला कहते हैं। यह नाला भी बरसात के दिनों में भयंकर रूप ले लेता है और खूपी गाँव को किनारे से काटता हुआ नीचे की ओर बहता है। इसके कारण खूपी गाँव इस किनारे से भी कट रहा है। यहाँ देखा तो सड़क भी किनारे से नीचे की ओर धँसी हुई थी और उसमें दरारें पड़ी हुई थीं।
सड़क से लगे एक खडं़जे से होते हुए हम नीचे गाँव की ओर गये। खूपी गाँव दो हिस्सों में बँटा हुआ है। सड़क के नीचे तल्ला खूपी और सड़क के ऊपर मल्ला खूपी। तल्ला खूपी में 60 के आसपास परिवार रहते हैं और मल्ला खूपी में 45। तल्ला खूपी इस भू धँसाव से ज्यादा प्रभावित है जबकि मल्ला खूपी के सड़क से लगे परिवार इस भू धँसाव के ज़द में हैं। तल्ला खूपी की ओर जाते हुए प्रदीप कुमार ने बताया कि यह भू धँसाव आज से नहीं बल्कि 1993 से शुरू हो गया था। उस समय 11, 12 और 13 सितम्बर को जो भयंकर बारिश हुई उससे अंग्रेजां के जमाने में बनी मुख्य पाइन्स नाले की रिटेनिंग वॉल टूट गयी और उसके बाद से लगातार भू धँसाव हो रहा है। इस नाले में बरसात के दिनों में दूसरे छोटे नाले भी आकर मिल जाते हैं, जिससे इसमें पानी का बहाव बहुत बढ़ जाता है और यह नाला बहुत तेजी से नीचे की जमीन को काटता है और गाँव नीचे की ओर धसकते रहता है।
गाँव की ओर को जाते हुए यह देखा भी जा सकता है कि साइड की जमीन भी नीचे की ओर धँस रही है। ग्रामीणों ने बताया कि जमीन को रोकने के लिये गाँव वालों ने अपनी तरफ से पेड़ भी लगाये हैं पर उससे भी कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। जो पेड़ लगाये हैं वे भी नीचे की ओर खिसकने लगे हैं। किसी भी उपाय से जमीन का खिसकना रुक नहीं रहा है। यहाँ पर भी एक घर है और यह भी नीचे की ओर खिसका हुआ है। तल्ला खूपी में आज तक सरकारी पानी की लाइन नहीं आयी है, जबकि उनके गाँव के पानी के स्रोत से दूसरे गाँवों को पानी का लाईन गयी है। सिर्फ तल्ला खूपी के सरकारी प्राइमरी स्कूल में पानी की लाईन जो वर्तमान में क्षतिग्रस्त है। मगर ग्रामीणों के घरों में पानी का कोई भी सरकारी कनेक्शन नहीं है। गाँव वालों ने अपने खर्चे से पानी की एक लाइन ले रखी है और उसी से ही लोगों ने अपने-अपने लिये कनेक्शन लिये हुए हैं। गाँव में हमेशा पानी की कमी रहती है और गर्मियों में तो स्रोत में ही पानी इतना कम हो जाता है कि लोगों को पीने का पानी भरने तक के लिये रात-रात भर जागना पड़ता है। हालांकि मल्ला खूपी में पूरे गाँव के लिये एक सरकारी पानी की लाइन है, पर वह भी एक वर्ष से बंद पड़ी है। तल्ला खूपी में तो वह भी नहीं है।
आगे बढ़ने पर दो मकान और दिखाई दिये। इनमें से एक मकान बाल किशन का है और दूसरा मकान आनन्द प्रकाश जी है। इस समय ये लोग काम से बाहर गये हुए थे नहीं तो इनसे भी कुछ बातें हो सकती थी। इन दोनों ही मकानों और बरामदों में पड़ी दरारों को साफ देखा जा सकता है। जमीन भी नीचे की ओर झुकी हुई दिखायी दे रही है। इसके आगे केशव राम का मकान है, परन्तु वे काफी पहले ही इस मकान को छोड़ के भीमताल जा चुके हैं। अब उनके मकान में प्यारे लाल जी आकर रह रहे हैं। प्यारे लाल का मकान इसी गाँव में नीचे की ओर है, जो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। इसलिये अब उन्होंने इस मकान में शरण ली है। इस मकान की भी नीचे की मंजिल हल्की-हल्की तिरछी होने लगी है।
यहाँ से नीचे जाने पर एक जगह पानी का एक पाईप दिखा, जिसमें से बहुत से लोगों ने अपने-अपने घरों के लिये कनेक्शन लिये हुए थे। जिसे पानी की जरूरत होती है तो वह दूसरे का कनेक्शन निकाल कर अपने घर के कनेक्शन को लगा देता है। अब यह पानी की लाइन भी नीचे की ओर धँसनी शुरू हो गयी है। प्रदीप कुमार ने बताया कि जमीन धँसने के कारण पानी के स्रोत भी गायब होने लगे हैं। कभी-कभी तो ये दूसरी जगह दिखते हैं, परन्तु अनेक बार पता ही नहीं चलता कि पानी अंदर ही अंदर कहाँ चला गया है। ये भी भय रहता है कि कभी अचानक ही स्रोत कहीं से फूट गया और वह कोई गंभीर हादसा न कर दे। ‘घर-घर नल’ योजना के बारे में ऑनलाइन पोर्टल से पता किया। उसमें लिखा था कि कार्य प्रगति पर है। परन्तु जमीन में तो कुछ कार्य होता दिख नहीं रहा है। इसलिये पोर्टल में प्रदीप कुमार जी ने लिख दिया कि मैं इस कार्यवाही से असंतुष्ट हूँ। उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ।
नीचे उतरते हुए वह मकान दिखाई दिया जिसमें प्यारे लाल जी पहले रहते थे। अब यह मकान बिल्कुल खंडहर हो चुका है और इसके आस-पास की पूरी जमीन नीचे की ओर खिसक गयी है। यहाँ से हम नीचे नाले की ओर जाना चाहते थे पर यह रास्ता अब इतना खराब हो चुका है कि नीचे जा पाना संभव नहीं हुआ। यहाँ भी जो पेड़ हैं सब झुक हुए हैं। जमीन लगातार धँसती जा रही है। थोड़ा ऊपर महेन्द्र जी का घर है। उनकी गौशाला का एक हिस्सा पूरा टूट चुका है, जिसे जैसे-तैसे ठीक करने की कोशिश की गयी है। मगर अब फिर से इसमें दरारें आने लगी हैं।
महेन्द्र जी के घर के बाहर भैंसें बंधी हुई हैं और मुर्गी के दड़बे में कुछ मुर्गियाँ भी हैं। पूछने पर पता चला कि यहाँ अभी भी प्रत्येक परिवारों में जानवर पाले जाते हैं। गाँव की अपनी एक डेयरी है, जिसमें प्रतिदिन लगभग 70-80 लीटर दूध गाँव वालों के द्वारा भेजा जाता है। डेयरी से उन्हें दूध की गुणवत्ता के आधार पर 30 से 35 रुपये प्रति लीटर की कीमत मिल जाती है। इस गाँव का मुख्य व्यवसाय खेती-किसानी और जानवर पालना ही रहा है इसलिये प्रत्येक परिवार इस कार्य से मुख्य रूप से जुड़ा हुआ है। हमें दिखाया गया कि अब जो जमीन नीचे की ओर धँस चुकी है, पहले वे सब खेत हुआ करते थे। इसमें खूब अच्छी फसल होती थी। मिट्टी की उर्वरता अच्छी होनी के कारण यहाँ सब्जियाँ अत्यधिक मात्रा में होती थीं और फलों में माल्टा और नींबू के लिये यह जगह बहुत ही अच्छी थी। उस समय न पानी की कोई समस्या थी और न ही भू धँसाव की। अब धीरे-धीरे सारी जमीन खिसकने लगी है। जमीन के कटाव को रोकने के लिये लोगों ने यहाँ नीबू और माल्टा के अलावा नदी की ओर को बांज, खिरसू जैसे कई प्रजातियों के पेड़ लगाये, फिर भी भू धँसाव नहीं रुका, बल्कि जमीन पेड़ों समेत नीचे की ओर खिसकती चली गयी और गाँव की उपजाऊ भूमि दिन पर दिन बंजर होती चली गयी।
महेन्द्र पाल के घर के सामने बिजली का खम्बा तो है। उससे बिजली आती भी है, पर वह खम्भा बिल्कुल टेढ़ा हो चुका है। ऐसा ये अकेला खम्बा नहीं है इसके अलावा भी कई बिजली के खम्बे धंसे हुए हैं जिनकी तारें हवा में झूलते हुए बड़े खतरे के संकेत देती हैं। प्रदीप कुमार ने बताया कि बिजली विभाग को कई बार शिकायत लिख के दे दी गई है। परन्तु कुछ नहीं होता। ग्रामीणों की शिकायत है कि वर्षा व हवा का जरा सा झोंका भी आता है तो बिजली के तार हिल के चिपक जाते हैं और पूरे गाँव की बिजली चली जाती है। बिजली विभाग के लोग तारों को फिर से उसी तरह जोड़ के चले जाते हैं। लेकिन खम्भों व तारों की समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं करते।
नदी-नालों के काटव के कारण तो भू धँसाव हो ही रहा है, परन्तु इन लोगों ने अपनी एक समस्या और बतायी। दूसरी जगह से, जहाँ निर्माण कार्य चल रहा हो, लोग ट्रकों में भरकर मलबा व कूढ़ा लेकर आते हैं और रातों-रात इनके गाँव में डाल कर चले जाते हैं। यह मलबा भी किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है। ग्रामीणों ने इसकी भी शिकायत कई बार की, परन्तु कुछ हुआ नहीं।
ग्रामीणों ने हमें बताया कि खूपी गाँव की बसासत सन् 1880 के दशक से शुरू हुई। पहाड़ के इलाकों से लोग आकर यहाँ बसने लगे। ज्यादातर यहाँ अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ से लोग आकर बसे। इन लोगों का मानना है कि जब यह जगह अच्छी थी इसीलिये हमारे बुजुर्ग यहाँ आकर बसे और उन्होंने इस जगह को आबाद किया। हालात खराब होना तो सन् 1993 से हुए और उसके बाद से इस गाँव के दिन ही पलट गये। इतने वर्षों से जो लोग यहाँ रह रहे हैं वे पैसे के अभाव में यहाँ छोड़ कर अन्यत्र नहीं बस सकते। इस गाँव में रहना इन लोगों की मजबूरी है।
शासन-प्रशासन के स्तर कई बार ग्रामीणों को दूसरी जगह बसाने का आश्वासन भी दिया गया। इन लोगों को ज्योलीकोट के गांजा और बेलुवाखान में जमीनें दिखाई गयीं। एक बार रानीबाग के पास अमृतपुर में विस्थापित करने का वादा किया गया। मगर मामला वहीं का वहीं अटका हुआ है। गाँव वालों के पास अपनी जमीनों के पक्के कागजात हैं। जमीनें उनके नाम में भी चढ़ी हुई हैं। सन् 1993 में पहला हादसा होने के बाद से ही यहाँ के लोगों ने गाँव के नीचे से बहने वाले मुख्य पाइन्स नाले का ट्रीटमेंट करने की माँग करनी शुरु कर दी थी। इन लोगों के आवाज उठाने के बाद लगभग सभी अधिकारी और जनप्रतिनिधि इनके गाँव में आये।फिर भी कुछ नहीं हुआ। 2013 में तत्कालीन जिलाधिकारी अरविन्द सिंह ह्यांकी ने गाँव का दौरा करने के बाद संबंधित विभाग को निर्देश दिये कि शीघ्र भूगर्भीय निरीक्षण कर प्राकल्लन तैयार करें जिसमें सिंचाई विभाग द्वारा 7.44 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार कर शासन को भेज दी गयी जो आज तक संभवतः फाइलों में बंद होगी। आज के जिलाधिकारी धिराज गर्ब्याल एस.डी.एम. रहते हुए और आज के आयुक्त दीपक रावत जिलाधिकारी रहते हुए यहाँ आ चुके हैं। पूर्व सांसद के.सी. बाबा और पूर्व विधायक खड़क सिंह बोहरा समेत कई नेता खूपी आये हैं। परन्तु हालात आज भी जस के तस बने हुए हैं।
महेन्द्र पाल जी के घर में हर जगह दरारें हैं। नीचे के कमरे के पूरे फर्श पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं जिनको उन्होंने दरी के नीचे छुपा कर कमरे को रहने लायक बनाया हुआ है। उन्होंने बताया कि अमूमन यही हालत गाँव के अन्य मकानों की भी है। प्रदीप जी का घर यहाँ से नीचे की ओर है और बताया गया कि नीचे की ओर लगभग 20 परिवार अभी भी रह रहे हैं जिनके घर की स्थिति भी ऐसी ही है। यहाँ एक मकान और दिखा जो अब उजाड़ हो गया है क्योंकि मजबूरी में उन्हें इस जगह को छोड़ कर जाना ही पड़ा।
यहाँ से आगे का रास्ता तो बुरी तरह टूटा हुआ था। एक जगह सी.सी मार्ग ऊपर था और दूसरे छोर पर धँसते-धँसते बिल्कुल नीचे आ गया था। वीरेन्द्र ने बताया कि एक समय में यह दोनों हिस्से आपस में एक लेवल पर थे पर अब खिसकते-खिसकते ऐसी स्थिति बन गयी है कि उक छोर इतना ऊपर है और दूसरा छोर इतना नीचे। वीरेन्द्र का कहना था कि जब सड़क लेवल पर थी तो वो ऊपर मुख्य सड़क से अपने घर तक बाइक में आ जाते थे। अब कोई सोच भी नहीं सकता है कि यहाँ बाइक आती होगी। इस रास्ते से थोड़ा आगे बड़े ही थे कि बुरी तरह क्षतिग्रस्त एक मकान दिखायी दिया। यह मकान गोविन्द लाल आर्या जी का है। इस मकान को देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि भूधँसाव ने यहाँ किस कदर नुकसान पहुँचाया है। इस मकान की बुनियाद तक दिखायी देने लगी है। एक समय था जब इस मकान के आंगन तक चौपहिया गाड़ी आ जाया करती थी। अब यह मकान बिल्कुल खंडहर में बदल चुका है। सन् 2010 के बाद उन्हें न चाहते हुए भी इस मकान को छोड़ कर अन्यत्र जाना पड़ा।
यहाँ से आगे जो सीसी मार्ग ऊपर की ओर जा रहा है उसमें भी बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी हुई हैं। आगे एक मैदान की ओर इशारा करके हमें बताया गया कि पहले यहाँ पर प्राइमरी स्कूल था, जो भू धँसाव की भेंट चढ़ गया। अब इस स्कूल का नामोनिशान तक इस जमीन में नहीं मिलता है। सन् 2011 में इस प्राइमरी स्कूल को यहाँ से शिफ्ट करके कुछ ऊपर बना दिया गया है। रविवार का दिन होने के कारण स्कूल बंद था, पर गेट खुला होने के कारण हम इसके अंदर चले गये। बाहर से देखा तो इस नये बने स्कूल की दीवारों में भी दरारें पड़ी हैं और फर्श में भी दरारें दिखायी दे रही हैं। इस स्कूल में इस समय अब मात्र 13-14 बच्चे ही पढ़ते हैं और 2 शिक्षक हैं। यहाँ से ऊपर देखने पर साफ नजर आ रहा था कि बरेली-कर्णप्रयाग राष्ट्रीय राजमार्ग नीचे की ओर झुका हुआ है। रास्ते में भी कई मकान दिखे जिनमें दरारें पड़ी थी। फर्क सिर्फ इतना था कि दिवाली के समय सबने घरों में पुताई करवाई है इसलिये दरारें ढकी हुई हैं पर बारिश के समय ये दरारें विकट रूप में दिखायी देती हैं। यहाँ से सामने अक्सौड़ा गाँव भी है और ये गाँव भी भूधँसाव की ज़द में है। अब इस गाँव में मात्र 4-5 परिवार ही रह गये हैं बाकी लोग यहाँ से दूसरी जगह चले गये हैं। यहाँ से नीचे देखने पर आसानी से नजर आ रहा है कि जमीन नीचे को धँस रही है। इस कारण इन जमीनों में अब कुछ भी खेती नहीं की जा सकती। ये सब खेत अब बंजर हो चुके हैं। इन लोगों को शिकायत है कि बरसात के दिनों में मीडिया से लेकर सरकार तक सब हरकत में आ जाते हैं, पर उसके बाद फिर सब शांत हो जाते हैं।
सड़क के किनारे भी तीन अलग-अलग दीवारें बनी हुई हैं। पता चला कि पहली दीवार बनी तो वह कुछ समय बाद खिसक कर नीचे आ गयी। फिर दूसरी बनी और अब तीसरी दीवार इस सड़क को रोकने के लिये बनी है। सड़क के किनारे के पैरापिट बिल्कुल तिरछे हो चुके थे। यह सड़क हर बार धसकती रहती है और फिर इसे ठीक करने के लिये हर बार सड़क पर काम चलता रहता है। सड़क को देखने से ही लग रहा है कि यह नीचे की ओर दबती होगी क्योंकि कई जगह पर डामर करके इसके लेवल को ऊपर उठाया गया है। प्रदीप कुमार ने बताया कि बरसात के समय में सड़क इतनी नीचे दब जाती है कि अगर सड़क के एक छोर में खड़े हो जाओ तो दूसरे छोर पर खड़े लोग तक नजर नहीं आते हैं।
इसी सड़क में मल्ला खूपी को जाते हुए संतोष कुमार की दुकान के बगल में ही एक बड़ा भूस्खलन हुआ है और प्यारे लाल जी के घर के नीचे भी एक भूस्खलन हुआ जिसमें उनके दो खेत ढह गये। कुछ और आगे चलकर जगदीश चन्द्र जी की दुकान है। जगदीश चन्द्र कुमाऊँ मंडल विकास निगम से कुछ वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हुए हैं। जगदीश चन्द्र जी ने बताया कि असल में खूपी गाँव तीन ओर से नालों की जद में है जिस कारण यहाँ हर तरफ से कटाव हो रहा है। एक ओर से 52 डांठ नाला खूपी को काट रहा है, दूसरी ओर से आलूखेत नाला कुरियागाँव और खूपी को काट रहा है और नीचे से मुख्य पाइन्स नाला खूपी, कुरियागाँव और भूमियाधार गाँवों को काट रहा है। इन लोगों का मानना है कि यदि इस कटाव को अभी रोका नहीं गया तो आने वाले समय में इसका असर कैलाखान, नैनीताल छावनी एरिया और बिड़ला स्कूल तक भी जा सकता है।
सड़क के ऊपर मल्ला खूपी के भी कई मकान भी भूधँसाव की ज़द में हैं। इन मकानों की भी हालत वैसी ही है जैसे नीचे के मकानों की स्थिति है। जैसा कि पहाड़ में सर्वत्र हो रहा है, यहाँ बाहर से आकर कुछ लोगों ने व्यवसाय के लिये जमीनें लीं। लेकिन मकान बनाने में जब भू धँसाव के कारण बार-बार दीवारें धसकने लगीं तो वे काम आधे में रोक कर ही वापस चले गये। हालाँकि आसपास के गाँवों में भी जमीनें बिकनी शुरू हो गयी हैं और कुछ रिसॉर्ट भी बन रहे हैं। लोग यहाँ अपनी जमीनों को जैसे-तैसे बेच कर हल्द्वानी में जमीन खरीद कर वहाँ बसना पसंद कर रहे हैं।
गाँव के लोगों की माँग सिर्फ इतनी है कि मुख्य पाइन्स नाले में पूर्व की भांति रिटेनिंग वॉल और चैकडैम को यदि फिर से ब्रिटिश पीरियड का जैसा ही कर दिया जाये तो भूधँसाव को रोका जा सकता है। इसलिये वे चाहते हैं कि इसी दिशा में कुछ कार्य किया जाये तो अच्छा रहेगा। इन लोगों को बरसात में भूधँसाव का डर तो सताता ही है, जिस तरह से उत्तराखंड में लगातार भूकम्प आ रहे हैं तो कभी भूकम्प से इस गाँव का पूरा अस्तित्व ही मिट जायेगा।
इस भूधंसाव के बारे में जब भू वैज्ञानिक डॉ. बी.एस. कोटलिया जी से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि यह मामला बेहद संजीदा है। सिर्फ खूपी ही नहीं बल्कि ये पूरा क्षेत्र ही भूधंसाव की जद में है और यदि शासन प्रशासन ने इसके लिये ठोस कदम नहीं उठाये तो परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वो कई बार शासन-प्रशासन को अपनी रिपोर्ट के द्वारा इस बारे में बता भी चुके हैं।
इस क्षेत्र के ग्रामीणों का कहना है कि नैनीताल विधानसभा की विधायक सरिता आर्या जी और ब्लॉक प्रमुख भीमताल डॉ. श्री हरीश बिष्ट जी का निवास स्थान भी इसी क्षेत्र में है इसलिये उन्हें इस क्षेत्र के लिये बरसात शुरू होने से पहले ही कुछ न कुछ कार्यवाही अवश्य करनी चाहिये।