इस्लाम हुसैन
देश की आजादी के बाद 50-60 साल तक शहरों और कस्बों में थोड़े बहुत कम बंदर पाए जाते थे। जो इक्का दुक्का होते थे तो लोग इनको देखते समझते थे इनको रोटी टुकड़ा डालते रहते थे। उनके छोटे मोटे उत्पात के और उनकी गुजर-बसर चल रही थी। हां धार्मिक स्थलों में जैसे हरिद्वार, मथुरा, वृन्दावन वगैरह में और इसके आसपास के इलाकों में बंदरों की तादाद अच्छी खासी होती थी, जहां आने वाले तीर्थयात्रियों से यह बंदर रोजी-रोटी पाते रहते थे, तब इनकी झपटमारी, काटखाने, और उत्पात के किस्से भी चलते रहते थे, सब लोग पशुप्रेम में सब कुछ जानते समझते हुए भी, सीरीयसली नहीं लेते थे, यानि इनपर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे।
इधर कुछ सालों से इन्हें कुछ कारणों से प्रश्रय मिला गया, जिससे इनकी तादाद बढ़ने लगी। धार्मिक स्थलों से होते यह बहुत जगह फैल गए हैं। जहां जहां इन बंदरों की संख्या बढ़ी, वहां वहां इन बंदरों का, जिन्हें आजकल वानर महाराज कहलवाया जा रहा है, जबरदस्त उत्पात हो रहा है, ये महाराज बने ‘वानर’ खेत बगीचों से लेकर घरों और रसोईघरों को उजाड़ रहे हैं, बर्बाद कर रहे हैं, खाना और रोटी लेकर भाग रहे हैं, झपटमारी कर रहे हैं लोगों को काट रहे हैं। उत्तर भारत के गांव,कस्बे और शहर के लोग इनसे परेशान हो रहे हैं। लेकिन ऐसे वक्त में हमारी अम्माजी के रूफटाप बगीचे, यानि की छत की फुलवारी में तरह तरह के फूल खिले हैं, फल हैं, गुलाब की दो दर्जन किस्मों से लेकर गुलदावरी, बेला, चमेली, एकजोरा और सदाबहार के खूबसूरत फूल हो रहे हैं, हरी मिर्च टमाटर से लेकर मूली प्याज, लहसुन सेम, मटर करेला जैसी सब्जियां हो रही हैं। और फलों में अमरूद, नींबू नाऱगी, वगैरह हो रहे हैं, लीची में बौर आ रहा है, छत पर गेहूं और दूसरे अनाज सूख पा रहे हैं। इस सब बिना किसी विघ्न-बाधा जो हो पा रहा है उसका क्रेडिट जाता है पोगो को, यानि कुत्ते को, जिसे हम पोगो कहते हैं।
वानर महाराजों के नुकसान को ना समझ लोग आसानी से यह सब समझ और जान नहीं सकते। हाल के इन कुछ सालों में इन वानर महाराजों ने किसानों बागबानों से लेकर आमलोगों का जीना दूभर कर रखा है। इनकी वजह से खेत बगीचों से लेकर रोजी रोटी ख़तरे में पड़ गई है। कई बार यह महिलाओं, बच्चों और कमजोऱों पर झपटते हैं उन्हें काट लेते हैं। ऐसी कई वारदात हो चुकी हैं और हो रही हैं।
वैसे मुझे बंदरों से पूरी हमदर्दी है लेकिन जब बंदरों के रखवालों द्वारा एक तरफ तो बंदरों को अपना खास सगा वाला बताया जाता हो, और दूसरी तरफ उनके रहने के ठिकानों, जंगलों को ठेके पर देकर उनका सफाया करवाया जा रहा हो, तब बंदरों के स्तुतिगान को दिखावा ही कहा जाएगा। वैसे इन्हीं वानरों की प्रजाति के कुछ लोग इन महाराजो के बहुत हिमायती है और इसी को धर्म कर्म मानते हुए इनकी रक्षा में लगे हुए हैं। खैर यह उनका मानना है ज़रूर माने, लेकिन यह महाराज हमारे खेत खलिहानों, घरों रसोईघरों में घुसकर उत्पात न मचाएं बर्बादी न करें । हमारी रोजी-रोटी पर झपटा मारी न करें, यह हमारा मसला है।
अम्माजी की फुलवारी इसलिए बची हुई है फुलवारी की की हिफ़ाज़त के लिए कुत्ता है। यह कुत्ता वानर महाराज की फुलवारी में दाल गलने नहीं देता। वानर महाराज ने ज़रा सी हिमाक़त की तो यह कुत्ता उनको दौड़ा देता है, टांग पकड़कर घसीट लेता है। इसकी वजह से वानर महाराज आसपास के घरों बगीचे में भले ही उत्पात मचाएं उजाड़ करें बर्बादी करें, लेकिन हमारी हद में यानि के हमारे रूफटाप फुलवारी में आने की हिम्मत नहीं कर सकते।
तो आपको भी अगर इस वक्त (के) बंदरों से अपने खेत खलिहान बगीचों, घरों, और रसोईघरों को बचाना है, देश के अलग अलग रंग के बहुरंगी संस्कृति को, अलग अलग तरह के अनाजों को उनके खान-पान रहन सहन को इन उत्पाती मूर्ख वानरों से सहेजना है तो असली डेमोक्रेसी वाले असली मीडिया जैसे वाचडाक यानि कुत्ते पालिए, जो आपको सिर्फ देसी ही मिलेंगे। विदेशों से आए अंग्रेजी कुत्ते मत पालिए जो ड्राइंग रूम में फ़ैलकर ऊंघते रहते हैं, या फिर टीवी चैनलों में बैठके आपके खेत खलिहानों बगीचों की दलाली खाते हों, तो कुत्ते पालिए, और उनका नाम कुछ भी रखिए ओगो, पोगो टोगो टाइप, पर भूलकर भी अंग्रेजी टाइप कुत्ते मत पालिए न कुत्तों का नाम अपने किसी प्रिय या स्वामी पर रखें और न उन्हें घर का चौधरी माने और समझें। कुत्तों को कुत्ता रहने दें सुविधाओं का मोटा पैकेज देकर उन्हें सुविधा भोगी मदमस्त और चरसिया न बनाएं।
इस्लाम हुसैन
काठगोदाम,नैनीताल
One Comment
बटरोही
बहुत उपयोगी वानर-पुराण इस्लाम भाई। धन्यवाद।