प्रमोद साह
जिस प्रकार एक वाहन के सुरक्षित चलने के लिए, स्पीड मीटर और इंजन का आरपीएम बताना जरूरी है. उसी प्रकार एक स्वस्थ और प्रगतिशील राष्ट्र की दिशा और दशा बताने के लिए सांख्यिकी संस्थान द्वारा निर्गत आंकड़े सरकार और नागरिकों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। 1959 भारतीय सांख्यिकी संस्थान के राष्ट्रीयकरण के बाद हर वर्ष एन.एस.एस.ओ द्वारा बेरोजगारी का आंकड़ा निर्गत किया जाता रहा है। जिससे सरकारों को अपनी नीतियों और उनकी प्राथमिकताओं को तय करने में मदद मिलती रही है।
2018 में एन. एस .एस. ओ द्वारा P.L .F.S { पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे } के आधार पर भारत में बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत जारी कर इस बेरोजगारी को पिछले 45 वर्ष की रिकॉर्ड बेरोजगारी बताने का जो राजनीतिक असहजता उत्पन्न करने वाला वक्तव्य जारी किया गया. उसके बाद एन.एस.एस.ओ ने इस प्रकार के आंकड़े सार्वजनिक करने बंद कर दिए.
इन आंकड़ों के बंद हो जाने से देश में रोजगार की स्थिति में कोई सुधार तो नहीं हुआ लेकिन यह हुआ कि देश की दिशा को इंगित करने वाले यह जरूरी आंकड़े और सवाल अब पार्शव में चले गए हैं। परिणाम यह हुआ कि पिछले 3 बजट में रोजगार वृद्धि की दिशा में क्या नई योजनाएं लागू की गई है. उनके लिए कितनी धनराशि, किस प्रकार आवंटित की जाएगी इसका भी उल्लेख गायब हो गया।
एक स्वस्थ राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिए यह आंकड़ा जरूरी है. एन. एस. एस. ओ के शिथिल हो जाने के बाद आंकड़ों के विश्लेषण पर हमारी निर्भरता सी.एम.आई.आई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी) पर बड़ गई है। बेरोजगारी की दिशा में लगातार चिंतित करने वाली खबरें प्राप्त हो रही हैं। 2016 के बाद प्रतिवर्ष रोजगार हेतु जो युवा फौज तैयार हो रही है। (18 से 35 आयु वर्ग उसमें प्रतिवर्ष 1% रोजगार के अवसरों की कमी हो रही है.
2016 में हम 42% युवाओं को रोजगार दे पा रहे थे 2017 में 41% 2018 में 40% 2020 में हम मात्र 38% युवाओं को रोजगार दे पाए. अर्थात 30 करोड़ युवाओं को हम संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुंचा पाए. दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र का गौरव हमें जो मानव संसाधन उपलब्ध करा रहा है। उसके 62% युवाओं को हम हताशा के गर्त में धकेल रहे हैं. अब हमने उस पर चर्चा भी बंद करने के साथ ही बजट के संकल्प और प्रस्ताव को भी गैर जरूरी कर दिया है. यह बेहद चिंताजनक पक्ष है ।
2018 में 6.1 प्रतिशत बेरोजगार के जिस आंकडे़ ने 45 वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ने की चर्चा हासिल की वह 2020 में बढ़कर 7.78 प्रतिशत हो गया था. 2021 के कोरोनावायरस काल में 27.1% को छू रहा है. बेरोजगारी के इन भयावह आंकड़ों को नियंत्रित करने के लिए यदि हम सरकारी स्तर पर कोई कारगर उपाय नहीं अपनाएंगे, अपने संसाधनों का सार्वजनिक वितरण नहीं बढ़ाएंगे तो भविष्य में सामाजिक असंतोष की दिशा बहुत गहरी होने के संकेत हैं।
महिला सुरक्षा के नारों के बीच पूरे एशिया महाद्वीप में महिलाओं को रोजगार देने की स्थिति में हम पीछे पहुंच गए हैं. हम मात्र 23% महिलाओं को रोजगार दे पा रहे हैं. जबकि श्रीलंका 30% बांग्लादेश 33% और इंडोनेशिया 39% महिलाओं को रोजगार दे रहा है.एक लोक कल्याणकारी राष्ट्र के रूप में बड़ते हुए हमने अपने संसाधनों के न्याय पूर्ण वितरण, मानव संसाधन के न्यायोचित समायोजन का संकल्प लिया है. तब देश के 39 करोड़ 37 लाख युवाओं का रोजगार से संतुष्ट ना होना और वर्तमान में 32 करोड लोगों का बेरोजगार हो जाना बहुत भयावह है। हालांकि उम्मीद है कि कोरोना के प्रभाव से जब हम निकलेंगे तो बेरोजगारी घटकर 10 करोड़ तक पहुंचेगी।
कृषि का जरूरी सहारा: 2008-9 कि वैश्विक मंदी में कृषि ने ही हमें बचाया, इस बार कोरोना के संकट में जब अप्रैल से जुलाई तक वेतन भोगी मजदूरों के रोजगार में 75% की कमी हुई, तब फिर खेती ने बेरोजगार हुए मजदूरों से 1 करोड़ 49 लाख बेरोजगार मजदूरों को कृषि में सहारा दिया. इसलिए प्रत्येक दशा में खेती-किसानी को बचाए जाना जरूरी है लेकिन उससे भी जरूरी है समस्या के समाधान के लिए समस्या पर बात करना उसे समाज में समस्या के तौर पर प्रस्तुत करना…। जो प्रवृत्ति हम खोते जा रहे हैं।
(नोट: आंकड़े एन. एस. एस ओ,सी.एम.आई.आई.द वायर से लिए हैं ।