प्रमोद साह
आज किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे हो गए, किसी भी लोकतांत्रिक देश में किसी आंदोलन के 100 दिन पूरे हो जाने को गर्व का विषय नहीं कहा जा सकता। लोकतंत्र दुनिया की वह सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था है जो खुद की समस्याओं का समाधान करना जानती है। इन समस्याओं के समाधान का जो शस्त्र लोकतंत्र के पास है वह जनता की सुनवाई और उससे निरंतर संवाद का शस्त्र ही है।
ऐसा नहीं कहा जा सकता कि केंद्र सरकार ने किसानों की समस्या के समाथान के लिए कोई संवाद का मंच उपलब्ध नहीं कराया हो। पूरे किसान आंदोलन में 11 चक्र वार्ता के पूरे हुए और कई बार ऐसा लगा कि किसान आंदोलन अब समाप्त हो जाएगा तब समाप्त हो जाएगा लेकिन 22 जनवरी के बाद लगभग 42 दिन हो गए जब से किसान और सरकार के बीच एक गतिरोध बना हुआ है। किसान और सरकार दोनों एक दूसरे के साथ मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ रहे हैं धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं, जो शुभ नही है।
जनता और सरकार में जब भी तुलना होगी तो सरकार का पक्ष जिम्मेदारी से बड़ा ही माना जाएगा। हमारी यह परंपरा है की जो जिम्मेदार हैं उन्हें बडप्पन दिखाना चाहिए, अगर किसानों के साथ वार्ता का गतिरोध उत्पन्न हो गया है तो उसे हर संभव दूर करने का प्रयास करना ही चाहिए।
18 माह तक इन कृषि कानूनों का स्थगन तक तो सरकार पहुंच ही गई है। इस पर थोड़ा आगे-पीछे बात कर फिलहाल किसानों का आंदोलन समाप्त होना ही चाहिए इसमें ही राष्ट्र का हित है।
किसान आंदोलन के 100 दिन पूरे होते-होते ही विश्व प्रसिद्ध टाईम मैगजीन ने इस विश्व प्रसिद्ध किसान आंदोलन की ताकत, किसान महिलाएं जो चूल्हे छोडकर खेत खलिहान और सडक से मंच तक सब जगह मौजूद हैंं।
इन किसान महिलाओं की तस्वीर को टाईम मैगजीन ने अपने मुखपृष्ठ में जगह देकर किसान आंदोलन और भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं का मान बढ़ाया है। 160 से अधिक किसानों की इस आंदोलन के दौरान मृत्यु हो गई जिसे किसान शहीद कह रहे हैं। अब जब किसान पंचायतों के माध्यम से देश के अधिकांश हिस्सों में यह जान असंतोष फैल रहा है तब इसका सम्यक समाधान निकालना सरकार का ही दायित्व है ।
इसलिए किसान आंदोलन का सर्वमान्य शीघ्र से शीघ्र हल निकालना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। आन्दोलन के दिनों की संख्या का बढ़ते जाना और वार्ता का रूक जाना देश की सेहत के लिए शुभ नहीं है ।
हम कामना करते हैं कि शीघ्र वार्ता से समाधान हो।