नैनीताल समाचार डैस्क
जाने माने अभिनेता और पत्रकार विश्वमोहन बडोला का 23 नवम्बर को मुंबई में निधन हो गया। वे 84 वर्ष के थे और कुछ समय से बीमार चल रहे थे। वे थिएटर के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम तो थे ही, ख्यातनामा पत्रकार भी थे। हिंदी फिल्मों और टी.वी. धारावाहिकों में उनकी उपस्थिति निरन्तर बनी रही।
विश्व मोहन बडोला का जन्म पौडी गढ़वाल के विकासखण्ड ढांगू के ठठोली गांव में वर्ष 1936 में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1962 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए. आॅनर्स किया और ‘वायस आफ अमेरिका’ से जुड़े। 1965 में ‘पैट्रियट’ अखबार के सब एडीटर के रूप में पत्रकारिता शुरू की। 1970 में वे ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ में चीफ सब एडीटर बने। वे ‘नाॅर्दर्न इण्डिया पत्रिका’ के न्यूज एडीटर और फिर डेक्कन हैरल्ड तथा टाइम्स आॅफ इण्डिया के लखनऊ और काठमांडू में विशेष संवाददाता भी रहे। 1990-92 में उन्होंने दूरदर्शन के लिए करंट अफेयर्स पर डाक्यूमेंट्री फिल्में बनायीं। 1993 में वे ‘पायनियर’ के समन्वय संपादक बने। वे दक्षिण एशियायी देशों के विशेषज्ञ माने जाते थे। रिर्पोिर्टंग के लिये उन्होंने अमेरिका, मिस, सीरिया, मैक्सिको, अर्जन्टीना, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, श्रीलंका, रूस आदि देशों की यात्राएं की थीं। ‘दिशान्तर’ नाट्य संस्था के वे संस्थापक रहे। उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म ‘स्वदेश’ के अतिरिक्त जोधा अकबर, मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस. आदि में अभिनय किया। उनके पुत्र वरुण बडोला भी टी.वी. धारावाहिकों और फिल्मों के चर्चित अभिनेता हैं।
विश्वमोहन बडोला का कोटद्वार और देहरादून से नाता रहा। वे प्रेस फोटोग्राफर स्व. आनन्द ढौढियाल काका के खास रिश्तेदार थे। सुप्रसिद्ध हिन्दी कवि अतुल शर्मा ढौंडियाल जी के फालतू लाइन स्थित निवास पर उनके साथ हुई भेंट को याद करते हुए बताते हैं कि वहाँ से ‘युगवाणी’ कार्यालय तक आते-आते उनके साथ ढेर सारी बातें हुईं। उत्तराखंड में एक सास्कृतिक केन्द्र बना कर यहाँ की प्रतिभाओ के संरक्षण और संवर्द्धन हेतु वे सचेत थे। उनकी बातो में मोहन उप्रेती और नईमा खान का बार-बार जिक्र हुआ था। अतुल शर्मा के अनुसार वे बहुत गहरे व्यक्तित्व के धनी थे और ओम शिवपुरी, बृजमोहन शाह, रामगोपाल बजाज, राजेन्द्र नाथ जैसे दिग्गज अभिनेताओं में से एक थे। उन्होंने मोहन राकेश के ‘आषाढ़ का एक दिन’, विजय तेन्दुलकर के ‘खामोश अदालत जारी है’, बादल सरकार के ‘एवं इन्द्रजीत’ आदि नाटकों में यादगार भूमिकायें की थीं।
नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा से प्रशिक्षित, ‘शैल नट’ के संस्थापक सुविख्यात रंगकर्मी श्रीश डोभाल बतलाते हैं कि वी.एन. बड़ोला गाते बहुत सुंदर थे। उन्हें शास्त्रीय संगीत की बहुत अच्छी जानकारी थी। वे बतलाते हैं कि उन्होंने सबसे पहले बडोला जी को देहरादून में मंचित विजय तेंदुलकर के राजेंद्र नाथ द्वारा निर्देशित ‘घासीराम कोतवाल’ में अभिनय करते हुए देखा था। इस नाटक में भी उन्होंने बहुत अच्छा गाया था। मोहन उप्रेती और बी. एल. शाह जी द्वारा गठित ‘पर्वतीय कला केंद्र’ में विश्वमोहन की उपस्थिति हमेशा ही बनी रही। कला केंद्र के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण नाटकों में उन्होंने अभिनय किया था। बडोला जी से अपनी अन्तिम मुलाकात को याद करते हुए डोभाल बताते हैं कि ‘‘15 वर्ष पूर्व मणि रत्नम जी ने दिल्ली स्थित होटल ‘ले मेरेडियन’ में मुझे बुलाया था। लगभग आधा घंटा उन्होंने मुझे सुना और उसके बाद वे बडोला जी से बात करते रहे। मैं उस वार्ता को बीच में छोड़ कर चला आया। यह मेरी बडोला जी से आखिरी मुलाकात थी।’’
कवि और उद्घोषक हेमन्त बिष्ट, विश्व मोहन बडोला को ‘जीवंतता की पाठशाला’ घोषित करते हुए सन् 1991-92 में उनके साथ हुई एक मुलाकात का जिक्र करते हैं। वे बताते हैं, ‘‘दिसंबर का महीना था। खुर्पाताल तालाब पर पर्यावरण सुरक्षा केन्द्रित कथानक को लेकर कोई टेलीफिल्म बन रही थी। मैं उन दिनों श्री ऐपाल देवता राजकीय इंटर कॉलेज, पटवाडाँगर में कार्यरत था। जैसे ही शाम को घर पहुंचा, तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी जीवंती बिष्ट जी के छोटे भाई गणेश दा ने मुझे घर पर बुलाया। वहां फिल्म के निर्देशक उमेश बिष्ट, निर्माता जूही सिन्हा तथा और भी कुछ लोग मौजूद थे। उमेश बिष्ट जी ने मुझसे कहा कि आपको इस टेलीफिल्म में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण रोल करना है। मैंने कहा कि मैं लेखन में तो रुचि रखता हूं, लेकिन अभिनय तो मैंने किया नहीं है। ‘युगमंच’ ज़हूर दा आदि ही इसमें अभिनय कर सकते हैं। उमेश जी ने कहा कि उन्हीं लोगों ने तो आपका नाम सुझाया है।
‘‘मुझे कॉस्ट्यूम के विषय में बताया गया। गांव के चाचा लोगों से उस तरह के कपड़े लेकर सुबह साढे़ पाँच बजे मैं शूटिंग स्थल में पहुंच गया। युगमंच के वरिष्ठ अभिनेता डी.के. शर्मा के छोटे से बच्चे को मेरे बेटे का अभिनय करना था और मुझे उसे यह सिखाना था कि तालाब हमारी मां है, यह नाव हमारी पोषक है तो इस तालाब की सुरक्षा हमने हमेशा करनी है। दो-तीन घंटे में ही हमारे शॉट्स ओके हो गए थे। उस फिल्म में विश्व मोहन बडोला जी के साथ बी. एम. साह जी भी थे। बाद में बडोला जी ने मुझसे पूछा कि हमारे ग्राम प्रधान कैसे हैं, उन्होंने गांव के लिए क्या-क्या किया है और आप लोग उनसे और क्या-क्या चाहते हैं। उनके इस सामाजिक सरोकार से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ।
अनायास ही उन्होंने मुझसे कहा कि ललित पिरमू के पिता का अभिनय आपने बहुत अच्छा किया है। मेरी समझ में नहीं आया कि उन्होंने मेरा काम कहाँ देखा। बाद में मुझे यूनिट के लोगों से पता चला कि पहले दिन के अभिनय और किरदारों को वे शाम को गौर से देखते रहे थे। जब उनका शॉट रेडी हुआ तो एक विशालकाय चीड़ के वृक्ष के नीचे होलिका देवी के मंदिर के समीप एक मंचनुमा टीले पर खड़े होकर उन्होंने ग्राम प्रधान के रूप में भाषण दिया। ग्रामवासियों से वे प्रश्न करते और ग्रामवासियों के रिएक्शन कैमरामैन वहीं पर कैद करते रहे। इतना स्वाभाविक अभिनय उनका था, न कोई स्क्रिप्ट और न कोई जूनियर आर्टिस्ट। बल्कि गांव के ही महिलाएं बच्चे, बुजुर्ग उनकी बातों का जवाब दे रहे थे। ऐसे विलक्षण अभिनेता थे विश्व मोहन बडोला जी! हम जैसे नितान्त अनजान व्यक्तियों की तक पीठ थपथपाकर वे कला और कलाकारों में जीवंतता भरते थे।’’
नैनीताल समसचार परिवार की विश्वमोहन बडोला को हार्दिक श्रद्धांजलि।
One Comment
राजेन्द्र भट्ट
बहुत अच्छा लेख। पर्वतीय कला केंद्र की प्रस्तुतियों में उनकी भूमिकाओं का जिक्र होता तो और भी अच्छा होता। वैसे, इस विषय पर तो अलग से लेख होना चाहिए। मोहन उप्रेती वाली गौरवशाली पीढी अब समाप्त हो रही है। उनसे सीधे जुड़े, उनकी नाट्य परंपरा के गवाह और मर्मज्ञ विद्वानों से , बिना शब्द सीमा के स्मृति लेख लिखवाए जाएं तो महत्वपूर्ण विरासत का डॉक्यूमेंटेशन हो सकता है। कभी अच्छे दिन आएंगे तो राह दिखा सकता है।