बोधहीन अति-पर्यटन और असंवेदनशील व्यवसायीकरण हमारे ऐतिहासिक-स्थलों और आरक्षित प्रकृति-क्षेत्र की हत्या कर रहा है. यह इसे रोकने और पर्यटकों की संख्या एवं सुविधाओं को नियंत्रित करने का समय है.
गौतम भाटिया
हिन्दी में अनुवाद : रमदा
इस साल की शुरूआत में पर्यटकों से भरी एक बस जब बार्सिलोना के ‘सिटी-स्क्वायर’ पर पहुँची तो स्थानीय लोगों ने उन पर टमाटर बरसाए – उत्तरी यूरोप के पर्यटकों की एक बड़ी तादाद जब तेनरीफ (स्पेन का एक द्वीप) में आई तो सरकार से पर्यटन को नियंत्रण में रखने की मांग करते हुए प्रदर्शनकारी भूख-हड़ताल पर बैठ गये. वेनिस से माचू पिच्चू, सेंटोरिनी से एम्स्टर्डम तक अत्यधिक पर्यटन की तकलीफों ने स्थानीय संसाधनों पर अतिशय दबाव डाला है, एतिहासिक-स्थलों के अनिष्ट की आशंका को आधार दिया है और चीज़ों तथा जमीन-जायदाद की कीमतों में बनावटी-तेजी सृजित की है. इनमें से अनेक जगहों पर नगरपालिकाऐं स्मारकों में नियंत्रित प्रवेश के साथ होटलों में शायिकायों की संख्या और बाहरी व्यक्तियों को उपलब्ध पानी की मात्रा को सीमित कर रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र की गणनाओं के अनुसार कोविड से एकदम पहले तकरीबन 1 अरब 40 करोड़, समूची भारतीय जनसंख्या के बराबर, लोगों ने पूरी दुनिया में पर्यटन किया. कहने की ज़रुरत नहीं है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों की अनवरत आवाजाही पर्यावरण, नगरों और संस्कृतियों के लिये घातक है.
वह क्या है जो खासे समझदार और सामान्य लोगों को विदेश-भ्रमण, अपरिचित भोजन और अबोध्य भाषा संबंधी असुविधाओं की ओर ले जाता है. संसार भर में गंदे-सस्ते होटलों, घटिया वस्तुओं और बेकार सजावटी साजो-सामान के बजाय हमें संसाधनों एवं ऊर्जा को ऐसी मूल-उन्मुख दिशाओं में व्यय करना चाहिए जिससे स्थानीयता प्रोत्साहित हो. मंतव्य नागपुर के एक मध्यवर्गीय परिवार को नागपुर में ही खुश रखने से है.
पर्यटन निश्चित्ततः अल्पकाल में अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक हो सकता है किन्तु यह एक ऐसे छद्मवेशी ध्वंस की ओर ले जाता है जो तत्काल दिखाई नहीं देता. यह अपेक्षित है किन्तु दुर्भाग्य से जो साफ़-साफ़ दिखता है वह हमारी विरासत का अनवरत व्यवसायीकरण है और इसका ज्वलंत उदाहरण वह ‘एयर बी एन बी डील’ है जो पर्यटकों को रोम के कोलोसियम में ग्लेडियेटरों के तौर पर क्रीड़ा का अवसर प्रदानकरेगी. जिधर नज़र डालिए उधर पर्यटकों के लिय नई-नई सुविधाओं के साथ ‘गेम-पार्क’ खोले जा रहे हैं. हिमालय के भीतरी दुर्गम्य वनांचलों में ‘रिसॉर्ट्स’ और ‘स्पा’ निर्माण की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. मशोबरा (हिमाचल का एक कस्बा) में हाल के एक भ्रमण में स्थानीय पारिस्थितिकी और पर्यटकों की मांगों के बीच का असादृश्य साफ़-साफ़ दिखाई दिया. 100 वर्ष पुराने देवदारों के चारों ओर छः-सात मंजिले होटलों की मीनारें खड़ी हैं. होटलों का ऐसा निर्माण मध्य प्रदेश के कान्हा, नीलगिरी और दार्जिलिंग की पहाड़ियों सहित समूचे देश में दिखाई पड़ रहा है. हाल में ही कॉर्बेट पार्क के संरक्षित वन क्षेत्र के भीतर विश्राम-भवनों, पुलों और सडकों के लिए हज़ारों की तादाद में पेड़ काटे गए हैं. दक्षिण भारत में कुर्ग और मन्नार के इलायची और चाय के बागानों में धनी भारतीय और विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष स्नानागारों (स्पा) का तेजी से निर्माण चल रहा है.
इशारा समझ रही सरकार ने हाल ही में स्मारकों को गोद लिए जा सकने संबंधी एक नीति की घोषणा की है जिसके अंतर्गत निजी-कम्पनियां कोणार्क के सूर्य मंदिर और अजन्ता जैसे ऐतिहासिक-स्थलों का भोजनालयों, ध्वनि और प्रकाश प्रदर्शनों तथा विविध आयोजनों हेतु प्रयोग कर सकेंगी. स्मारक विशेष के मात्र रखरखाव की जिम्मेदारी लेते हुए प्रायोजक कुछ भी करने के लिए आज़ाद होंगे. धरोहर-संरक्षण के पैमाने पर इसे किस तरह उपयुक्त माना जाएगा ? ऐसे तो राष्ट्रीय-अभिलेखागारों को बड़ी ‘रेस्टोरेंट-चेन्स’ को सौंप देना चाहिए ताकि धनी-ग्राहक भोजन करते हुए उनका आनंद उठा सकें. आखिर निजाम के जवाहरात रिजर्व बैंक के वॉल्ट में निरोपयोगी क्यों पड़े हैं ? उन्हें शादियों और सामाजिक आयोजनों में किराये पर उपलब्ध कराने से अधिकाधिक प्रसिद्धि और आमदनी का जरिया बनाया जा सकता है.
यदि सरकार और पर्यटन-उद्योग पर्यटन की मौजूदा विनाशकारी प्रवृति को पलटने की मंशा रखता हो तो सबसे पहले उन जगहों को चिन्हित किया जाना होगा जो पर्यटन-प्रलय से अभी भी अप्रभावित हैं ताकि वहां निर्बाध-भ्रमण और भूमि की बिक्री तथा व्यावसायिक निर्माण पर प्रभावी-प्रतिबन्ध लगाए जा सकें. पूर्वोत्तर, लघु हिमालय के कुछ पहाड़ी इलाके और पूर्वी-पश्चिमी घाटों के अनेक स्थल इनमें शामिल होंगे.
दूसरा, प्रकृति, धार्मिक और पर्यटन के अन्य अनेक स्वरूपों से सम्बंधित स्थलों पर पर्यटकों की संख्या और सुविधाओं पर प्रतिबन्ध लगाया जाना. यह किया जा सकता है कि कॉर्बेट में निर्धारित संख्या में ही लोग प्रवेश कर सकेंगे. यह देखा जाना चाहिए कि अयोध्या में एक दिन में कितने लोग आये और इन पार्कों और धार्मिक स्थलों पर आधारक अन्तः-संरचना की मौजूदगी है भी या नहीं.
तीसरा और सर्वाधिक गंभीर मसला कतिपय ऐतिहासिक स्थलों पर पर्यटन को सीमित किये जाने का है. ज़रुरत हो तो पट्टदकल्लु और बदामी (कर्नाटक), शानदार तरीके से संरक्षित किन्तु बनावट के नज़रिए से नाज़ुक इमारतों -नालंदा और हम्पी के कमज़ोर स्थलों को पर्यटकों के लिए बंद कर देना चाहिए. ऐतिहासिक-पर्यटन को चक्रीय-आधार पर चलाये जाने और मौसम-विशेष तक सीमित किये जाने की भी आवश्यकता है. ताजमहल, जिसका एक गुम्बद क्षतिग्रस्त हुआ है को केवल पूर्णमासी की रात्रि और खजुराहो मंदिर-संकुल को केवल वर्षा-काल में ही पर्यटकों के लिए खोला जा सकता है.
यूरोप और अमेरिका के अनेक राष्ट्रीय स्मारकों और संरक्षित प्राकृतिक स्थलों पर ऐसा प्रतिबंधित-प्रवेश व्यवहार में है और यह महत्वपूर्ण पुरातात्विक एवं प्राकृतिक-इतिहास से सम्बंधित स्थलों के संरक्षण में सहायक है. हमारे लिए भी एक स्पष्ट एवं कल्पनाशील पर्यटन नीति, देश में, पर्यावरण-संरक्षण के लिए समुचित है.
दुःख की बात यह है कि वर्तमान में समूचा भारत बिक्री के लिए खुला है और कई दशक और कई पीढ़ियां यह समझने में ही निकल जायेंगी कि यह देश हमारी थात है,- यह देश हमारा है.
(लेखक एक वास्तुकार हैं)