देश के कई हिस्सों में आग लगी है और द्विअर्थी संवाद बोलने में निष्णात भारत के प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि आग लगाने वालों की पहचान उनके कपड़ों से की जा सकती है। एक चुनावी रैली में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने के इरादे से दिये गये नरेन्द्र मोदी के ऐसे विवादास्पद बयान का संज्ञान चुनाव आयोग लेगा, इसकी उम्मीद कम है। क्योंकि आयोग के सदस्यों को मालूम है कि ऐसा कुछ करने पर वे पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की तरह सरकार की हिट लिस्ट में आ जायेंगे। देश इस वक्त ऐसे ही खतरनाक माहौल में जी रहा है।
असहमतियाँ देशद्रोह मानी जाने लगी हैं। सत्ताधारी दल के पास नागरिकता को लेकर अपने तर्क होंगे, मगर बहुत सारे लोगों को उन तर्कों से असहमति हैं। प्रचंड बहुमत की अपनी दादागिरी से सरकार अपना मनपसन्द कानून बना लेने में भले ही सफल हो गई हो, किन्तु असहमति का उपहास करना और बातचीत का रास्ता बन्द कर देना उस तानाशाही की आशंका को ही मजबूत कर रहे हैं, जिसकी चिन्ता इस वक्त देश को सता रही है। बिना आगा-पीछा सोचे नोटबन्दी या जी.एस.टी. लागू करने और कश्मीर को कैद में डाल देने के बाद यह नागरिकता संशोधन कानून भी आने वाले वक्त में देश को दीर्घकालीन विपत्ति में डाल देगा। इससे भी ज्यादा खतरा इस बात का है यह कानून देश को एक और विभाजन की कगार पर ले जा रहा है। पिछली बार मुस्लिम कट्टरपंथी विभाजन के मूल में थे।
इस बार हिन्दू उग्रवादी उसके पीछे हैं। इस वक्त यह सोच पाना भी कठिन हो रहा है कि छिटपुट दंगों या बाबरी मस्जिद के ध्वंस, जिसकी आपराधिकता अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार कर ली है, के बावजूद कैसे यह देश पिछले 72 सालों से साम्प्रदायिक सद्भाव के साथ जिया होगा। उम्मीद इस बात से बँधी है कि मुसलमान ही नहीं बहुसंख्य हिन्दू भी इस षड़यंत्र को समझ पा रहे हैं
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।